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Wednesday, January 30, 2019

बंगाल में भाजपा की मुश्किलें 

बंगाल में भाजपा की मुश्किलें 

बंगाल में भाजपा की राजनीतिक यात्राओं को हाईकोर्ट द्वारा मंजूरी दिए जाने को भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की व्यक्तिगत पराजय के रूप में प्रचारित कर रही है।शायद भाजपा को इस हकीकत का गुमान नहीं है कि बंगाल की राजनीतिक नैरेटिव या विमर्श  को प्रचार नहीं तय किया करते और ना ही इस तरह की यात्राएं। भारत में राजनीतिक सोच को आरम्भ से अबतक दिशा देने वाला एक विशेष वर्ग है। वह वर्ग सक्रिय रूप में कहीं दिखता नहीं है लेकिन विचार वही बनाता है।वह वर्ग कोलकाता का बंगाली एलीट क्लास है। बंगला और अंग्रेजी बोलने वाला यह क्लास राज्य में राजनीति के खेल को बनाता बिगाड़ता है। इस क्लास में बंगला मूल के अंग्रेजी और बांग्ला के जहीन कवि, लेखक, चित्रकार, फिल्मकार,नाटककार और बुद्धिजीवी शामिल हैं। ये लोग सामाजिक सांस्कृतिक उदारवाद, मानवाधिकार, धार्मिक-लैंगिक समानता ,सांविधानिक मान्यताओं, कारोबारी आजादी और असरदार कल्याणकारी योजनाओं के हिमायती हैं। इस वर्ग की ताकत को भाजपा कम कर के आंक  रही है। बंगाल के मतदाता इसी क्लास के विचारों पर यकीन  करते आये हैं। भाजपा चंद हिंदीभाषी लोगों और फ्लोटिंग पॉलिटिशियन्स को जमा कर यह जंग जीतना चाहती है।  बेशक यह क्लास अंग्रेजी और साधु बंगला में लिखता है पर  बंगाल तथा बंगला भाषा तथा बंगालियों का भक्त है। 1971 में तत्कालीन  पूर्वी पाकिस्तान में भाषा को लेकर उपजे विवाद ने एक देश बनवा दिया। इस क्लास में भाजपा के उभार को हिंदी पट्टी के वर्चस्व के रूप में देखा जा रहा है। इन्हें एक छोटा समुदाय मानकर इसकी ताकत को झुठलाना सही नहीं होगा। उसकी आलोचनाओं और ताकत में दम होता है। इसी वर्ग ने वामपंथ के बंधे बंधाये ढर्रे का विरोध करना आरंभ किया और सरकार गिर गयी। मुख्य मंत्री ममता बनर्जी कवि हैं , चित्रकार हैं और इसी कारण वे इस वर्ग की ताकत को समझती हैं। भाजपा इसकी ताकत को अनदेखा कर रही है और बाहरी शक्ति के रूप में बंगाल में पैर जमाने का प्रयास करती हुई दिख रही है। यह उसके लिए हानिकारक है।
   दूसरी बात कि भाजपा के नेताओं के समक्ष भारी भाषा समस्या है। पिछले दिनों मई और जुलाई में क्रमशः शांति निकेतन और मेदिनीपुर में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगला में दो दो वाक्य बोले। ये बहुत साधारण वाक्य थे और भाजपा यह समझने लगी है कि इससे वह भाषा का पुल बना लेगी। भाजपा के पास ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं है जो स्थानीय बंगला में  भाषण दे सके और जनता को प्रेरित कर सके। दिलीप घोष , मुकुल राय और बाबुल सुप्रियो में वह बात नहीं है। मुकुल राय संगठन के आदमी हैं और बाबुल सुप्रियो अभी जान नेता नहीं हो सके हैं। यह एक बहुत बड़ा मामला है । ममता जी भाषा का हथियार इस्तेमाल भा ज पा को हाशिये पर लाने की कोशिश में हैं। दूसरी बात कि एन आर सी को बंगाली विरोधी के रूप में पेश किया जा रहा है।
  2016 के विधान सभा चुनाव में भाजपा चौथे स्थान पर थी। लेकिन मई में पंचायत चुनाव में उसे दूसरा स्थान हासिल हुआ, विधान सभा उप चुनाव में भी यह दूसरे स्थान पर थी। यह नवापारा विधान सभा, उलुबेड़िया लोकसभा उपचुनाव में भी दूसरे स्थान पर थी। असम में एन  आर सी लागू कर उसने असमिया बोध तो जगा दिया लेकिन बंगाल वह उल्टा असर करेगा। बंगाली एलीट वर्ग इसे बंगाली विरोधी कह रहा है और टी एम सी को बंगला संस्कृति तथा बंगाली स्वभाव का रक्षक मानती है। यहां यह विचार चल रहा है कि एन आर सी हिन्दू मुलिम का मसला नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है बल्कि यह बंगला भाषियों से जुड़ा मसला है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे बंगाली गौरव से जोड़ दिया है। एक बार उन्होंने उसी संदर्भ में अपने भाषण में भी कहा था कि " बंगला बोलना कोई अपराध नहीं है। यह दुनिया की पांचवीं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भाजपा को बंगाल से क्या समस्या है? क्या वह बंगालियों की प्रतिभा और संस्कृति से आतंकित है? " भा ज पा के बड़े नेताओं ने इसी के लिए यात्रा की योजना बनाई। भाजपा  और संघ ने बंगाल के लिए  हिंदी में पोस्टर छपवाना काम कर दिया है। भाजपा कि योजना     यहां हिन्दू बंगालियों को लुभाने की है पर शायद वह नही जानती कि बंगाल में धार्मिक परंपरा और वैसी नहीं है जैसी हिंदी पट्टी में है। बंगाल की समृद्ध धार्मिक परंपराएं दुर्गा पूजा, काली पूजा और ईद के चारों तरफ घूमती हैं। बंगाल की राजनीतिक परंपरा धर्म निरपेक्ष है।
बेशक अदालत से तो भाजपा ने यात्राओं की जंग जीत ली लेकिन समाज मेष आज बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा और डर है कि कहीं हिंदू धर्म विक्रम के चक्कर में सामाजिक विद्वेष न बढ़ जाए । प्रशासन को इसके लिए तैयार रहना पड़ेगा साथ ही बंगाल के समाज को सचेत रहना पड़ेगा।

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