जल संरक्षण कर जीवन बचाएं , क्योंकि
भव इत्यच्युते रूपं भवस्य परमात्मनः
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे दौर के कार्यकाल के पहले मन की बात में जल संरक्षण पर बल दिया और कहा कि मीडिया से लेकर धार्मिक संगठनों तक इसे जन आंदोलन का स्वरूप बनाएं। उन्होंने इसी के साथ अपील की कि जल संरक्षण के पारंपरिक संगठन और इस काम में जुटे लोगों , गैर सरकारी संगठनों के बारे में जानकारी साझा करें ताकि एक डेटाबेस तैयार किया जा सके। मन की बात में प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण की महत्ता बताते हुए कहा कि हमारे देश में वर्षा का जल केवल 8% ही संरक्षित किया जाता है।
कैसा संजोग है कि रविवार को ही देवाधिदेव महादेव के दर्शन के लिए अमरनाथ की यात्रा का पहला जत्था "बम- बम भोले" के उद्घोष के साथ रवाना हुआ। अगर जल संरक्षण के संदर्भ में इस यात्रा को देखें तो बड़ा अजीब संजोग दिखेगा। शिव पुराण में जल संरक्षण की महत्ता बताते हुए कहा गया है :
संजीवनं समतस्य जगतः सलिलात्कम ।
भव इत्यच्युते रूपं भवस्य परमात्मनः ।।
सचमुच सत्य है कि जल शिव स्वरूप है। जल हमारी प्रकृति की अनमोल धरोहर है । पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पीने के लिए शुद्ध जल हमारे लिए जरूरी है। आंकड़े बताते हैं की धरती का दो तिहाई भाग जल से भरा हुआ है लेकिन तब भी पीने का शुद्ध पानी नहीं है। 97% जल महासागर है वह खारे पानी के रूप में है। 2% जल पहाड़ों पर जमी हुई है के रूप में है। सिर्फ 1% जल मनुष्य जाति के लिए उपलब्ध है। इसलिए जरूरी है कि हम पानी का मूल्य समझें। पानी अगर नहीं बचाया जाएगा, उसका संरक्षण नहीं किया जाएगा तो भविष्य में महा संकट उत्पन्न हो जाएगा। आज प्रधानमंत्री कोई अपील करनी पड़ रही है कि पानी की हिफाजत करें। अब तक हम ऐसा क्यों नहीं कर पाए? आजादी के बाद से अब तक सरकारों ने इस मसले को प्राथमिकता क्यों नहीं दी? आज लोगों को पीने के चुल्लू भर पानी के लिए भटकना पड़ रहा है या खरीदकर पीना पड़ रहा है। पानी के टैंकर से पानी हासिल करने के लिए घंटों कतार में खड़ा होना पड़ता है। चारों तरफ हाय हाय मची हुई है। तालाब- नदियां सूख रहीं है, पेड़ पौधे सूखते जा रहे हैं। जल की कमी से कृषि चौपट हो रही है। जो आने वाले दिनों में भयानक अन्न संकट के रूप में उपस्थित होगा न पानी मिलेगा न खाने को मिलेगा। कैसी होगी हमारी मातृभूमि? क्या स्वरूप होगा हमारी इस शस्य श्यामला धरती का? यह भयानक सवाल हमारे सामने है। और जो कुछ भी हुआ है उसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं।
ऋग्वेद में कहा गया है कि
शतपवित्रा: स्वध्या मदंतीर्देवीदेवनामपि यन्ति पाथः
ता इन्द्रस्य न मिनन्ति व्रतानि सिंधुभ्यो हणयं घृतवज्जुहोत हण्यं
जल का संकट हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है लेकिन लेकिन हम लापरवाह हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री को यह बताने की जरूरत पड़ रही है पानी बचाइए। उसकी हिफाजत कीजिए। यहां सबसे पहला सवाल है इस संकट के लिए जिम्मेदार कौन है? इसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। हमने अपनी विरासत को, हमने अपनी परंपरा को त्याग दिया और लापरवाही से जल को बर्बाद करने लगे। जल स्रोतों का दोहन करने लगे। जल का अपव्यय होने लगा। यह एक आदत बन गई। हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या के साथ जब जल अपव्यय बढ़ता गया कुआं नलकूप और तालाबों जैसे जल स्रोतों का भयंकर दोहन होने लगा तो धरती का जलस्तर गिरने लगा। औद्योगिकरण के फलस्वरूप कल कारखानों से निकला दूषित जल हमारी नदियों और जल स्रोतों को दूषित करने लगा। जल स्रोत दूषित हुए तो पीने के पानी का अभाव होता गया। धीरे-धीरे वह संकट के रूप में हमारे सामने उपस्थित हुआ।
हमारे पुरखे जल- नदी -पर्वत की पूजा करते थे। उन्हें यह सब विरासत में मिला था। लेकिन हम उस विरासत को संभाल नहीं पाए। जरा सोचिए हम अपने भविष्य को क्या दे रहे हैं ? पानी की दो बूंद के लिए तरसती जिंदगी! अभी भी समय है। गांव व शहरों में जिन जल स्रोतों की लंबे अरसे से अनदेखी करते आए हैं उसे संभालने की जरूरत है। सभी एकजुट होकर जल स्रोतों की चिंता में लगें तभी जल संकट से राहत मिल पाएगी। हमने अंधाधुंध विकास के नाम पर प्रकृति के साथ अन्याय किया। संसाधनों को समाप्त कर कंक्रीट के जंगल बिछा दिए गए। उधर, सरकारों ने कुछ ऐसी उम्मीद दिखाई कि जनता ने यह सारी जिम्मेदारी अपने कंधे से उतार कर सरकारों को दे दी। हमने इसे अधिकार मान लिया, जो कभी कर्तव्य हुआ करता था। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने धन्यवाद प्रस्ताव में एक बात बड़ी महत्व की कही थी कि हम अधिकार नहीं कर्तव्य को देखें। अपने कर्तव्य को पहचाने। मेरा कर्तव्य था सरकारों में उसे अधिकार में तब्दील कर दिया और सरकारें जब योजनाएं बनाती थी तो वहां भी लोगों के स्वार्थ आड़े आ जाते थे। अब जरूरत है हमारे पुराने जल स्रोतों का पुनरुद्धार किया जाए और इसके लिए हम सरकार का मुंह नहीं देखें। हम इसे अपना कर्तव्य समझकर मिलजुल कर यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें। जल स्रोतों की हिफाजत के लिए भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की बड़ी जरूरत है ।नारद पुराण में कहा गया है यदि मनुष्य परोपकारी ना हो तो वह मरे हुए के समान है । जल का संरक्षण ना केवल परोपकार है बल्कि हम अपने भविष्य के लिए, अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसी धरोहर की व्यवस्था कर रहे हैं जो उनके अस्तित्व के लिए ,उनकी प्राण रक्षा के लिए अनिवार्य है।
वैश्वानरो यस्वग्निः प्रविष्टस्ता आपो देवीरिह मामवन्तु
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