कर्नाटक का सियासी नाटक
कर्नाटक के सियासी नाटक में अब नया मोड़ आ रहा है। इस्तीफा देने वाले 13 विधायकों के इस्तीफों में से 8 विधायकों के इस्तीफे कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने तकनीकी कारणों से नामंजूर कर दिया। अब वे दोनों दलों के विधायकों से 12, 15 तथा 21 जुलाई को मुलाकात करेंगे। इस्तीफा देने वाले 13 विधायकों में से 10 विधायक कांग्रेस के हैं और 3 जनता दल सेकुलर के । विधानसभा अध्यक्ष के इस कदम से दोनों दलों ,कांग्रेस तथा जनता दल सेकुलर, को गठबंधन बचाने के लिए थोड़ा समय मिल गया । अगर उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया होता तो 224 सदस्यों वाली विधानसभा में गठबंधन की स्थिति घटकर 103 हो गई होती। विधानसभा अध्यक्ष का यह नया निर्णय संभवतः भाजपा को रोकने की गरज से किया गया है। क्योंकि सदन में भाजपा के 105 विधायक हैं और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन उसे प्राप्त है। विधान सभा की बैठक 12 जुलाई को होगी। नई स्थिति से गठबंधन को बागी विधायकों को मनाने और संभवतः उन्हें मंत्रिमंडल में जगह देने के लिए अवसर प्राप्त हो गया। लेकिन इसमें एक बात और दिखाई पड़ रही है कि यदि वर्तमान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उस पर मतदान हुआ तो ये बागी विधायक अगर उस मतदान से अनुपस्थित हो जाते हैं तो सरकार नहीं बच पाएगी। इसलिए फिलहाल अध्यक्ष का इस्तीफा स्वीकार करना केवल कुछ समय देने के सिवा कुछ नहीं है।
सोमवार को तो कर्नाटक का यह सियासी नाटक लगा कि क्लाइमेक्स पर पहुंच गया है। क्योंकि पूरे मंत्रिमंडल में इस्तीफा दे दिया था ताकि मंत्री परिषद मे फेरबदल कर बागी विधायकों को अवसर देने का मौका मिल सके।
इस बीच खबर है कि कांग्रेस के नेता तथा जल संसाधन मंत्री डी के शिवकुमार बागी विधायकों को समझाने- बुझाने के लिए मुंबई जाने वाले हैं। क्योंकि सब मुंबई के किसी होटल में ठहरे हुए हैं । उधर कांग्रेस के बागी विधायक बी सी पाटील का कहना है कि नहीं मंत्री पद नहीं इस्तीफे दिए गए हैं। वे मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी को पद से हटाना चाहते हैं। क्योंकि, उत्तर कर्नाटक ने कोई काम ही नहीं हुआ है। पाटिल का कहना है कि भाजपा ने अभी तक कोई भी पेशकश नहीं की है और इस संबंध में सारे दावे गलत हैं। उन्होंने कहा कि 2018 में जरूर पैसे और मंत्री पद का लोभ दिया गया था लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया।
कर्नाटक के सियासी नाटक का असर दिल्ली में भी हुआ है । कांग्रेस ने लोकसभा में वॉकआउट आउट किया है। इस वॉकआउट में राहुल और सोनिया गांधी भी शामिल थे। ऐसा बहुत कम हुआ है कि राहुल गांधी ने नारेबाजी भी की । वैसे, लगता नहीं है कि सरकार गिर जाएगी। क्योंकि सभी विधायकों के मन में एक भय तो है कि अगर सरकार गिरती है तो नए चुनाव होंगे और कोई भी विधायक इतनी जल्दी नया चुनाव नहीं करना चाहता। भले ही हो बीजेपी का ही विधायक क्यों न हो। वैसे भी सब जानते हैं की अगर चुनाव होते हैं तो भाजपा को ही लाभ होगा और भाजपा के खेमे में येदुरप्पा के पक्ष में कोई खास हवा नहीं है। क्योंकि वहां भाजपा अपना नेतृत्व करना चाहती है और येदुरप्पा की जगह दूसरा नेता लाना चाहती है। इसके साथ ही यह भी सही है कि कांग्रेस के बहुत से लोग खासकर सिद्धारमैया वगैरह मुख्यमंत्री से बिल्कुल खुश नहीं हैं। वैसे भी एक गठबंधन की सरकार तभी चलती है जब उसका नेतृत्व किसी राष्ट्रीय पार्टी द्वारा किया जाता है। फिलहाल कांग्रेस सिमट गई है और जनता दल सेकुलर की वैसे भी कोई पकड़ नहीं है । राष्ट्रीय पार्टी गठबंधन को बांधे रखने का काम करती है । क्योंकि छोटी- छोटी पार्टियां गठबंधन में तो सिर्फ इसलिए शामिल होती हैं कि उन्हें सत्ता का सुख प्राप्त हो सके। फिलहाल ऐसा दिख नहीं रहा है। इसलिए संभवतः सरकार गिर जाएगी और तब भाजपा सरकार बनाने के लिए सामने आएगी।
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