भारत की चांद पर दूसरी छलांग
भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सोमवार को एक और कीर्तिमान स्थापित किया । वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया। 3,850 किलोग्राम वजनी यह अंतरिक्ष यान आर्बिटर , लैंडर और रोवर के साथ गया है। पूर्ण स्वदेशी तकनीक से निर्मित चंद्रयान 2 में 13 पेलोड हैं। जिनमें आठ आर्बिटर में ,तीन पेलोड लैंडर विक्रम में और दो पेलोड रोवर प्रज्ञान में हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि लैंडर विक्रम का नाम भारतीय अनुसंधान कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है और 27 किलोग्राम वजनी प्रज्ञान का अर्थ है बुद्धिमता। पहले चंद्र मिशन की सफलता के 11 साल बाद यह दूसरा कदम उठाया गया है। संयोग की बात है कि पूरी दुनिया जब चांद पर मानव के कदम रखने अर्थ शताब्दी मना रही है उसी समय भारत ने चांद की ओर एक और छलांग लगाई। अत्यंत शक्तिशाली भारतीय रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3 एम 1 के जरिए चंद्रयान को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया। यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लंच पैड से किया गया। इसमें 978 करोड़ रुपए लगे हैं। यह कार्य 1 सप्ताह पहले ही होने वाला था लेकिन कुछ तकनीकी गड़बड़ी के कारण इसे रोक दिया गया था। अब से कोई 3 दिन पहले वैज्ञानिकों ने इसे प्रक्षेपित करने की घोषणा की और रविवार को शाम 6:43 पर प्रक्षेपण की 20 घंटे की उल्टी गिनती शुरू हो गई। क्रायोजेनिक लिक्विड ऑक्सीजन के ईंधन से संचालित यह यान 3,84,000 किलोमीटर की यात्रा कर अगले महीने के पहले हफ्ते में पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा । इस का मिशन है चांद पर पानी और मनुष्यों के रहने की संभावनाओं की तलाश के साथ साथ शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड को भी तलाशना। वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रयान 2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इस स्थान पर अभी तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुंचा है। यह इसरो का सबसे जटिल और अब तक का सबसे प्रतिष्ठित मिशन है। अब यहां प्रश्न उठता है कि हमारे वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ध्रुव का ही चुनाव क्यों किया ? ऐसा इसलिए किया गया कि इसके बारे में लोगों के पास बहुत थोड़ी जानकारी है। दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है और चूंकि यह क्षेत्र चंद्रमा की धुरी से थोड़ा झुका हुआ है इसके चलते इसके कुछ इलाके हमेशा छाया में रहते हैं। यहां बड़े-बड़े गड्ढे हैं जिन्हें कोल्ड ट्रैप्स कहा जाता है। इस क्षेत्र का तापमान शून्य से 200 डिग्री नीचे जा सकता है। जिसके कारण ना सिर्फ पानी बल्कि कई अन्य तत्व भी जमी हुई अवस्था में रहते हैं। इतने निम्न तापमान पर गैसें भी जम जाती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन कोल्ड ट्रैप्स में जो तत्व मौजूद हैं सौर मंडल के शुरुआती दौर के हैं, लगभग तीन अरब साल पहले के । सौर मंडल के शुरुआती दौर की कुछ और भी महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो सकती हैं। इन जानकारियों के फलस्वरूप ज्वाइंट इंपैक्ट हाइपोथेसिस पर भी रोशनी पड़ सकती है। इस हाइपोथेसिस के मुताबिक लगभग 4.4 अरब साल पहले पृथ्वी के आकार का ही एक विशाल पिंड "थिया" पृथ्वी से टकराया था और इस टकराव के बाद चांद वजूद में आया था। माना जाता है इस टकराव के बाद पिंड और धरती के चंद टुकड़े आपस में मिल गए और चांद बन गया। इसी हाइपोथेसिस की जांच के लिए या कहें आगे की जानकारी जुटाने के लिए प्रज्ञान अपने साथ कई तरह के यंत्र लेकर जा रहा है। प्रज्ञान में आधुनिक रडार भी लगे हैं जिनमें सिंथेटिक अपर्चर है। इस मिशन के पूरा होते ही भारत अमरीका ,रूस और चीन के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश हो जाएगा।
यह प्रक्षेपण केवल वैज्ञानिक ही नहीं है बल्कि भारत के अंतरिक्ष में बढ़ती महत्वाकांक्षा का प्रतीक भी है। चांद पर इसका उतरना भारतीय वैज्ञानिक महत्वाकांक्षा को चांद पर ले जाने के बराबर है। इस प्रक्षेपण का मकसद है चांद पर धीरे धीरे आराम से उतरना यानी सॉफ्ट लैंडिंग और फिर प्रज्ञान को संचालित कर देना। यह संचालन रोबोट के माध्यम से होगा। इसका उद्देश्य चांद की सतह का नक्शा बनाना होगा, खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना होगा और चांद के बाहरी वातावरण को स्कैन करना होगा। इस कार्य को सफलतापूर्वक करने के बाद चांद को लेकर हमारे वैज्ञानिकों की समझ और बेहतर हो जाएगी और इससे मानवता को लाभ पहुंचाने वाले नए-नए अनुसंधान किए जा सकेंगे। पूरी दुनिया की निगाहें भारत के मिशन पर लगी हुई हैं। यहां यह बता देना लाजिमी होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2018 को लाल किले की प्राचीर से कहा था 2022 या उससे पहले यानी आजादी के 75 साल में भारत के नागरिक हाथ में झंडा लेकर चांद पर जाएंगे और भारत मानव को अंतरिक्ष तक ले जाने वाला देश बन जाएगा। अब देखना है कि भारतीयों के कदम कब चांद पर पड़ते हैं।
0 comments:
Post a Comment