खेल केवल खेल नहीं रहा गया
इस बार क्रिकेट में इंग्लैंड विश्व चैंपियन बन गया। खबर है कि ऐसा पहली बार हुआ है। अखबारों में इस खेल के कई रोमांचक तथा भावुक पलों की चर्चा है और उस पर ढेर सारी समीक्षाएं भी हैं। लेकिन एक खेल को और वह भी जहां सारा कुछ धन पर निर्भर करता है वैसे खेल को इतना ज्यादा तरजीह देने की जरूरत क्या है? इसके कई समाज वैज्ञानिक कारण हैं। इन दिनों खेल केवल खेल ही नहीं जाते बल्कि इन्हें बड़ी सफाई से खेल पसंद करने वालों को बेचा जाता है। भारत में यह तो खास बात है। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल द्वारा किए गए अभी तक के सबसे बड़े मार्केट रिसर्च सर्वे के अनुसार पूरी दुनिया में क्रिकेट के एक अरब चाहने वाले हैं उनमें 90% केवल भारत में है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2016 में 43 अरब क्रिकेट के चहेते थे जो केवल 2 वर्षों में यानी 2018 में बढ़कर 51 अरब हो गए। यह वृद्धि 9% की दर से हुई है। अन्य खेलों, जैसे कबड्डी और क्रिकेट के चाहने वालों की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन वे क्रिकेट के समान नहीं हैं। भारत में क्रिकेट को चाहने वालों की संख्या अन्य खेलों के मुकाबले 65% ज्यादा है जो हर साल बढ़ता ही जा रहा है। क्रिकेट लीग भी अपने लिए दर्शकों और चाहने वालों की जमात तैयार कर रही है। इसकी मिसाल इस बात से मिल सकती है कि इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत 2008 में हुई यानी लीग बिल्कुल नई है और एक आंकड़े के मुताबिक केवल प्रायोजकों के माध्यम से इसने एक अरब डॉलर की आय की। यह राशि मेजर लीग बेसबॉल से बहुत ज्यादा है जो 1969 में शुरू हुई थी और उस वर्ष 892 मिलियन डॉलर आमदनी हुई थी। यही नहीं क्रिकेट मार्केटिंग का एक बहुत बड़ा मंच बन गया है। ब्रॉडकास्टिंग ऑडियंस रिसर्च काउंसिल के एक अध्ययन के मुताबिक 2016 से 2018 के बीच क्रिकेट के विज्ञापनों में 14% की वृद्धि हुई है। बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है। स्टार इंडिया जैसे नेटवर्क जिसने 38.5 बिलियन का भुगतान केवल इसलिए किया था कि भारत में होने वाले मैच का उसके पास प्रसारण अधिकार हो। उसे इसके मार्केटिंग की क्षमता का एहसास अच्छी तरह है।
क्रिकेट और राजनीति में भी एक संबंध भी है। कई पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी जैसे गौतम गंभीर ,मोहम्मद अजहरुद्दीन ,नवजोत सिंह सिद्धू और इमरान खान ने खिलाड़ी के रूप में अपनी लोकप्रियता को भुनाया है और राजनीतिक सत्ता हासिल की है। भारत और पाकिस्तान में जब मैच होते हैं तो राष्ट्रवाद का बुखार देखने के लायक होता है। 2019 का भारत-पाकिस्तान विश्व कप मैच सबसे ज्यादा देखे जाने वाला प्रसारण था। आंकड़ों के मुताबिक इसे 229 मिलीयन दर्शकों ने देखा। मैच खेले जाने कुछ हफ्तों पहले भारतीय वायु सेना का पायलट अभिनंदन वर्थमान को पाकिस्तान में पकड़ लिया गया था और शांति के बिंब के रूप में उसे बाद में रिहा कर दिया गया। जब मैच में भारत के हाथों पाकिस्तान पराजित हुआ तो कई लोगों ने कहा कि यह भारत की विजय है, उसके कप्तान की विजय है। यहां तक कि गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट किया कि " यह पाकिस्तान पर दूसरा हमला है।" भारत-पाकिस्तान मैचों में राष्ट्रवादी बोल इतने ज्यादा निकलते हैं कि मैच का परिणाम गुम हो जाता है। आज क्रिकेट खेल नहीं रह गया है। यह खेल दो टीमों के बीच में खेले जाने वाला महज एक आयोजन नहीं है बल्कि यह खेल की आर्थिक शक्ति भी है। उदाहरण के लिए जब आईपीएल के प्रसारण अधिकार की नीलामी हुई तो स्टार इंडिया ने 16,347.5 करोड़ की बोली लगाकर इसे हासिल किया। इसके बाद यह खेल कंपनियों और क्रिकेट के चहेतों के बीच का एक सेतु बन गया। आधुनिक क्रिकेट से होने वाला विशाल लाभ एक बहुत बड़ा व्यापारिक मंच है और क्रिकेट केवल खेल नहीं रह गया है बल्कि यह एक ऐसा मंच हो गया है जहां से ज्यादा से ज्यादा दर्शक किसी चीज को देखते हैं। क्रिकेट संभवत पहला और सबसे बड़ा ऐसा मंच बना है जिससे कई और हित जुड़े हुए हैं और कई और दावेदार हैं। इस परिवर्तन के चलते यह खेल केवल मैच तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह खेल के अलावा मनोरंजन, विज्ञापन प्लेटफॉर्म, जनसंपर्क का तंत्र और तकनीकी जादूगरी में बदल गया है।
क्रिकेट मैच के माध्यम से बाजार पैदा करने का यह काम सबसे पहले कैरी पैकर ने किया था। इसका इतना ज्यादा वाणिज्यीकरण हो गया है कि क्रिकेट का मतलब ही खत्म हो गया है और यह नए -नए बाजार तैयार करने की एक तकनीक बन गया है। इसीलिए खेलों की अवधि लगातार छोटी होती जा रही है, ताकि दर्शक इसे ज्यादा से ज्यादा बंधे रहें। इसके नियम भी बदल रहे हैं।
क्रिकेट में जो खेल का उत्साह है उस पर राजनीतिक और व्यापारिक हितों को साधने वालों का कब्जा हो गया है। खेल के साथ-साथ राष्ट्रीय गौरव भी इससे जुड़ गया है। मैच जीतना अब राजनीतिक विषय बन गया है, जिससे ज्यादा से ज्यादा व्यापारिक हित जन्म ले रहे हैं। भारत पाकिस्तान के मैच का ही उदाहरण लें। मैच के दौरान उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और राजनीतिक ज्वार को क्या रोका जा सकता है? अब, यानी अति राष्ट्रवाद के इस युग में खेल और राजनीति में एक अंतर्संबंध पैदा होता जा रहा है। क्रिकेट के मैच का आर्थिक पक्ष केवल इस बात से पता चलता है कि मैच फिक्सिंग की घटनाएं इसमें आम होती जा रही है। हालांकि इससे खेल की साख और उसके प्रति सम्मान घटता जा रहा है और खेल तथा मनोरंजन के अंतर को समझ पाना बड़ा कठिन हो गया है। जहां यह अति उत्तेजक होता जा रहा है वहीं इसे नियंत्रित करने वाले और इसके नतीजों को तय करने वाले भी बढ़ते जा रहे हैं। मैच फिक्सिंग एक नए तरह का अवैध कारोबार बनता जा रहा है। इसके खतरों से सावधान रहना जरूरी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है किक्रेट अब सिर्फ खेल नहीं एक बाजार बन गया है जहां तरह-तरह के हित केंद्रित रहते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।
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