राहुल गांधी का इस्तीफा
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए कांग्रेसियों ने बहुत दबाव डाला यहां तक कि एक कार्यकर्ता ने आत्मदाह की धमकी दे डाली, पर राहुल अपनी बात पर कायम रहे। अंततोगत्वा बुधवार की दोपहर उन्होंने औपचारिक तौर पर पद त्याग दिया। इसके बाद उन्होंने त्यागपत्र को ट्वीट किया । उनके त्यागपत्र को पढ़ने से उनके फैसले के बारे में बहुत कुछ समझ में आता है। सबसे पहले ऐसा लगता है कि विपक्ष का एक असहाय नेता चारों तरफ से ठगा हुआ महसूस कर रहा है। राहुल गांधी के पत्र से यह स्पष्ट होता है कि वे अपने पार्टी कार्यकर्ताओं, चुनाव आयोग, अन्य संस्थानों तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्वव्यापी प्रभाव से आतंकित है ।
राहुल गांधी के त्यागपत्र को पढ़ने से ऐसा लगता है कि वह महसूस करते हैं कि यह पद त्याग उनके परिवार द्वारा दी गई एक और कुर्बानी है। पहले इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश के लिए स्वयं का जीवन कुर्बान कर दिया था। यही नहीं उनकी मां सोनिया गांधी ने 2014 में प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला कर एक तरह की कुर्बानी ही दी थी। कुर्बानी का यह भाव उनके चार पृष्ठ के पत्र की अंतिम कुछ पंक्तियों में साफ झलकता है। उन्होंने लिखा है कि है "भारत की आदत है कि जो शक्तिशाली है वह सत्ता पर काबिज रहेगा। कोई भी व्यक्ति सत्ता को त्यागना नहीं चाहता।" हमने भी कुर्बानी दी है। अपने विपक्षी को पराजित नहीं कर सकते । मैं एक कांग्रेसी की तरह पैदा लिया हूं और पार्टी मेरे खून में है तथा हमेशा कायम रहेगी।
अन्य विपक्षी नेताओं की तरह राहुल गांधी ने ईवीएम मशीन पर सवाल नहीं उठाया है बल्कि चुनाव में निष्पक्षता के संबंध में अपने संदेह को स्पष्ट किए हैं। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ नहीं लड़ा बल्कि उसने भारतीय शासन के संपूर्ण तंत्र से मुकाबला किया है। यही नहीं राहुल गांधी ने समस्त पैरोकारों, जैसे स्वतंत्र प्रेस, स्वतंत्र न्यायपालिका और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा है अब से यह एक खतरा है कि चुनाव भारत के भविष्य का निर्णय नहीं करेगा यह एक रस्म बनकर रह जाएगा। राहुल गांधी ने लिखा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य संस्थानों के खिलाफ जोर आजमाया और ऐसे मौके पर मैंने खुद को अकेला पाया और मैं इसके लिए गौरवान्वित हूं। उन्होंने लिखा है कि उनके साथियों ने इस जंग में उनका साथ नहीं दिया। इस चुनाव में पराजय के लिए कई लोग जिम्मेदार हैं।
राहुल गांधी ने अपने पत्र में इतना कुछ लिखा है, कई लोगों को जिम्मेदार बनाया है लेकिन उन्होंने इसमें कहीं भी यह नहीं लिखा कि उनकी तरफ से भी कुछ ग़लतियां हुई हैं। राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के लोगों पर दोष लगाए हैं, संघ, प्रधानमंत्री ,भाजपा के आर्थिक संसाधनों और विभिन्न संस्थानों को दोषी बताया है। लेकिन कहीं भी यह नहीं बताया कि उनकी क्या गलती थी। हो सकता है कि राफेल सौदे को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाया जाना गलत रहा हो ,लेकिन राहुल ने इसे नहीं स्वीकारा है। पार्टी के जो नेता यह चाहते हैं कि राहुल गांधी इस इस्तीफे को वापस ले लें उन्हें इन पंक्तियों का अर्थ समझना चाहिए। राहुल ने कहा है कि वे कांग्रेस के आदर्श के लिए पूरी ताकत से अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी लिखा है की वे पार्टी के मामलों में सक्रियता से जुड़े रहेंगे ,"मैं हमेशा उपलब्ध हूं जब पार्टी को मेरी सेवा की जरूरत पड़ेगी।" राहुल गांधी का त्यागपत्र बताता है कि भविष्य में कई कठोर निर्णय लेने होंगे।
सब कुछ मिला कर ऐसा लगता है राहुल गांधी में तनाव के साथ साथ उम्मीदें भी कायम हैं।
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