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Tuesday, January 22, 2019

गरीबी और अमीरी की बढ़ती खाई

गरीबी और अमीरी की बढ़ती खाई

दावोस  में विश्व आर्थिक सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में ऑक्सफैम द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है की दुनिया के 26 अरबपतियों की दौलत दुनिया के 380 करोड़ निर्धनतम लोगों की कुल संपत्ति के बराबर है। यह संख्या दुनिया के आधे सबसे गरीब लोगों की है । नवंबर 2018 में जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान दुनिया में अमीर और अमीर हुए हैं और गरीब और गरीब। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बढ़ती हुई खाई गरीबी से लड़ने में दिक्कत पैदा कर रही है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर इन अमीरों पर उनकी दौलत का 1% वेल्थ टैक्स लगा दिया जाए तो उससे 418 अरब डॉलर की आमदनी हो सकती है। यह राशि स्कूल नहीं जाने वाले सभी बच्चों को शिक्षित करने और दुनिया के तीस लाख लोगों को मौत के मुंह से बचाने योग्य स्वास्थ्य सुविधाएं दी जा सकती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है दुनिया के 500 अरबपतियों की दौलत ढाई  अरब डॉलर रोज हिसाब से बढ़ी है। एक तरफ दुनिया के अमीरों की दौलत में 12% वृद्धि हुई है तो दूसरी तरफ दुनिया की आबादी में गरीब लोगों की संपत्ति में 11% की गिरावट आई है। नतीजा यह हुआ के  दुनिया के आधे गरीबों की कुल दौलत के बराबर संपत्ति रखने वाले लोगों की संख्या 2017 में 43 थी जो पिछले साल घटकर 26 हो गई। अमीरों की दौलत कितनी तेजी से बढ़ रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2016 में इनकी संख्या 61 थी। यानी, 61 सबसे अमीर लोगों की कुल दौलत दुनिया की आधी आबादी के दौलत से ज्यादा थी और दो ही वर्ष में 26 लोगों की कुल दौलत दुनिया के आधे गरीब से गरीब लोगों कुल संपत्ति के बराबर हो गई। दिलचस्प बात यह है कि आर्थिक अराजकता के 10 वर्ष के बाद अरबपतियों की संख्या दुगनी हो गई । यही नहीं 2017 और 18 के बीच हर दो दिनों में एक व्यक्ति अरबपति बनता था। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस की दौलत बढ़कर 112 अरब डालर हो गयी। इसका 1% इथोपिया के कुल स्वास्थ्य बजट के बराबर है । इथोपिया की आबादी साढे दस करोड़ है। ब्रिटेन में अगर  वेट को जोड़ दिया जाए  तो वहां के 10% सबसे गरीब लोग अपने देश के 10% सबसे अमीर लोगों से ज्यादा टैक्स देते हैं । गरीब लोग जहां 49% टैक्स देते हैं उनके मुकाबले अमीर 34% टैक्स देते हैं। ऑक्सफैम के निदेशक मैथ्यू स्पेंसर के अनुसार सकल विश्व में गरीबी घटी है लेकिन अमीरी और गरीबी के बीच की दूरी विकास को बाधित कर रही है।
      जिस तरह से हमारी अर्थव्यवस्थाएं संगठित हैं इसका मतलब है दौलत बढ़ रही है और नाजायज रूप में कुछ सुविधा प्राप्त लोगों के बीच जमा हो रही है। यह दुखी करने वाला तथ्य है । महिलाएं मातृत्व की देखरेख में कमी के कारण मर रहीं हैं ,बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही है। शिक्षा के अभाव में बच्चे गरीबी की राह पर चल पड़ते हैं । किसी को भी नहीं पढ़ पाने के कारण या फिर गरीब के किसी बच्चे को नीचे नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। बेशक दुनिया में इतनी दौलत है कि सब को अच्छा जीवन मिल सके लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसके लिए सरकारों को व्यवस्था करनी चाहिए कि अमीरों की दौलत और उनके व्यवसाय से हासिल टैक्स का सही उपयोग हो सके, ताकि लोगों का जीवन खुशहाल हो सके और गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई सरकारें सार्वजनिक सुविधाओं में कम निवेश कर जीवन को और कठिन बना रही हैं। इसमें बताया गया है कि 10,000 लोग हर दिन इलाज के बगैर मर जाते हैं। करीब 26 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं केवल इसलिए कि उनके माता-पिता स्कूल की फीस ,कपड़े और किताबें नहीं खरीद सकते । 
       सरकार को अमीरों से प्राप्त टैक्स का सार्वजनिक उपयोग करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है। सर्वाधिक  अमीर व्यक्ति पर टैक्स कम  लगता है । एक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने कहा था कि वैश्विक स्तर पर वेल्थ टैक्स लगना चाहिए और बढ़ती गैर बराबरी को रोकना चाहिए। पीकेटी इन हाल में विश्व असमानता रिपोर्ट जारी की है जिसमें दिखाया गया है कि 1980  से 2016 के बीच दुनिया के 50% गरीबों को संपत्ति में प्रति डालर के हिसाब से महज 12 सेंट प्राप्त हुआ है जबकि 1% अमीरों को प्रति डॉलर 27 सेंट प्राप्त हुआ है। ऑक्सफैम ने कहा है कि विकसित देश अपने देश में  असमानता को खत्म करने में नाकामयाबी के अलावा विदेशों में भी जो मदद का वादा किया उसे भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इससे गरीबी और बढ़ती जा रही है । विगत 40 वर्षों में चीन के तीव्र विकास ने अति निर्धनता को खत्म करने में अच्छी भूमिका निभाई। बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि 2013 से वहां गरीबी आधी हो गई जबकि अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में गरीबी बढ़ती जा रही है।
        जहां तक भारत का सवाल है यहां भी गरीबी बढ़ती जा रही है और अमीरी भी उसी तेजी से बढ़ रही है। वेल्थ इनिक्वालिटी -क्लास एंड कास्ट इन इंडिया 1961  - 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 10% अमीरों की दौलत इस अवधि में 55% बढ़ी है । अमीरों और गरीबों के बीच की बढ़ती दूरी जब तक कम नहीं होगी तब तक विकास की बातें सिर्फ किताबी रहेंगी और सब कुछ राजनीतिक छल माना जाएगा।

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