कश्मीर समस्या के हल की ओर सरकार का प्रयास
कश्मीर में अगले 6 महीने के लिए राष्ट्रपति शासन को संसद ने सोमवार को मंजूरी दे दी। इस दौरान सरकार ने कहा के यदि चुनाव आयोग कश्मीर में चुनाव कराने का निर्णय करेगा तो इस साल के अंत तक चुनाव करा दिए जायेंगे। कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का यह प्रस्ताव लोकसभा में 28 जून को ही पारित हो गया था। कश्मीर में जून 2018 से ही राष्ट्रपति शासन है। यह उस समय लगाया गया था जब वहां महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ भारतीय जनता पार्टी ने अपना संबंध तोड़ लिया था और सरकार गिर गई थी। राज्यसभा में जम्मू कश्मीर आरक्षण विधेयक 2004 में संशोधन भी पारित हो गया।
गृहमंत्री अमित शाह ने दिन भर की लंबी बहस का जवाब देते हुए कहा, सरकार जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ा कर खुश नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार वहां रिमोट कंट्रोल से शासन करना नहीं चाहती है, लेकिन चंद मुश्किलों के कारण यह उपाय करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ नहीं कराए जा सकते क्योंकि ऐसी स्थिति में वहां लगभग 1000 उम्मीदवार खड़े होंगे और सुरक्षाबलों ने उम्मीदवारों को सुरक्षा देने में अक्षमता जाहिर की है । अमित शाह के मुताबिक देशभर में तनाव के कारण पहले से ही सुरक्षा बल काफी उबे हुए हैं। विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद पर प्रहार करते हुए श्री शाह ने कहा कि वे चुनाव का वक्त तय नहीं करते यह तो चुनाव आयोग करता है । उन्होंने कहा कि, "आप की तरह हम चुनाव का वक्त नहीं तय करते हैं। अगर हम ऐसा करेंगे तो आप ही कहेंगे कि हम चुनाव आयोग को भी नियंत्रित कर रहे हैं । "उन्होंने आगे कहा हमारे पास राज्य सरकारों की कमी नहीं है देशभर में हमारी सरकारें हैं। चुनाव नहीं कराने का केवल सुरक्षा ही एकमात्र कारण है । राज्य प्रशासन और सुरक्षाबलों ने ही अभी वहां चुनाव नहीं कराने की सलाह दी थी।
इसके पूर्व लोकसभा में 28 जून को अपने संबोधन में गृह मंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर में कांग्रेस ने सभी पार्टियों से ज्यादा राष्ट्रपति शासन लगाया है और इसे लोकतंत्र के बारे में बात करने का अधिकार नहीं है। इसके पूर्व अमित शाह ने कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया था।
राज्यसभा में कांग्रेस की खिंचाई करते हुए अमित शाह ने कहा की मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में ही नहीं देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की इच्छुक थी। केवल आप लोग नहीं तैयार हो रहे हैं। अगर आप तैयार होते हैं तो मैं विधेयक कल ही पेश कर दूंगा। श्री शाह ने कहा यदि सदन के सभी सदस्य कश्मीर को देश का हिस्सा मानते हैं तो मुझे खुशी होगी। उन्होंने कहा कि कश्मीर को भारत से कभी अलग नहीं किया जा सकता। मोदी सरकार आतंकवाद को बरदाश्त बिल्कुल नहीं करेगी और वह जम्मू , कश्मीर और लद्दाख में समान विकास करने की इच्छुक है । उन्होंने कहा कि जन केंद्रित सभी योजनाएं चाहे व राज्य सरकार की हों या फिर केंद्र सरकार की जम्मू और कश्मीर के हर गांव में पहुंचती हैं, यहां तक कि राष्ट्रपति शासन के बाद भी । उन्होंने कहा इससे जम्हूरियत इंसानियत और कश्मीरियत का उद्देश्य जाहिर होता है। मोदी सरकार की जम्हूरियत इंसानियत और कश्मीरियत के प्रति प्रतिबद्धता से यह नहीं समझना चाहिए कि जो ताकतें भारत को विभाजित करना चाहती हैं उन ताकतों को बख्श दिया जाएगा, श्री शाह ने कहा उन्हें उनकी ही भाषा में उचित उत्तर दिया जाएगा।
गृह मंत्री ने यह भी कहा कि कांग्रेस को अपने ऐतिहासिक गलतियों का उत्तर देना होगा। हम इतिहास से सीखते हैं और कांग्रेस को अपने ऐतिहासिक गलतियों का उत्तर देना ही होगा। उसे बताना होगा कि जवाहरलाल नेहरू कश्मीर के मामले को लेकर राष्ट्र संघ में क्यों गए जबकि कश्मीर भारत में मिलने को तैयार था? जवाहरलाल नेहरू जनमत संग्रह के लिए क्यों तैयार हुए? उन्होंने यह भी कहा कि भारत में यह समस्या 70 वर्ष के बाद भी कायम है। इसलिए हमारे लिए जरूरी है कि हम इसकी समीक्षा करें और नया नजरिया अपनाएं हम विकास चाहते हैं। लेकिन, इसमें अलगाववादियों तथा आतंकवादियों के लिए कोई जगह नहीं है । गृहमंत्री ने जम्मू कश्मीर आरक्षण विधेयक 2004 में संशोधन विधेयक प्रस्तुत करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से 10 किलोमीटर की दूरी पर रहने वालों को शैक्षिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में 3% आरक्षण दिया जाए। इसके पूर्व यह सुविधा जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा के 6 किलोमीटर के भीतर रहने वालों युवकों के लिए थी। अब यह सुविधा अंतरराष्ट्रीय सीमा के समीप रहने वालों के लिए भी उपलब्ध होगी।
इन सबके बावजूद कश्मीर की जमीनी हालात यह बताते हैं कि वहां कट्टर इस्लाम सिर उठा रहा है जिसका सरकार को कड़ाई से मुकाबला करना पड़ेगा। भारत बहुसंख्यक वादी देश नहीं है लेकिन जम्मू-कश्मीर बन चुका है और इसमें अलगाववाद एक गंभीर समस्या छिपी हुई है। सरकार का उद्देश्य उस समस्या का विश्लेषण कर उसका हल ढूंढना सबसे जरूरी है। बेशक आरक्षण विधेयक, राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाया जाना इस समस्या के संधान के उपाय जरूर हैं।
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