विपक्षी दलों का सम्मेलन
भारत में चुनावी विजय अक्सर जनता के विचारों और उनके बीच चल रही चर्चा का संक्षेपण है। 2014 में विचार और समाज में चल रही बातों ने भाजपा का साथ दिया और नतीजा सबके सामने था। अब हम 2019 के आम चुनाव के लिए कदम आगे बढ़ा रहे हैं। यद्यपि सरकार ने कई मामलों में थोड़ा बहुत अच्छा किया है लेकिन इसने जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप काम नहीं किया और इन्हीं अपेक्षाओं का इस्तेमाल विपक्षी दल चुनाव में करते हैं । शनिवार को कोलकाता में विपक्षी दलों की विशाल रैली हुई और इस रैली में उन्होंने अपने इरादे का बयान किया। इस रैली में राहुल गांधी और मायावती ने हिस्सा नहीं लिया था। यह बताता है कि अभी भी विपक्षी दलों में एक दरार है । इस सम्मेलन का मुख्य मुद्दा था कि भाजपा कहां-कहां नाकामयाब रही इसे रेखांकित किया जाय और उन रेखांकित नाकामयाबियों को जनता के समक्ष पेश किया जाए। साथ ही, यह भी तय किया जाय कि इस विपक्षी गठबंधन का नेता कौन होगा । यह स्पष्ट है कि कोई भी पार्टी अकेले पूरे देश में भाजपा को पराजित नहीं कर सकती और अपने बल पर सरकार नहीं बना सकती। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा? हालांकि, विपक्षियों का मानना है कि इस मसले को चुनाव के बाद तय कर लेंगे लेकिन एक चीज स्पष्ट है जिसे विपक्षी नेताओं ने शनिवार के सम्मेलन में बार बार दोहराया कि नेता के लिए 3 उम्मीदवार हैं । यह तो स्पष्ट है कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को चाहती है कि वे प्रधानमंत्री बनें, बसपा चाहती है कि मायावती बनें तीसरी हैं बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो सबसे प्रबल हैं और योग्यतम हैं। यद्यपि किसी ने भी दावा नहीं पेश किया लेकिन जिस तरह यह लोग सीटों के बंटवारे को लेकर बात कर रहे थे उससे लगा कि चुनाव के बाद की स्थिति पर नजर रखकर बातचीत हो रही है।
पिछले हफ्ते मायावती ने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में गठबंधन में शामिल करने से गुरेज किया इसके पहले कांग्रेस ने राजस्थान ,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सपा और बसपा के साथ सीटों का बंटवारा करने से इनकार कर दिया था। पश्चिम बंगाल में भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ कुछ ऐसा ही किया था। विपक्षी सम्मेलन के पीछे भी सुश्री ममता बनर्जी का इरादा अपनी नेतृत्व क्षमता और अपनी प्रबलता का प्रदर्शन था । इसमें राहुल गांधी या सोनिया गांधी नहीं आए। उन्होंने अभिषेक सिंघवी तथा मल्लिकार्जुन खड़गे भेजा था और समर्थन का एक पत्र भेजा था। ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रण भेजा था लेकिन जानबूझकर उन्होंने इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहा। उनके दिमाग में था कि मायावती प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं और यही कारण है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ तालमेल नहीं किया। इस रैली में शामिल नहीं हो कर मायावती ने यह संदेश दे दिया। वे अपनी आकांक्षाओं को समाप्त नहीं करना चाहतीं।
चुनाव के बाद का दृश्य अभी से दिख रहा है। वह तीन पार्टियों के गठबंधन के रूप में दिख रहा है। ममता बनर्जी और मायावती का यह मानना है अगर विपक्षी दल एक हो जाएं तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों से ज्यादा सीट हासिल हो सकती है और तब कांग्रेस को मजबूर किया जा सकता है कि वह विपक्षी दलों के गठबंधन को समर्थन दे। सुश्री ममता बनर्जी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ,आंध्र प्रदेश के नेता जगन रेड्डी और उड़ीसा के नवीन पटनायक के लिए दरवाजा खोल दिया है। यह सब कांग्रेस के विरोधी हैं।
उधर मायावती को यह उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में वह बहुत ज्यादा सीट जीत लेंगी और इस बल पर विपक्षी दलों की अगुवा हो जाएंगी यह एक तरह से अगली सरकार का नेतृत्व करने के बराबर होगा। अब ये नेता अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को एक व्यापक हित की तरह देख रहे हैं। विपक्षी दलों की प्राथमिकता भाजपा को पराजित करना है और इसके लिए अधिकांश सीटों पर एक ही उम्मीदवार भाजपा के खिलाफ खड़ा करना होगा, वरना काफी महंगा पड़ेगा। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेहद प्रबल हैं और यहां शायद ही बीजेपी को कुछ हासिल हो सके। देशभर में उनका प्रभाव जरूर है पर प्रबलता उतनी नहीं है जितनी बंगाल में है । लेकिन तब भी ममता जी देश में एक प्रबल विपक्षी नेता के रूप में उभर कर सामने आएंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। विपक्षी दलों द्वारा अगर उन्हें सामने रखकर ठीक से कदम बढ़ाया जाए तो सफलता की बहुत ज्यादा उम्मीद की जा सकती है।
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