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Monday, January 28, 2019

प्रियंका का बहुत असर नहीं पड़ेगा

प्रियंका का बहुत असर नहीं पड़ेगा

प्रियंका गांधी को राजनीति की धारा में औपचारिक रूप से लाने की घोषणा और उत्तर प्रदेश के महासचिव के रूप में उनकी तैनाती वंशानुगत राजनीति को हवा देने वालों की एक नई कोशिश है और साथ ही औसत भारतीय मतदाताओं को भरमाने का एक तरीका भी। कांग्रेस को यह विचार त्याग देना चाहिए कि गांधी नेहरू परिवार के किसी एक नए आदमी को सियासत में लाने से वर्तमान संकट समाप्त हो जाएगा। प्रियंका गांधी को लाया जाना एक तरह से यह बताने की कोशिश है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सियासत में नई हवा की तरह है। यह तो सर्वज्ञात है कि प्रियंका गांधी कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन हैं और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा पूर्वर्ती अध्यक्ष स्वर्गीय राजीव गांधी की पुत्री हैं। वे कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पौत्री हैं। इन का आना कांग्रेस और मीडिया के कुछ भाग में एक लहर की तरह महसूस किया जा रहा है । अभी तक तो ऐसा होता रहा है कि हर 5 साल में चुनाव के वक्त प्रियंका गांधी दिखाई पड़ती थीं और अपने भाई तथा मां के लिए प्रचार करती थीं। अब औपचारिक रूप से राजनीति में उतरी हैं। प्रियंका गांधी की नियुक्ति से चंद दिन पहले  वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने लंदन में एक जलसे में भाग लिया था । उस जलसे में एक स्वयंभू साइबर विशेषज्ञ सैयद शुजा ने दावा किया कि भाजपा ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन(ई वी एम) में गड़बड़ कर या कहें हैकिंग कर पिछला चुनाव जीता था। इस बात को "ईवीएम हैकिंग" के नाम से प्रचारित किया गया। इस प्रचार में  मीडिया भी शामिल हुई । यहां तक कि उसके लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में "फॉरेन प्रेस एसोसिएशन, लंदन" के सदस्य भी शामिल हुए थे। यह संस्था दुनिया की सबसे पुरानी विदेशी पत्रकारों की संस्था है जो हर साल अट्ठारह सौ से ज्यादा पत्रकारों को अधिमान्यता प्रदान करती है।  उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को सैयद शुजा ने स्काइप के माध्यम से संबोधित किया था और उस दौरान जो बातें कही गयीं उनमें कहीं भी सबूत नहीं था। यह भी कहा गया है कि कपिल सिब्बल वहां व्यक्तिगत तौर पर गए थे। क्या विडंबना है कि  इसके पहले कपिल सिब्बल 2018 में पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के महाभियोग के समय दिखाई पड़े थे। 
  कांग्रेस की इन कोशिशों से ऐसा लगता है कि वह लोकतंत्र के हर पहलू पर लगातार आघात कर रही है लेकिन वह आघात लौट कर कांग्रेस पर ही पड़ रहा है। प्रियंका गांधी की नियुक्ति इस  नजरिए से भी देखी जा सकती है कि ईवीएम हैकिंग की खबर के पिट जाने के बाद हुई क्षति की पूर्ति की यह कोशिश है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव के दौरान ईवीएम की हैकिंग का आरोप एक तरह से भारतीय निर्वाचन आयोग पर अंतरराष्ट्रीय मंच से प्रत्यक्ष हमला था । निर्वाचन आयोग लगातार कहता रहा है कि ईवीएम मशीन की हैकिंग नहीं हो सकती है और उसने दिल्ली पुलिस के पास शुजा के खिलाफ एफ आई आर भी दर्ज कराया है। ईवीएम मशीन उत्पादक इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड ने स्पष्ट किया है सैयद शुजा ने कभी भी वहां काम नहीं किया है ।  यही नहीं जब फॉरेन प्रेस एसोसिएशन ने शुजा के दावे से खुद को अलग कर लिया तो कांग्रेस को भारी आघात लगा। अब पार्टी ने ईवीएम मशीन की हैकिंग वाले मामले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए प्रियंका गांधी को सामने ला दिया।
      ऐसा लगता है कि कांग्रेस समझती है कि औसत मतदाता वर्ग यह बात नहीं समझता है। प्रियंका गांधी के आने से वह पुरानी बातों को भूल जाएगा। ईवीएम के हैकिंग की गलत खबर के बाद यह घोषणा और उसी समय  मायावती और अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाने के संदेश को कुछ इस तरह पेश किया गया है कि राजनीति में भारी बदलाव आ जाएगा।   ऐसा नहीं हो पाएगा प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में  भाजपा को बहुत ज्यादा हानि नहीं पहुंचा पाएंगी लेकिन मायावती और अखिलेश यादव का कुछ न कुछ जरूर बिगड़ जाएगा। प्रियंका गांधी का यह मसला अगर संक्षेप में कहें अब्राहम लिंकन के शब्दों में "आपको खुद बड़ा बनना पड़ेगा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके दादा कितने बड़े थे।" समस्या है कि कांग्रेस के लोग इस बात को नहीं देख रहे हैं  और उतावले हुए जा रहे हैं।

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