CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, July 8, 2019

तपती धरती बढ़ता संकट

तपती धरती बढ़ता संकट

धरती लगातार तप रही है और पानी का जमीनी स्तर तेजी से घट रहा है लिहाजा खेती और अन्य चीजें प्रभावित हो रही हैं। अभी हाल में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में अगले 10 वर्षों में काम के घंटों में 5.8% की कमी आएगी जोकि 3.4 करोड़ नौकरियों के खोने के बराबर है।  इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि और भवन निर्माण पर पड़ेगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका मुख्य कारण यह है की गर्मी के कारण दिमाग कम काम करता है और आपसी झगड़े ज्यादा बढ़ जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरी पृथ्वी गर्म हो जाएगी और इसका असर काम पर भी पड़ेगा। रपट के अनुसार 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा इसका प्रभाव काम के घंटों पर भी पड़ेगा।
          डर है कि सदी के अंत तक आधी दुनिया में हर साल तापमान के रिकॉर्ड टूट जाएंगे और ऐसा होता हुआ दुनिया के कई देशों में दिखाई भी पड़ रहा है। कुवैत और सऊदी अरब का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। हाल में मिली रिपोर्ट के अनुसार कुवैत का तापमान 52 डिग्री सेंटीग्रेड और सऊदी अरब का तापमान 63 डिग्री तक पहुंच गया था। दूसरी तरफ पाया गया है कि कनाडा के उत्तरी हिस्से में जमी बर्फ पिघलने लगी है। जबकि अनुमान लगाया गया था यह बर्फ 70 साल बाद पिघलेगी। बर्फ का पिघलना एक बहुत बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है। क्योंकि इस बर्फ के पिघलने से कई हजार टन ग्रीन हाउस गैस रिलीज होगी और इससे धरती का तापमान और तेजी से बढ़ेगा। जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है की तापमान बढ़ने से काम के घंटे कम होने लगेंगे। उससे भी कहीं खतरनाक संकेत यह मिल रहे हैं कि भारत में बड़ी आबादी मानसून पर निर्भर करती है यानी खेती बारी और सी फूड के कारोबार पर करोड़ों परिवार निर्भर हैं।  ग्लोबल वार्मिंग की वजह से  इस कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर दुगनी रफ़्तार से पिघल रहे हैं । इधर वैज्ञानिकों को डर है कि मानसून की कमी से भूजल स्तर में भारी गिरावट आ सकती है। नीति आयोग की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 21 बड़े शहरों में भूजल खत्म हो जाएगा। भूजल की कमी के कारण तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं  सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग दो लाख लोग हर साल केवल इसलिए मर जाते हैं कि उन्हें पीने का पानी नहीं मिलता है या साफ  पानी नहीं मिलता है। आबादी तेजी से बढ़ रही है और उसी के अनुसार पानी की मांग भी बढ़ रही है । 2019 का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगले 5 साल में वे देश के सारे घरों में पीने का पानी पहुंचा देंगे लेकिन जो हाहाकार मचा है उससे तो नहीं लगता है कि यह लक्ष्य आसान होगा।
        बात केवल पीने की पानी तक रहे तब भी कुछ गनीमत है लेकिन मानसून की कमी के कारण खरीफ फसलों की बुवाई भी घटती जा रही है। अभी तक जो बुवाई की खबर मिली है उसके अनुसार पिछले साल से इस बार 27% कम बुवाई हो सकी है। इस तरह के हालात से अभी से ही रोजगार और जीविका के उपार्जन के साधन तेजी से घटने लगे हैं और लोग अपना घर बार छोड़कर दूसरे इलाकों में जाने लगे हैं। पहले यह जाना अस्थाई था लेकिन अब यह स्थाई होता हुआ महसूस हो रहा है। हर साल विस्थापित होने की प्रक्रिया में तेजी आ रही है। वैश्विक स्तर पर शरणार्थियों पर काम करने वाली संस्था नार्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के अध्ययन में पाया गया है कि 2018 में दुनिया में 4.13 करोड़ लोगों को अपने ही देश में इधर से उधर जाकर बसना पड़ा इनमें से 1. 72 करोड़ लोग केवल मौसम संबंधी आपदाओं के कारण अपना बसा बसाया घर छोड़ कर चले गए। इनमें 94% लोगों को चक्रवात और सूखे के कारण इस विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा। एशियाई देशों को खासकर भारत ,चीन और फिलीपींस को इस दर्द का सबसे ज्यादा शिकार होना पड़ा है। इन देशों में विस्थापित होने वालों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा है। अगर रिपोर्ट को माने तो गत वर्ष केवल भारत में ही 26.8 लाख लोग प्राकृतिक आपदाओं की वजह से विस्थापित हुए। यह संख्या 2017 से दोगुनी है। केवल तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में आए चक्रवाती तूफानों से 6.5 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। उड़ीसा में हाल में आए फनी नामक चक्रवाती तूफान से लगभग एक करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, जिससे पांच लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था और इससे कुल 12हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ था। कहीं बारिश से और कहीं सूखे से अपना घर बार छोड़कर लोग जा रहे हैं जिंदगियां प्रभावित हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहे हैं और जिसके चलते प्राकृतिक आपदाएं की बढ़ रही हैं। अब अगर दुनिया नहीं चेती खास करके भारत में इसका कोई निदान नहीं खोजा गया तो बहुत बड़े संकट का मुकाबला करना होगा।

0 comments: