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Thursday, July 25, 2019

कश्मीर पर ट्रंप का झूठ 

कश्मीर पर ट्रंप का झूठ 

इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खासकर जो दक्षिण एशिया के मामलों में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं उनमें एक कथा चल रही है वह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से कश्मीर में मध्यस्था के बारे में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऑफर । इस कथा में एक थ्रिलर फिल्म की तरह नए-नए क्लाइमेक्स आ रहे हैं और लोग सांस रोककर इंतजार कर रहे हैं कि अब डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से इसमें क्या नया जोड़ा जाएगा। यह झूठ तो चारों तरफ फैल गया है कि  नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर पर मध्यस्था करने के लिए कहा था। 
वैसे दोनों देशों के बीच कोई भी समझौता व्यर्थ है 1972 में शिमला समझौता हुआ था जिसमें यह कहा गया था कि दोनों देश एक दूसरे से मतभेद मिटाने का प्रयास करेंगे और द्विपक्षीय बातचीत करेंगे 1999 में लाहौर समझौता हुआ था समझौते पर अटल बिहारी बाजपेई और नवाज शरीफ पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें कहा गया था थी शांति और सुरक्षा का वातावरण दोनों देशों के बीच सबसे महत्वपूर्ण है और जो मसला है जिसमें जम्मू कश्मीर भी शामिल है उसे सुलझाना  इस उद्देश्य के लिए दोनों देशों के लिए जरूरी है बाद में दोनों राष्ट्रों में यह भी कहा की वह वार्ता के जरिए इस विवाद को सुलझा एंगे किन क्या हुआ
           भारत सदा से बीच-बचाव से दूर रहना चाहता है भारत के किसी भी नेता को यह पसंद नहीं है की कश्मीर का मसला हमेशा के लिए समाप्त हो जाए अटल बिहारी वाजपेई और मनमोहन सिंह ने कोशिश की थी कि इस मसले को सुलझाया जाए लेकिन वह कोशिश बहुत कामयाब नहीं हो सकी सबसे बड़ी समस्या है  भारत के पास जो है स्थान उसे चाहता है भारत लेकिन भारत को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं है अब किसी भी तरह की मध्यस्था भारत को ही घाटे में रखेगी और इससे शांति  छिन्न भिन्न हो जाएगी अब मामला फिर उभरा है
अब क्या डॉनल्ड ट्रंप इस बात पर नए एंगल से क्रोध जताएंगे  या कुछ और कहेंगे ? भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात को संसद में दोहरा कर एक तरह से ट्रंप को झूठा कायम कर ही दिया है। मीडिया में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान आ गया है कि उन्होंने कहा है कि यदि भारत और पाकिस्तान आग्रह करें तो कश्मीर मसले पर मध्यस्था के लिए तैयार हैं। लेकिन भारत के  प्रधानमंत्री ने उनसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा है। भारत ने अपनी राय स्पष्ट कर दी है। अब यह दो बातें सामने आती हैं। पहली कि ,अगला कोई भी विवाद अगर वह उभरता है तो यह मसला पृष्ठभूमि में चला जाएगा और दूसरा इजरायल ,सऊदी अरब के अलावा किसी भी देश के पास ट्रंप से निपटने का कोई भी तरीका नहीं है । हालांकि  ट्रंप को  इस तरह के  लूज टाक करने की आदत है ।  वाशिंगटन पोस्ट ने  लिखा है कि राष्ट्रपति बनने के बाद नरेंद्र मोदी  10 हजार  से ज्यादा  बार झूठ बोल चुके हैं  उन्होंने  सार्वजनिक मंचों पर  विदेश नीति के मामले में भी नौ सौ बार झूठ बोला है  इधर यह पूरी तरह सच है कि नरेंद्र मोदी ने ट्रंप से मध्यस्थता जैसी कोई बात नहीं की है और कभी नहीं की है। नरेंद्र मोदी में एक सबसे बड़ी खूबी है कि वे कायदे कानून से चलने वाले आदमी हैं और अपने अफसरों द्वारा तैयार किए गए ब्रीफ से तिल भर भी इधर-उधर नहीं होते हैं।   डोनाल्ड ट्रंप जानबूझकर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। लेकिन ऐसा क्यों ? यह बात महत्वपूर्ण नहीं है की ट्रंप ने क्या कहा? विचारणीय प्रश्न है ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा और यह मामला आगे क्या स्वरूप बदलेगा?
          यह बात संदेह से परे है कि हमारी अर्थव्यवस्था मंदी में चल रही है और भारतीय नेताओं की आदत है कि वे समस्याओं पर पर्दा डालकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं । उधर घरेलू नीतियों में नाकामयाबी के कारण विदेशों में तैनात हमारे राजनयिकों के पास बहुत सीमित विकल्प रहते हैं और वह विकल्प भी व्यवहारिक नहीं रह जाते। यहां दो बातें स्पष्ट दिख रही हैं। पहली ,वे यानी हमारे राजनयिक समय रहते संकेतों को पहचान नहीं सकते या फिर शीर्ष स्तर पर उन्हें कोई सुनता नहीं है। 2012 से 16 के बीच जब ओबामा का कार्यकाल था उस समय सब ने महसूस किया अमरीका भारत से ऊब रहा है। ऊबने का कारण क्या है? पेटेंट का मामला हो या कोई अन्य। ट्रंप ने उस प्रक्रिया  के प्रभाव  को तेज कर दिया है। जरा गौर करें कि कई बहाने बनाकर गणतंत्र दिवस समारोह में आने का भारत का न्योता ठुकरा दिया और ठुकराने की प्रक्रिया में एक महीना लग गया। उसी दौरान वे सऊदी अरब गए और उस देश से अपने नफरत को भुला कर उन्होंने 110 अरब डालर के हथियार खरीदकर समझौता किया। यही  नहीं अगले 10 वर्षों में सऊदी अरब ने अमरीकी सरकार से 350 अरब डालर की खरीदारी की प्रतिबद्धता स्पष्ट की। इसके बाद उन्होंने कतर पर निशाना साधा और कहा कि वह बहुत उच्च स्तर पर टेरर फंडिंग कर रहा है। कतर की सरकार ने संकट के अंदेशे को भाप लिया और उसने उसे टालने के लिए कुछ ही महीनों के भीतर अरबों डॉलर के सौदे की प्रतिबद्धता जताई । भारत को इससे समझ लेना चाहिए था और सतर्क हो जाना चाहिए था। लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया उल्टे उसने ट्रंप को लीडरशिप सम्मलेन में वक्ता के रूप में आमंत्रित कर लिया। भारतीय सोचते हैं कि  वह इन तरीकों से राष्ट्रपति को खुश कर लेगा लेकिन यह गलत है।  फिर भी कोई सीख लेने के लिए सरकार तैयार नहीं है। भारत और अमरीका के रक्षा और विदेश  मंत्रियों की बैठक टल गई और कहा गया कि इस अवधि में पहले से काम तय किए जा चुके हैं । इसके बाद भारत ने अमरीका के साथ दो समझौते किए लेकिन इन समझौतों से अमरीका को कोई ठोस फायदा नहीं हुआ और नतीजा ये हुआ कि सीमा शुल्क को लेकर भारत के खिलाफ ट्रंप ने जो ट्वीट किया और वह किसी से छिपा नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया कि "भारत लंबे समय से अमरीकी उत्पादों पर मनमाना शुल्क लगाता रहा है। अब यह बरदाश्त नहीं हैं।" इसके बाद कश्मीर पर रूस का बयान आया इसमें कहा गया कि अफगानिस्तान का समाधान कश्मीर में निहित है। भारत ने इस पर कोई विरोध नहीं किया उल्टे 9 अरब डालर का सौदा कर लिया। इस घटना के परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान की स्थिति से तुलना करें। पाकिस्तान अफगानिस्तान के मामले में ट्रंप को बहुत कम रियायत देता है लेकिन अमरीका को एहसास है कि उसके पास अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिए वह उसे तरजीह देता है। इन सारे मामलों को एक साथ देखें तो कुछ हासिल नहीं होगा। ऐसे हालात के लिए भारत खुद जिम्मेवार है । उसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के इन संकेतों को पढ़ना चाहिए था। लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया । अब अगर अमरीका भारत से इसकी कीमत वसूलना चाहेगा तो इसमें हैरत नहीं है। अब सवाल उठता है कि इस कीमत का आकार कितना बड़ा होगा, कितना व्यापक होगा और उसका स्वरूप क्या होगा? यह निर्भर करता है कि ट्रंप किस पर भरोसा करते हैं ,भारतीय अर्थव्यवस्था की हकीकत पर या मोदी जी के भाषणों पर। आने वाले दिन भारत के लिए खासकर भारत अमरीका संबंधों के लिए कठिन पर होने वाले हैं। हमें सतर्क रहना होगा।

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