भारत की शानदार विजय
कुलभूषण जाधव मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में वियना समझौते की धारा 36 के तहत भारत की शानदार विजय हुई है। न्यायालय ने पाकिस्तान को इस धारा का उल्लंघन करने का दोषी पाया है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि पाकिस्तान जाधव को फांसी दिए जाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करे । जाधव को पाकिस्तान में जासूसी और आतंकवाद के अपराधों के आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। न्यायालय ने कहा कि जब तक पूरी न्याय प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती तब तक जाधव की फांसी पर रोक अनिवार्य है। मई 2017 में न्यायालय ने आदेश दिया था कि "पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने जाधव की फांसी के बारे में जो आदेश दिए थे उस पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अंतिम फैसले तक सरकार रोक लगाए।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि पाकिस्तान अब न्याय के अनुरूप कदम बढ़ाएगा। दूसरी तरफ पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट किया है कि "यह पाकिस्तान की विजय है , कमांडर जाधव पाकिस्तान में रहेंगे और उनके साथ पाकिस्तानी कानून के तहत बर्ताव किया जाएगा।"
पता नहीं पाकिस्तान क्यों इतना खुश है । अंतरराष्ट्रीय अदालत के इतिहास में किसी भी देश के बारे में इतना स्पष्ट फैसला नहीं दिया गया है । प्रत्येक दो-तीन पैराग्राफ के बाद पाकिस्तान को गलत ठहराया गया है और सम्मानजनक शब्दों का तो कहीं प्रयोग ही नहीं है । अब पाकिस्तान इस पर भी खुश है तब क्या कहा जा सकता है। इससे भी अलग यह फैसला दुनिया के अन्य देशों के लिए भी मानवाधिकार के हित में है।
प्रसंग वश इस मामले में एक दिलचस्प अध्याय यह भी उस समय जुड़ जाता है जब भारत के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह मुकदमा लड़ने के लिए फकत एक रुपए फीस ली है जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान ने जाधव को जासूस साबित करने के लिए वकीलों पर 20 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में उपस्थित चीनी न्यायधीश ने बहुमत का पक्ष लिया है। इससे इस्लामाबाद को राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भारी आघात पहुंचा है।
भारत में खुशी इसलिए है की कुलभूषण जाधव अकेले नहीं हैं।हमिद अंसारी पिछले साल कई दिनों तक बिना किसी आरोप के पाकिस्तानी जेलों में सड़ रहे थे और बाद में भारत पर एहसान जता कर उसे रिहा किया गया। उससे पहले सरबजीत सिंह और चमेल सिंह का केस सब जानते हैं कि उन्हें कैसे मार दिया गया। पाकिस्तान धार्मिक लोगों को भी नहीं छोड़ता है। हजरत निजामुद्दीन दरगाह के प्रमुख मौलवी पाकिस्तान गए थे और उन्हें आई एस आई अपहृत करके न जाने कहां ले गई और काफी मारपीट करके तीन-चार दिनों के बाद उसे छोड़ा। जहां तक कुलभूषण जाधव का मामला है उसे पाकिस्तान की आईएसआई ने किसी चरमपंथी गिरोह को पैसे देकर ईरान से अपहरण करवाया था। इसलिए भारत में खुशी है। यह सारा मामला भारतीय नागरिकों से जुड़ा है। पाकिस्तान ने प्रोपेगेंडा को हथियार बना दिया है। लेकिन उसके पास कोई भी ऐसा सबूत नहीं है जो कुलभूषण के खिलाफ जाता है। यह तो हर कोई शिकायत ही करता था अब तो सबूत मिल गए हैं कि पाकिस्तान सही रास्ता नहीं अपना रहा है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष अब्दुल क्वाई अहमद युसूफ ने बुधवार को फैसला सुनाया। यद्यपि न्यायालय ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन इसने भारत के उस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जिसमें पूरा केस खारिज कर देने के लिए कहा गया था। अदालत का मानना था कि पाकिस्तान ने कूटनीतिक संबंधों के मामले में वियना समझौते का उल्लंघन किया है अथवा नहीं यह विचारणीय था और पाया गया की धारा 36 के तहत इसने समझौते का उल्लंघन किया है । अब यहां प्रश्न उठता है क्या पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने के लिए बाध्य है ? तकनीकी तौर पर पाकिस्तान इसे मानने के लिए बाध्य है। यदि वह इसे नहीं मानता है तो इस मामले को लेकर राष्ट्र संघ के संबंधित निकाय में उठाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को लागू करवाने के लिए सुरक्षा परिषद की मदद भी होती है । अमरीका ने एक बार अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था । क्योंकि उसे मालूम था कि राष्ट्र संघ में बात रखने पर वह वीटो कर सकता है। लेकिन पाकिस्तान के साथ यह सुविधा नहीं है। इसलिए वह अदालत का हुक्म मानने के लिए बाध्य है
इस आदेश के बाद भारत जाधव को कूटनीतिक सुविधाएं पहुंचा सकता है और यादव को बताया जा सकता है उसके अधिकार क्या हैं। वह फांसी की सजा से कैसे बच सकता है। पाकिस्तान इस दिशा में लगाए गए सभी अवरोधों को हटा लेने के लिए बाध्य हो चुका है। अब यदि पाकिस्तान कूटनीतिक पहुंच को मुहैया कराने में टालमटोल करता है या अनावश्यक विलंब करता है तो भारत इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय अदालत को सूचित कर सकता है। यही नहीं राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद को भी सूचना भेजी जा सकती है । पूरे मामले की समीक्षा में कुछ समय लग सकता है। क्योंकि सैनिक अदालत के फैसले की समीक्षा प्रक्रिया में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पास सीमित अधिकार हैं । अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भी इसे माना है। लेकिन उसने यह भी सुझाव दिया है कि एक विधेयक लाकर इस विलंब को खत्म किया जा सकता है। अब इस पूरे मामले में सबसे महत्वपूर्ण है फांसी पर रोक । इस संबंध में न्यायालय के आदेश को माना जा रहा है या नहीं । जाधव को फांसी दिए जाने के मामले में किसी भी कदम को अब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और नया मामला चल सकता है। साथ ही इसे राष्ट्र संघ में भी उठाया जा सकता है । इन सब में सबसे खास बात है कि पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील नहीं कर सकता है। लेकिन इन सबके बावजूद अभी अब पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि न्यायालय के फैसले को कैसे लागू कर रहा है और यह भारत पाकिस्तान के संबंध में एक सकारात्मक मोड़ बन सकता है। अभी से इस दिशा में पाकिस्तान द्वारा कदम बढ़ाए जाने के लक्षण दिखाई पड़ने लगे हैं । अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने की गरज से उसने बुधवार को ही हाफिज सईद को गिरफ्तार कर लिया। मुख्य मसला है कि पाकिस्तान सरकार द्वारा समर्थित आतंकवाद के प्रति वह कैसा रुख अपनाता है।
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