केसर की क्यारियों को बारूद से बांटने की साजिश
पिछले पखवाड़े से कश्मीर लगातार खबरों में बना हुआ है । पहले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता का मिथ्या प्रचार हुआ और उसके बाद चीन ने भी मध्यस्थता के सुझाव की चिंगारी सुलगा दी। इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में मुख्य सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल श्रीनगर गए और जब लौट कर आए उन्होंने वहां 10000 केंद्रीय बलों के जवानों की तैनाती का सुझाव दिया। सरकार का मानना है कि वहां आतंकवाद और विद्रोह के मुकाबले के लिए तथा कानून और व्यवस्था कायम रखने के लिए केंद्रीय बलों के जवान भेजे जा रहे हैं। जब केंद्रीय बलों के जवान कश्मीर भेजे जाने लगे तो घाटी में प्रचार तेज हो गया कि वहां धारा 370 और 35ए को हटाने की तैयारी चल रही है। इसे एक तरह से है कि हथियार से अलगाववाद को बढ़ावा देने की साजिश कहा जा सकता है। इसे लेकर घाटी का माहौल गर्म हो गया। धारा 35 ए घाटी में या कहें कश्मीर राज्य में स्थाई निवासी की परिभाषा तय करता है । चूंकि कश्मीर की वर्तमान आबादी का अधिकांश भाग 1980 के अलगाववाद के बाद पैदा लिया है और ये लोग यथास्थिति को ही अच्छा समझने लगे हैं। ऐसे माहौल में अफवाहें फैलाई जा रही है कि अगर इस धारा को हटा दिया गया तो मुस्लिम बहुल कश्मीर में जातीय अनुपात बिगड़ जाएगा। खबरें आ रही हैं कि वहां गड़बड़ी के डर से लोग घबराकर जरूरी सामान खरीद कर जमा कर रहे हैं । जबकि जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय बलों की तैनाती सामान्य बात है।
भाजपा के करीबी समझे जाने वाले कश्मीरी नेता सज्जाद लोन में खुल्लम खुल्ला चेतावनी दी है कि अगर इस तरह के दुस्साहसिक एक कदम उठाए जाते हैं तो भविष्य में हिंसा को बढ़ावा मिलेगा तथा जो लोग खुद को भारतीय समझते हैं उन्हें अपमानित होना पड़ेगा। हालांकि कोई नहीं जानता धारा 35 ए का क्या भविष्य होगा लेकिन अफवाह है कि तेजी से फैल रही है। केंद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं जाहिर की जा रही है इसलिए संशय और बढ़ता जा रहा है। कश्मीरी नेताओं का कहना है यदि सचमुच इस तरह का कोई इरादा है तो यह दुस्साहस होगा और इस तरह का दुस्साहस उन लोगों की साख को समाप्त कर देगा जो भारत की अवधारणा पर भरोसा करते हैं। यद्यपि जब से कश्मीर में विधानसभा चुनाव को रोका गया और राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई गई तब से वहां धारा 370 और 35 ए को लेकर संशय बढ़ता जा रहा है । अमरनाथ के तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए पहले से ही अर्ध सैनिक बलों के हजारों जवान तैनात हैं और इसके बाद दस हजार और केंद्रीय बलों की तैनाती। यही नहीं 14 फरवरी के आतंकवादी हमले के बाद वहां 10 कंपनियां यानि 10,000 जवान पहले से ही तैनात हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने टि्वटर हैंडल में लिखा है कि " केंद्र सरकार द्वारा घाटी में दस हजार अतिरिक्त जवानों को तैनात किए जाने से लोगों में आतंक फैल गया है। जम्मू और कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है उसे सेना के बल पर नहीं सुलझाया जा सकता है। सरकार को इस पर सोचना चाहिए और अपनी नीति में संशोधन करना चाहिए।" नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि " केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा कायम करना चाहिए और राज्य की जनता को धारा 370 और 35 ए के मामले में व्यर्थ ही डराना नहीं चाहिए ।घाटी के लोग प्रशासन द्वारा फैलाए गए अफवाहों से चिंतित हैं।" शाह फैसल ने चेतावनी दी है कि " धारा 370 और 35 ए में कोई भी परिवर्तन कश्मीर में अलगाववाद के नए दौर को जन्म देगा। " पूर्व विधायक राशिद ने कहा है कि केंद्र सरकार को दुस्साहस से बाज आना चाहिए।
उधर अभिनेता अनुपम खेर ने कहा है कि "यदि कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया जाए तो सारी समस्या ही हल हो जाएगी।" जबकि कई विधि विशेषज्ञों का मानना है कि धारा 370 हटाने से कश्मीर में भारत के जुड़ने की शर्तों में संकट पैदा हो जाएगा। क्योंकि कश्मीर में भारत का जुड़ना और अन्य राज्यों का भारत संघ में विलय दोनों अलग अलग तथ्य हैं और परिस्थितियां हैं। संविधान विशेषज्ञ राजीव धवन के अनुसार धारा 370 को खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन उन्होंने बलपूर्वक कहा कि कश्मीर का भारत में जुड़ना अस्थाई है। पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण का कहना है कि धारा 368 के अनुसार संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार है परंतु सरकार संविधान के बुनियादी ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। शांति भूषण के अनुसार इस ओर कदम बढ़ाने से पहले सुप्रीम कोर्ट से यह राय लेनी जरूरी है कि धारा 370 देश के संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है या नहीं । साथ ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने कहा है कि भारत द्वारा कश्मीर में लागू धारा 370 का हटाया जाना पाकिस्तान कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
इन सब गीदड़भभक़ियों के बावजूद भारत सरकार को इस धारा के भविष्य पर विचार करना जरूरी है। क्योंकि इसकी आड़ में वहां अलगाववाद को हवा दी जा रही है। एक ही झटके में कश्मीरी पंडितों को निकाल दिया गया। बाहर के लोगों को वहां बसने नहीं दिया जाता है और एक खास संप्रदाय की बहुलता का लाभ हमारे पड़ोसी देश उठा रहे हैं, और भारत को अशांत बनाए हुए हैं। धारा 370 और 35ए का बचाव करने वाले लोग राष्ट्र के संबंध में ना सोच कर एक खास स्वार्थ को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। भारत राष्ट्र को खुली चुनौती देने का मतलब है कि केसर की क्यारी यों को फिर से बांटने की साजिश चल रही है। पहली बार जो बंटवारा खून की लकीर खींच कर हुआ था वह बंटवारा भविष्य में बारूद बिछाकर करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। सरकार को इस षड्यंत्र पर सोचना जरूरी है। इस षड्यंत्र के आलोक में अगर देखें तो कश्मीर में जवानों की नई तैनाती प्रासंगिक लगती है।
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