CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, January 15, 2019

खतरे भी हैं गठबंधन के

खतरे भी हैं गठबंधन के

हमारे देश में चुनाव की खबर इस समय चर्चा का विषय है और इस चर्चा के दौरान महागठबंधन पर जरूर बात होती है । यद्यपि राजनीतिक पंडित  गठबंधन की संभाव्यता पर बहुत लंबी बहस कर चुके हैं लेकिन उन्होंने यह नहीं परखा है कि यह कितना जरूरी है। दरअसल किसी भी पार्टी को गठबंधन में शामिल होने के तीन कारण हो सकते हैं। इनमें पहला और सब से साधारण कारण है कि वह पार्टी अपना मत आधार खोने के डर से गठबंधन में मिलती है।  आरंभ में हो सकता है कि परिणाम पक्ष में आएं लेकिन बाद में इससे पार्टी का कद छोटा होता जाता है। क्योंकि गठबंधन के अन्य घटक दल अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उसके कद को चुनौती देने लगते हैं। यह संजोग ही कहेंगे कि जिन मतदाताओं का मोहभंग हो चुका है वह गठबंधन में एक उचित विकल्प देखने लगते हैं। जो बहुत कट्टर या कहें बहुत पक्के मतदाता है उन्हें भी लगता है कि इसमें उनके आदर्श की या विचारों की भविष्य में पूर्ति हो सकती है। इसका सबसे बेहतर उदाहरण कांग्रेस का तमिलनाडु में  द्रमुक के साथ और उत्तर प्रदेश में  बसपा के साथ गठबंधन था । जहां से बाद में वह एक तरह से समाप्त हो गई और दोनों क्षेत्रीय दल वहां स्थापित हो गए। यही नहीं शिवसेना और भाजपा का गठबंधन भी इसका उदाहरण है । अपने प्रभाव क्षेत्र में  शिवसेना ने भाजपा के विकास को रोक दिया।
      गठबंधन का दूसरा कारण होता है  सत्ता में आने की हड़बड़ी। अगर कोई छोटी पार्टी जिसमें उसे अपने अस्तित्व को खतरा देने लगता  है तो वह किसी मजबूत दल के साथ हाथ मिलाकर सत्ता में आ जाता है, ताकि खुद को स्थापित कर सके । ऐसे गठबंधन में वह छोटा दल बड़े दल की कृपा पर निर्भर रहता है। यही कारण है कि बिहार में जदयू और राजद के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने  अपना बंटाधार कर लिया। उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा से अपना दल नामक एक बहुत ही मामूली राजनीतिक पार्टी का गठबंधन है वह इसी तरह की पीड़ा से ग्रस्त है । यही नहीं ,अगर गठबंधन करने वाली पार्टी प्रभावशाली है तो वह इसके माध्यम से अपना विरोधी उत्पन्न करती है।
          एक बहुत पुरानी कहावत है कि अवसर की कमी इंसान की क्षमता को समाप्त कर देती है । इसी तरह गठबंधन में पार्टी की क्षमता समाप्त हो जाती है। अगर गठबंधन करने वाली बड़ी पार्टी में क्षमता है ,उसके पास संगठित काडर आधार है तो वह गठबंधन के बाद अपने को स्थापित करने का मौका गंवा देती है। उड़ीसा में इसका उदाहरण स्पष्ट दिखता है । जहां पुराना गठबंधन घटक भाजपा बीजू जनता दल के लिए समस्या बन चुका है। कई बार  व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण विद्रोह की  आशंकाएं भी होती हैं। जनता पार्टी इसका उदाहरण है। वह चरण सिंह की महत्वाकांक्षाओं के कारण टूट गई। इसी तरह बिहार में भी हुआ। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने की गरज में गठबंधन से अलग होकर भाजपा से जा मिले।
             बेशक पार्टियां वोट पाने के लिए गठबंधन में शामिल होती हैं लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है। वास्तविकता तो यह है कई बार नतीजे विपरीत भी आ जाते हैं। खासकर  ऐसी स्थिति में जब गठबंधन का दूसरा घटक दल समान उद्देश्य का ना हो। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह और मुलायम सिंह का गठबंधन सबको याद होगा । इसकी कीमत पराजय के रूप में मुलायम सिंह को चुकानी पड़ी थी। क्योंकि कल्याण सिंह मुस्लिम विरोधी थे। यही हाल बंगाल में कांग्रेस और माकपा गठबंधन का हुआ। वहां भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा । क्योंकि दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं था। अतीत में दोनों पार्टियां हैं एक दूसरे की विरोधी थी और कई बार तो उन्हें टकराव भी हो चुका था। तेलंगाना में कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी के गठबंधन का यही हश्र हुआ ।  तेलुगू देशम पार्टी की छवि तेलंगाना विरोधी थी।
         तीसरी शर्त होती है गठबंधन की कि किसी बड़ी पार्टी के विकास को रोकने के उद्देश्य से कई पार्टियां एकजुट हो जाती हैं। यह सबसे महत्वपूर्ण शर्त है । क्योंकि इस समय जो राजनीतिक हालात हैं उसमें यही शर्त लागू होती है।  जब एक ऐसे विरोधी से गठबंधन जीत जाता है तो उस पर अपने वायदे पूरे करने के लिए दबाव पड़ने लगते हैं।  अगर ऐसा नहीं होता है तो जनता का मोह भंग हो जाता है उसके प्रति  जनता फिर उससे पल्ला झाड़ लेती है । इस तरह की स्थिति का सबसे बड़ा उदाहरण इंदिरा गांधी का सत्ता में लौट आना है। जनता पार्टी कुछ नहीं कर सकी।
        आज की स्थिति में अगर विपक्षी दलों का महागठबंधन बनता भी है और वह भाजपा को पराजित भी कर देते हैं तब भी इस पर अपने वायदे पूरे करने के लिए बहुत ज्यादा दबाव पड़ेगा और अगर गठबंधन के राजनीतिक ए अपने बड़ी-बड़ी  बातें नहीं पूरी कर पाए तो जनता फिर भाजपा की ओर देखने लगेगी। इसलिए कहा जा सकता है गठबंधन न केवल अवांछित है बल्कि उचित भी नहीं है।

0 comments: