CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, July 17, 2019

कर्नाटक का झमेला

कर्नाटक का झमेला

कर्नाटक मसले में या कहें कि कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक उठापटक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया है। अदालत ने कहा है कि यह मामला विधानसभा अध्यक्ष सुलझाएं । इसीके साथ गेंद फिर स्पीकर के पाले में आ गयी। कोर्ट ने कहा है कि बागी विधायकों पर व्हीप लागू नहीं होगी और ना ही उनपर  सदन में उपस्थित रहने की अनिवार्यता होगी। ऐसे में     अब सवाल उठता है कि क्या इस फैसले से अथवा  क्या अदालत के निर्णय से समाज में व्याप्त मूल भावनाएं खत्म हो  सकती हैं, और अगर ऐसा नहीं हो सकता है तो अदालत का फैसला दूरगामी ना होकर एक अस्थाई समाधान के रूप में कायम रहेगा।
       भारत का यह राजनीतिक सामाजिक चरित्र और अगर कर्नाटक के सियासत का इतिहास देखेंगे तो लगेगा कि इस राज्य के लिए ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। दरअसल पिछले साल चुनाव खत्म होने के बाद इसी सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने लगभग 14 महीने पहले कुछ ऐसा ही नाटक किया था। उन्होंने भी निर्वाचित प्रतिनिधियों को इसी तरह एक पक्ष से फोड़ कर एक सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया था। उन्होंने उन नेताओं को भारतीय जनता पार्टी से बचाने के लिए ऐसा किया था । भाजपा वहां खुद को बहुमत वाला दल बता कर सत्ता हासिल करना । पहले भी ऐसा हुआ था कहा जा सकता है। वहां  यह सब जनता के बीच कहावत बन चुका है। इस तरह के अलंकारिक कार्यकलाप अन्य राज्यों में भी हैं लेकिन कर्नाटक में इस तरह की विशेषज्ञता हासिल है। लेकिन, सवाल है कि इस तरह के हथकंडो का उद्देश्य क्या है? क्या जनता के प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? और क्या इस तरह के राजनीतिक हथकंडे लोकतांत्रिक संस्कृति को मजबूत कर सकेंगे? कर्नाटक में फिलहाल गठबंधन की सरकार है और उस गठबंधन में कांग्रेस तथा जनता दल  शामिल हैं। मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी जनता दल सेकुलर के प्रतिनिधि हैं। 224 सदस्यों वाले सदन में जनता दल सेकुलर के 37 सदस्य हैं और कांग्रेस के 78 विधायक तथा दो निर्दलीय हैं। जबकि विपक्षी दल भाजपा के कुल 105 विधायक हैं । शुरू से ही गठबंधन के सदस्यों के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे और इसके टूट जाने की खबरें अक्सर आती रहती थीं। भाजपा ने कुछ सदस्यों को तोड़ देने की लगातार कोशिशें की और इसे ऑपरेशन कमल के नाम से पुकारा जाता था। लोकसभा चुनाव के बाद जब भाजपा को कर्नाटक की 28 सीटों में से 25 सीटें हासिल हुई हैं तो गठबंधन में चरमराहट सुनाई पड़ने लगी थी।
         कुछ दिन पहले कांग्रेस के 10 और जनता दल सेकुलर के तीन सदस्यों ने  सदन की अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।  उन्हें वहां से उठाकर मुंबई के लग्जरी होटल में ले जाया गया। सारा मामला सुप्रीम कोर्ट में गया उधर भाजपा पर आरोप लगने लगे उसने एक निर्वाचित सरकार को गिराने के लिए अवैध हथकंडे अपनाए हैं । लेकिन यह सारा क्यों हुआ ? इसके पीछे एक नई कथा है। इस समूचे मामले के पीछे कई छोटे-छोटे कारक तत्व हैं, जैसे विलासिता पूर्ण रहन सहन, निजी विमान से आवागमन इत्यादि। हालांकि सरकार और गठबंधन के दल तोड़फोड़ के लिए भाजपा को दोषी बता रहे हैं लेकिन प्रश्न है कि सरकार ने पहले गठबंधन के भीतर असंतोष को फैलने का मौका क्यों दिया? जो दिख रहा है उसका पहला कारण है कि कांग्रेस ने खुद उत्तरी कर्नाटक के सबसे महत्वपूर्ण नेता को महीनों तक सरकार से बाहर रखा। वोक्कालिगा समुदाय के एक छोटे से समूह ने वहां के राजनीतिक हालात हो दिशा दिखाने की कोशिश शुरू कर दी। उधर लिंगायत गुट ने अपनी गतिविधि भी आरंभ कर दी। यही नहीं राज्य के दक्षिणी भाग में कांग्रेस और जनता दल सेकुलर शुरू से प्रतिद्वंदी रहे हैं और वहां के वोक्कालिगा समुदाय से उसके रिश्ते मधुर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं के 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस और जनता दल सेकुलर के मतों का प्रतिशत क्रमशः 36.34 प्रतिशत ,30.14% और 18.3% रहा है। ऐसे में कांग्रेस के महत्वाकांक्षी सदस्यों में गठबंधन के मूल पर सवाल उठाया जाने लगा और जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो उन्होंने पाला बदलने की कोशिश शुरू कर दी। उधर भाजपा ने उनकी तरफ हाथ बढ़ाया और वायदों की झड़ी लगा दी।
          आज भी हमारे देश में निर्वाचित सदस्य बुनियादी तौर पर खुद को जाति और समुदाय का सदस्य समझता है और जब संसाधन का बंटवारा होता है तो उसे उसी समुदाय या जाति की व्यापकता के आधार पर वे संसाधन मुहैया कराए जाते हैं। एक विधायक के रूप में निर्वाचित होने का मतलब समझा जाता है कि अन्य लाभ उसे प्राप्त होंगे और साथ ही मंत्री भी बनाया जाएगा ।  इसके कारण हर विधायक के भीतर एक विशेष प्रकार का लोभ समाया रहता है । केरल की राजनीति खोज का विषय है कि उसमें कैसे एक नया राजनीतिक ढांचा तैयार किया जा सके। एक सार्वजनिक संस्कृति का सूत्रपात किया जा सके जो इस तरह की सारी खामियों को दूर कर दे। लेकिन अभी जो हो रहा है उसके मद्देनजर यह सब मृगतृष्णा की तरह महसूस हो रहा है।

0 comments: