कानून तो बन गया पर विपक्ष का रुख आत्मघाती
संसद में एक सौ तीन वें संविधान संशोधन विधेयक के पारित हो जाने पर सवर्णों को 10% आरक्षण देने का कानून बन गया। उस पर राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई और अधिसूचना भी जारी हो गयी। अब इसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों और अल्पसंख्यकों के कुछ हिस्से को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण मिलेगा । 8 जनवरी को यह बिल लोकसभा में कुछ ही घंटों की बहस के बाद पारित हुआ। इसमें 326 सदस्यों ने वोट डाले जिसने तीन ही विपक्ष में थे। दूसरे दिन राज्यसभा में भी 165 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट दिया और 7 विपक्ष में । लेकिन संसद के दोनों सदनों में विपक्ष का रुख देखकर ऐसा लगता था कि यह बिल पास नहीं हो पाएगा । लेकिन हां -हां ,ना- ना के बाद बिल पास हो गया। अब यहां प्रश्न उठता है कि क्या विपक्ष का यह रुख उसके लिए आगे चलकर घातक नहीं होगा? विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं ने इतनी बड़ी -बड़ी बातें कहीं कि सुनने वाला हैरान रह गया। जैसे कपिल सिब्बल ने कहा कि "आप 130 करोड़ की आबादी के देश में सिर्फ 4500 लोगों के फायदे के लिए विधेयक लाए हैं और वह भी बिना किसी आंकड़े के। मालूम है ,मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने में 10 साल लगे थे। " रामगोपाल यादव ने तो उसे सीधा 2019 के चुनाव को लक्ष्य में रख कर लाया गया विधेयक बताया । इसी तरह सतीश चंद्र मिश्रा ,डेरेक ओ ब्रायन, कनिमोई , प्रफुल पटेल आदि नेताओं ने भी लंबे-लंबे भाषण दिए । अगर चालू भाषा में कहें तो कह सकते हैं कि इन्होंने सरकार को जमकर धोया । ऐसा लगता था कि जब मत विभाजन होगा तो सरकार बुरी तरह हार जाएगी और विधेयक निरस्त हो जाएगा। लेकिन कुछ नेताओं को छोड़कर विपक्ष के सभी नेताओं ने दुम दबा लिया और विधायक भारी मतों से पारित हो गया । यहां तक कि राज्यसभा में भी जहां सरकारी पक्ष का बहुमत नहीं है वहां भी विधेयक दो तिहाई बहुमत से अधिक से पास हुआ।
पूरा देश राजनीति के तमाशे को देख कर रात के तीसरे पहर में हैरान था। सब को बराबरी का अधिकार देने वाले इस देश में सिर्फ कुछ ही घंटों में लोकतांत्रिक ढांचा बदल गया । जनता अवाक है। सांसदों को जनता की भावना का ध्यान रखना चाहिए था। जनता के बीच यह बात जा रही है कि यह विधेयक एक तरह से टेस्ट केस है। आगे चलकर देश को जातियों में बांटा जाएगा उसके बाद आर्थिक आरक्षण लग जाएगा। यह आर एस एस की चाल है । एक लंबी अवधि की योजना है। संविधान के जिन निर्माताओं ने जातिगत आरक्षण दिया था वे चाहते थे इसे स्थाई तौर पर नहीं रखा जाए लेकिन राजनीति ने पहली वोट के लोभ में इसे स्थाई कर दिया अब उसमें भी बदलाव किया जा रहा है। यही नहीं ,कुछ लोग यह मानते हैं कि 8 लाख रुपया साल की आमदनी का का मतलब 2100 रुपए रोज। जिस देश में 32 रुपए रोज गरीबी की रेखा है वहां 2100 रुपये रोज का क्या अर्थ होगा इसका अंदाजा सब कोई लगा सकता है। देश की 95% आबादी इसके दायरे में आ जाएगी। उधर जो 5 प्रतिशत लोग बचे हैं उन्हें लग रहा है उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है। अगर इनमें से बेहद अमीर लोगों को हटा भी दें तो लगभग 5 करोड़ लोग मध्यम वर्ग के ऐसे हैं जिन्हें इस का आघात महसूस हो रहा है और एक भावना पनप रही है कि जिस देश में प्रतिभा की कद्र ना हो वहां क्यों रह जाए। बहस के दौरान ना- ना कहकर हां कहने वाले नेता न जाने किस सोच से ऐसा कर गए । लेकिन ,शायद वह फायदे में नहीं रहेंगे और सारे विरोध के बावजूद मोदी मैदान मार ले जायेंगे। वह इसका विरोध कर मोदी की चाल को रोक सकते थे। लेकिन इतनी दूर कि शायद सोच नहीं पाए या हो सकता है उनके मन में कोई नई रणनीति हो। यह तो चुनाव ही बताएगा । उनका यह कदम जनता को आत्मघाती महसूस हो रहा है।
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