कर्नाटक का गहराता संकट
कर्नाटक में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। वहां कांग्रेस और जनता दल सेकुलर की मिली जुली सरकार के सभी मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिए हैं ताकि मंत्रिपरिषद का पुनर्गठन किया जा सके और नाराज विधायकों को उसमें शामिल किया जा सके, जिससे लड़खड़ाता हुआ गठबंधन फिर से खड़ा हो सके। कर्नाटक में दो निर्दलीय विधायक एच नागेश और एच शंकर को गत 14 जून को सरकार में शामिल किया गया था ताकि आंकड़ों खेल का समायोजन हो सके। पिछले शनिवार को कर्नाटक में गठबंधन सरकार के 13 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए थे और उसके बाद वहां 224 सदस्य वाली विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 104 हो गई। जिसमें कांग्रेस के 69 और जनता दल सेकुलर के 34 सदस्य हैं तथा एक बसपा का विधायक है। जबकि ,भाजपा के कुल विधायकों की संख्या 107 है जिनमें भाजपा के 25 और निर्दलीय दो हैं । कांग्रेस नेताओं ने गठबंधन को कायम रखने का विश्वास जाहिर किया है ।साथ ही उन्होंने इन सारी गड़बड़ियों के लिए भाजपा को दोषी बताया है और कहा है यह भाजपा विधायकों को मंत्री पद और पैसे का लोभ देकर यह सब करा रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के सी वेणुगोपाल में कहा है कि "कुछ विधायकों की शिकायतें हो सकती हैं और कुछ तो मंत्रिमंडल के विस्तार की बात कर रहे हैं और पार्टी के व्यापक हित में सभी मंत्रियों ने इस्तीफे दिए हैं। उन्होंने कहा कि जिन विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं वह वापस चले आएं और पार्टी को मजबूत बनाएं । हम समझते हैं कि वे जरूर आएंगे और सरकार कायम रहेगी।" इसके साथ ही उन्होंने कहा कि " सरकार को गिराने का भाजपा का 1 साल में यह छठा प्रयास है।"
उधर कर्नाटक के भाजपा नेताओं के अनुसार अगले 2 दिनों में और विधायक इस्तीफे दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश पर 13 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने की दबाव बढ़ेगा । सोमवार की सुबह निर्दलीय विधायक एच नागेश इस्तीफे के बाद गठबंधन की सरकार को बचाने के लिए जो भी खिड़की खुली थी वह बंद होती नजर आ रही है । जिस जल्दबाजी में नागेश को बंगलुरु से मुंबई ले जाया गया उससे तो लगता है कि भाजपा तख्ता पलटने की तैयारी में है। कुछ विश्लेषक यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि अगर वहां सरकार नहीं बनती है तो चुनाव हो सकते हैं। लेकिन यह सहज बुद्धि का सवाल है कि कोई भी विधायक इतनी जल्दी चुनाव नहीं चाहता। चूंकि , भाजपा के बारे में इन दिनों कहा जा रहा है कि वह स्थाई सरकार दे सकती है इसलिए गठबंधन से असंतुष्ट विधायक निकलना चाहते हैं ।
अब जैसी की भाजपा की योजना है कि बुधवार तक स्पीकर अगर 13 विधायकों के इस्तीफे मंजूर नहीं करेंगे तो अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू होगी। इसके लिए 12 दिन का नोटिस देना होता है और इस बीच दलबदल की शतरंज शुरू होने की उम्मीद है। भाजपा को महसूस हो रहा है कि अगर दल बदल का खेल लंबा चले तो उसे फायदा होगा। फिलहाल अगर विधानसभा अध्यक्ष 13 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लेते हैं तो वहां की 224 सदस्यों वाली विधानसभा की वास्तविक संख्या 211 हो जाएगी और ऐसी स्थिति में सरकार बनाने के लिए महज 107 विधायकों की जरूरत है। जबकि भाजपा के कुल विधायकों की संख्या 105 है यानी बहुमत से केवल दो विधायक कम। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए अपनी सरकार को बचाना टेढ़ी खीर हो जाएगा।
ताजा स्थिति में कुमार स्वामी सरकार के पास केवल दो विकल्प बचे हैं। पहला कि मुख्यमंत्री इस्तीफा दे दें और असंतुष्ट विधायकों के प्रतिनिधि को सत्ता सौंप दें। लेकिन यह आसान नहीं है। इसमें मनोवैज्ञानिक अवरोध बड़ा गंभीर है। देवगौड़ा परिवार को यह त्याग शायद मंजूर नहीं होगा। दूसरा विकल्प है कि विधान सभा का अधिवेशन फिलहाल टाल दिया जाए। लेकिन इसके लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी है और राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है। वैसी सूरत में ऐसा होता दिखना शायद बड़ा कठिन है। कांग्रेस अपने असंतुष्ट विधायकों को मनाने की गरज से सभी मंत्रियों से इस्तीफे ले लिए हैं और सुना जा रहा है की असंतुष्ट विधायकों को मंत्री पद का ऑफर मिला है। अब इस पर भी अगर वह नहीं मानते तो बस उन पर कार्रवाई हो सकती है।
दूसरी तरफ कर्नाटक में जो भी हो रहा है वह अप्रत्याशित नहीं है और वैसी सूरत में तो बिल्कुल नहीं है जब 23 मई 2018 यह सरकार गठित हुई तभी से महसूस होता था यह होगा। भाजपा की शानदार वापसी के बाद तो यह और भी संभव लगने लगा है।
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