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Friday, January 18, 2019

पस्त होता हौसला

पस्त होता हौसला

2014 में जब मोदी जी ने रामलीला मैदान में लोगों को संबोधित किया था तो उन्होंने कहा था "शासकों को 60 साल दिए आपने, अब सेवकों को 60 महीने दीजिए।" उसी जगह पर भाजपा राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी जी 2019 के लिए कुछ नए बोलों की तलाश करते हुए पाए गए। पिछले हफ्ते संपन्न हुए भारतीय जनता पार्टी के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में लोकसभा चुनाव के पहले बड़े-बड़े पार्टी नेताओं ने भाग लिया। कई नेताओं ने तो उस सम्मेलन के ऐसे चित्र छोड़े हैं जो शायद इतिहास बन जाएं। मसलन, मोदी और आडवाणी अगल-बगल बैठे उदास दिख रहे थे। शिवराज सिंह चौहान आडवाणी जी के चरण छू रहे थे। सभी भाजपा नेता खड़े होकर वंदे मातरम गा रहे थे उनमें शबाना रहमान भी थीं केवल एक मुसलमान जो मंच  से गा रही थीं। इसमें जो सबसे मर्मस्पर्शी दृश्य था वह था मोदी के हाथ में एक कमल और चिंतन की मुद्रा में डूबा उनका चेहरा । इस कमल को दिल्ली भाजपा के नेता मनोज तिवारी ने भेंट की थी। यह एक बिंब की तरह था । कमल के कुछ दल कमजोर पड़ कर झूल रहे थे और चिंतित से मोदी उसे देख रहे थे तथा उन्हें कुछ इस तरह से सजाने की कोशिश रहे थे ताकि वे पूरी तरह खिले नजर आएं। जब अमित शाह का भाषण शुरू हुआ वे चिंतन की उस मुद्रा से लौट आये ।  अमित शाह भाजपा के लोकसभा चुनाव का रोडमैप बता रहे थे । शाह ने अपने 67 मिनट के भाषण में मोदी जी का नाम 67 बार लिया और इससे बाकी वक्ताओं के लिए एक नजीर तय हो गई । पार्टी के इस सम्मेलन में कई नेता और प्रतिनिधि विचलित दिखाई पड़े । क्योंकि इसमें मोदी "नाम कीर्तन" के अलावा कुछ था ही नहीं ।  इससे दो बहुत सशक्त संदेश जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं में गए।
      राजस्थान ,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव हारने के बाद पार्टी का हौसला पस्त होता दिख रहा है। पार्टी के बड़े नेताओं ने भी अपने भाषण में इसका उल्लेख किया लेकिन उन्होंने ना इस पर कोई बहस की और ना ही इसके कारणों को बताने की चेष्टा की। इसका उल्लेख पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव में बहुत चलताऊ ढंग से किया गया था। कहा गया था कि "विभिन्न राज्यों  के विधानसभा चुनाव के बारे में हमारे अंदर मिली जुली प्रतिक्रिया प्रतिक्रियाएं हैं। भाजपा शासित सभी  राज्यों ने विकास और प्रशासन का अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है । हमें इससे सीखना चाहिए । यह निश्चय ही पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा और वह नई ऊर्जा के साथ लोकसभा चुनाव में काम कर सकेंगे।" सम्मेलन के महज 4 महीने पहले इसी अमित शाह ने घोषणा की थी पार्टी 50 वर्षों तक सत्ता में रहेगी और वही अमित शाह पिछले हफ्ते के शुक्रवार को यह कहते हुए सुने गये कि " 2019 के लोकसभा चुनाव पानीपत की तीसरी लड़ाई की तरह है जिसमे मराठों की पराजय ने 200 बरस तक गुलाम बना दिया।" क्या सचमुच अमित शाह ऐसा सोचते हैं कि चुनाव में पराजय के बाद कांग्रेस ब्रिटिश बन जाएगी और भाजपा गुलाम। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि "लोकसभा चुनाव का नतीजा सदियों तक प्रभावित करेगा।" जरा वाक्यों के पीछे की मनोदशा को देखें । जिस पार्टी का देश के 16 राज्यों में शासन है वह इस तरह सोच रही है और वह भी तब जबकि कुछ हफ्ते पहले पार्टी अपने को अपराजेय मानती थी। अचानक ऐसा क्यों सोचने लगी? विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा कुछ भ्रमित से दिख रही है। खासकर प्राथमिकताओं के बारे में उसमें भ्रम दिख रहा है। वह नहीं सोच पा रही है कि पूर्व की ब्राह्मण- बनिया पार्टी क्या अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों के कुछ हिस्से को शामिल करले। कहीं सवर्ण नाराज ना हो जाएं  इसी उद्देश्य से पार्टी ने सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10%  रिजर्वेशन की व्यवस्था की । क्योंकि ,जिन तीन राज्यों में भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा है वहां कहते हैं सवर्णों ने इस पार्टी के प्रति उदासीनता बरती थी। हालांकि ,उनका गुस्सा बहुत ही सीमित दायरे में था। उदाहरण के लिए राजस्थान में वसुंधरा राजे के प्रति क्रोध था । मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को लेकर गुस्सा था। अब भाजपा को चौहान के बाद सत्ता में आए कमलनाथ से कुछ सीखना चाहिए । कमलनाथ में हाल में कहा था कि वे विवादों से घबराते नहीं क्योंकि यह सब "एक्सपायरी डेट" के हैं।
          ऐसे समय में जब पार्टी खुद भ्रमित हो और मोदी अपना असर खोती जा रही हो तो बड़ा अजीब लगने लगता है। मोदी जी के बॉडी लैंग्वेज को ध्यान से देखिए वह थके - थके से लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है अपने कंधे पर पार्टी के सारे बोझ उठाए -उठाए वह थक से गए हैं और राष्ट्रीय सम्मेलन में कुछ कह नहीं पा रहे हैं ,महज इतना कि" एक हवा फैलती है मोदी आएगा सब ठीक हो जाएगा ।सब जीत जाएंगे सुनकर अच्छा लगता है।" विपक्षियों के प्रति मोदी जी का वह मजाकिया लहजा राजनीतिक विद्वेष बनता जा रहा है। 5 वर्ष पहले इसी रामलीला मैदान में मोदी जी के भाषण का जादू चलता था। वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे । वे कांग्रेस पर तंज करते हुए कहा करते थे कि "कांग्रेस ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में नहीं पेश किया है। जब हार निश्चित है कौन सी मां अपने बेटे को कटने के लिए युद्ध में भेज देगी।" उनकी बात सुनकर उपस्थित  जन समुदाय की तालियां गूंज उठती थी। वे कांग्रेस पर तीखा प्रहार करते हुए कहते थे कि " उनकी सोच है कि भारत मधुमक्खी का एक छत्ता है ,मेरी सोच है कि भारत हमारी माता है। उनके लिए गरीबी मन की अवस्था है, हमारे लिए दरिद्र नारायण  हैं । वे कहते हैं कि हम जब तक गरीबों की बात नहीं करें मजा नहीं आता, हमें गरीबों की सोच कर नींद नहीं आती।" लोग उनके भाषणों को पसंद करते थे। उनके व्यंग्य को, उनके हास्य पर तालियां बजती थी। बुलेट ट्रेन ,नदियों को आपस में जोड़ा जाना, नौकरियां इत्यादि से जुड़ी बातें लोगों को रोमांचित कर देती थीं। अब उसी स्थल पर 5 बरस के बाद उन्होंने दुबारा नेहरू गांधी परिवार पर तीखे व्यंग नहीं किए। उनकी बातें राजनीतिक लग रही थीं।
          2019 के लिए जो मुख्य विषय वस्तु होगी वह होगी "उनका भ्रष्टाचार और मेरी निर्दोषिता।" मोदी जी अपने सरकार की उपलब्धियां एक एक करके गिना रहे थे और उन बातों से गुरेज  कर रहे थे जिनसे 2014 में तालियां बजती थीं। नौकरियां ,विदेशों में जमा कालाधन, जिसका दस- पंद्रह प्रतिशत मतदाताओं के खाते में जमा कराया जाएगा, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट शहर और इसी तरह की अन्य बातें। राम लीला मैदान में पार्टी सम्मेलन में जो मोदी दिख रहे थे वह यकीनन 2014 वाले नहीं थे। उनका हौसला पस्त होता हुआ दिख रहा था।

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