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Sunday, July 7, 2019

कर्नाटक के राजनीतिक संकट का अर्थ

कर्नाटक के राजनीतिक संकट का अर्थ

कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की गठबंधन की सरकार है लेकिन पिछले 2 दिनों से इसमें संकट पैदा हो गया है। गठबंधन  लगता है खुलने वाला है । क्योंकि इसके 11 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और जानकारों का कहना है कि 4 दिन के बाद विधानसभा सत्र के दौरान कुमार स्वामी सरकार के सामने  भाजपा विश्वास मत हासिल करने का प्रस्ताव रख सकती है । कर्नाटक में  भाजपा के नेता  सदानंद गौड़ा  ने कहा है  कि अगर राज्यपाल  उन्हें बुलाया  तो  भाजपा वहां सरकार बनाने के लिए तैयार है।  कर्नाटक में भाजपा के  105 विधायक हैं । उन्होंने यह भी कह दिया है कि अगर   वहां भाजपा सरकार बनाती है  तो  बीएस येदुरप्पा  मुख्यमंत्री बनेंगे ।
दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहां है मोदी देश में खरीद-फरोख्त की राजनीति कर रहे हैं उन्होंने कहा कि यह बहुत निराशाजनक है। पैसे और पद के प्रलोभन के जरिए भाजपा एक चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है और यह लोकतंत्र को कलंकित किया जाना है ।224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में बहुमत के लिए 113 विधायकों की जरूरत होगी।   कांग्रेस के एक विधायक आनंद सिंह ने 1 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दिया था। अगर उनके साथ 11 और विधायकों का इस्तीफा मंजूर हो जाता है तो सदन में सदस्यों की कुल संख्या 212 रह जाती है और बहुमत के लिए 107 लोगों की भी जरूरत पड़ेगी। अगर ऐसा होता भी है तो इसके बाद भी कांग्रेस जेडीएस गठबंधन के पास बसपा के एक और निर्दलीय दो विधायकों के समर्थन की बदौलत उनकी संख्या बहुमत के आंकड़े से ज्यादा है। लेकिन निर्दलीय विधायक नागेश पलड़ा बदलने में माहिर है और अगर वह पलड़ा बदल देते हैं तो वहां बीजेपी की सरकार भी बन सकती है।
कर्नाटक की स्थिति से एक सवाल पैदा होता है कि क्या देशभर में गठबंधन की सरकारों की हालत खराब है और सारे गठबंधनों  की सरकार खतरे में है। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा एक ताकतवर पार्टी के रूप में उभरी है। यह उभार ठीक वैसा ही है जैसा 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद इंदिरा गांधी का केंद्र में उभार हुआ था और उन्होंने सत्ता का एकीकरण कर दिया था। वर्तमान में मोदी ने जी सत्ता का एकीकरण कर दिया है। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद सत्ता में आई इंदिरा गांधी को लोग गूंगी गुड़िया कहते थे और कांग्रेस पार्टी की हालत बहुत खराब थी। ऐसे में 1967 में भारत में गठबंधन की राजनीति का श्रीगणेश हुआ और संयुक्त विधायक दल सरकार का उदय हुआ। जो भारतीय क्रांति दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय जनसंघ के गठबंधन से बना था। आगे चलकर यही गठबंधन भारतीय जनता पार्टी में बदल गया। इसके  बाद 1971 का वक्त आया और इंदिरा जी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और उसी के साथ और सत्ता पर काबिज हो गईं। साथ ही अलग-अलग राज्यों में गठबंधनों की सरकारों का दौर खत्म हो गया। संयुक्त विधायक दल की  सरकारें गिर गईं। केरल को छोड़कर पश्चिम बंगाल में हाल तक वामपंथ की स्थिति मजबूत रही। इसके बाद गठबंधन की सरकारों का दूसरा चरण 1989 में आरंभ हुआ और इस बार गठबंधनों केंद्रीय सत्ता भी हासिल की । यह दौर नरेंद्र मोदी के 2014 में जीत तक कायम रहा।
      2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुईं थीं। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर वहां सरकार बना ली। यही सबसे बड़ी राजनीतिक भूल हुई कि कांग्रेस ने जेडीएस के एचडी कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री का पद दे दिया। जबकि जेडीएस के पास कांग्रेस की आधी सीटें भी नहीं थी। यह एक बेमेल गठबंधन था। क्योंकि पिछले कई वर्षों से दक्षिण में जेडीएस और कांग्रेस आपस में भिड़ी हुई थी और यह बेमेल गठबंधन फकत साल भर में खतरे में आ गया। इसके लगभग एक दर्जन विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और गायब  हो गए हैं । कहा जा रहा है कि उन्हें मुंबई के किसी होटल में ठहराया गया है। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि जिन विधायकों ने इस्तीफा दिया है उनमें अधिकांश सिद्धारमैया के विरोधी हैं संभवत उन्होंने   कुछ   हासिल करने के लिए, खासतौर पर मंत्री पद हासिल करने के लिए, दबाव डालने की गरज से ऐसा किया है।
कर्नाटक की ताजा स्थिति के बारे में दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में आनंद शर्मा ,गुलाम नबी आजाद, मोतीलाल वोरा, अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे ,ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितेंद्र सिंह , रणदीप सिंह सुरजेवाला तथा दीपेंद्र हुड्डा शामिल थे।
विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रक्रिया के पीछे भाजपा का ऑपरेशन कमल काम कर रहा है। इस्तीफा देकर आए सदस्यों को आने वाले दिनों में भाजपा से चुनाव लड़ने और चुने जाने का वादा किया गया है। ऐसा ही प्रयोग 2008 में भी हुआ था। ऐसी परिस्थिति में यह कहा जा सकता है कि पूरा देश एक पार्टी के शासन की ओर बढ़ रहा है । जनता ने  पूरे देश में  गठबंधनों को  नकार दिया है और संभवतः गठबंधनों का दौर खत्म होने जा रहा है। लोगों ने तय किया है कि एक पार्टी की सरकार बेहतर शासन दे सकती है । गठबंधन अपने आंतरिक खींचतान में ही लगा रहता है। लोकसभा के ताजा चुनाव के संदर्भ में देखा जाए तो लगता है कि देश की तमाम पार्टियां अपनी साख गंवा चुकी है और भाजपा से मुकाबले की क्षमता किसी में नहीं है।  कोई ऐसा नेता नहीं है जो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को चुनौती दे सकें।

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