नागरिकता संशोधन विधेयक सी ए बी के आलोचकों में बहुत से ऐसे विद्वान भी शामिल हैं जो यह प्रमाणित करना चाह रहे हैं कि यह आइडिया ऑफ इंडिया के खिलाफ है। यह उसके आधारभूत सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन करता है। लेकिन संभवत है ऐसा कुछ नहीं है। दरअसल, नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 के नागरिकता कानून में बदलाव को मंजूरी देता है। 1955 का कानून हमारे देश के दुखद बंटवारे और बड़ी तादाद में अलग-अलग धर्मों के मानने वालों फिर पाकिस्तान से भारत आने और भारत से पाकिस्तान जाने के कानून में बदलाव के उद्देश्य से लाया गया था। क्योंकि भारत-पाक के बीच आवागमन से परिस्थितियां भयावह हो रही थीं। जिस समय दोनों देश नहीं बने थे और जनसंख्या की अदला-बदली नहीं हो सकी थी और उसके बाद जब बंटवारा हुआ तो तात्कालिक रूप में भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बनाने का फैसला किया गया। लेकिन पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया। किसी धर्म के नाम पर देश को बनाना शायद उस काल में ताजा उदाहरण था। पाकिस्तान के इस कदम से पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के सारे सिद्धांत धरे के धरे रह गए। 1948 में जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान धीरे धीरे धार्मिक राष्ट्र बन गया। वहां रहने वाले गैर मुसलमानों ,खास करके हिंदुओं और ईसाइयों की मुसीबतें आकाश छूने लगीं। पाकिस्तान में गैर मुसलमानों पर जुल्म बढ़ने लगे और उनका वहां से पलायन शुरू हो गया। यह क्रम 1971 में बांग्लादेश बनने तक जारी रहा। पाकिस्तान के हिंदू और ईसाई समुदाय ने भाग कर भारत में शरण ली। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान में गैर मुस्लिम समुदायों की आबादी बुरी तरह कम हो गई । आंकड़े बताते हैं कि उनकी आबादी महज 2% रह गई थी। अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक कहा जाता है कि लगभग 45 लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान से भागकर भारत आए थे। इस सूरत में 1955 में नागरिकता कानून में संशोधन की जरूरत महसूस होने लगी। जो पाकिस्तान से छोड़कर भारत को अपना घर बार मान कर आ गए थे वह बिना मुल्क के आदमी हो गए। उनकी अपनी कोई भी गलती नहीं होने के बाद भी वह गैर मुल्की थे । इसी पृष्ठभूमि में "आइडिया ऑफ इंडिया " तैयार हुआ। यह दरअसल एक ऐसे देश की कल्पना है जो धर्मनिरपेक्षता को व्यवहार तथा कर्म और शब्दों में शामिल करता है । यहां हर धर्म के लोग बिना भेदभाव रह सकते हैं ।आहिस्ता आहिस्ता राजनीतिक स्वार्थ ने इस धर्मनिरपेक्षता शब्द को एक गाली बना दी और इसी के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को तैयार किया गया। इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू ,बौद्ध ,जैन धर्मावलंबियों को नागरिकता हासिल करने का मौका देता है । मूल नागरिकता कानून में किसी को भी भारत का नागरिक बनने के लिए लगातार 11 वर्षों तक भारत में रहने की शर्त पूरी करनी होती है नए संशोधन में 11 साल की अवधि को घटाकर 6 साल कर दिया गया है। धार्मिक आधार पर लोगों पर होने वाले जुल्म एक कटु सत्य है। इससे जाहिर होता है कि सीएबी धार्मिक आधार पर होने वाले जुल्मों से बचने के लिए इधर उधर पलायन करने और राजनीतिक उठापटक की वजह से अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए लोगों में फर्क करता है । कुछ लोग यह भी तर्क देते हैं नागरिकता संशोधन विधेयक लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के आतंक की वजह से भारत में आए तमिल शरणार्थी शिविरों में शरण लिए लोगों को कोई राहत नहीं देगा । लेकिन 2008 -9 से पहले के कई दशकों में तमिलों ने भारत में पनाह ली थी। लेकिन उचित तो यह होगा सरकार आगे चलकर इन बारीकियों को भी स्पष्ट करे। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोधी खास करके राजनीति की रोटी सेंकने वाले लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि इस विधेयक के प्रावधान मुस्लिम विरोधी हैं। सरकार को इसके लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान आरंभ करना चाहिए। क्योंकि इस विधेयक में उन करोड़ों मुसलमानों का कोई जिक्र नहीं है जो भारत के नागरिक के तौर पर देश के बाकी नागरिकों की तरह अपने अधिकारों का बराबरी से उपयोग कर रहे हैं। इसे मुस्लिम विरोधी कहने वाला जुमला केवल वोट बैंक की राजनीति है। ताकि देश का माहौल खराब हो। ऐसे में सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस असत्य का फौरन जवाब दे। वरना हालात सांप्रदायिक तनाव में बदल जाएंगे और इसके बाद जो विद्वेष फैलेगा उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। यही नहीं इस विधेयक के खिलाफ यह भी कहा जा रहा है कि यह संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है। संविधान की धारा भारत के सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देती है। इस विधेयक से स्पष्ट है कि इसके प्रावधान अरुणाचल प्रदेश मिजोरम और नगालैंड पर लागू नहीं होंगे। सवाल उठता है कि इस विधायक का असम में क्यों विरोध हो रहा है, खास करके जो इलाके कृषि प्रधान या चाय बागान वाले हैं । इसकी मुख्य वजह है कि इन इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों पर काफी दबाव है । 1971 मैं बांग्लादेश के जन्म के बाद और बांग्लादेश के जन्म से पहले बड़ी तादाद में हिंदू समुदाय के लोग भारत में पनाह ले रहे थे। ऐसे में हिंदुओं को शरणार्थी और मुसलमानों को बाहर का घुसपैठिया माना गया था । हमारे भारतीय राजनेताओं को देश में तेजी से बदलते सामाजिक स्वरूप और उस समाज के भू राजनीतिक समीकरणों में आ रहे परिवर्तनों को ठीक से समझने की जरूरत है। तभी वह लोग नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को समझ पाएंगे और मानवाधिकार के नजरिए से देख सकेंगे। सबसे जरूरी है कि सभी राजनीतिक दल अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर भरोसे के माहौल में नागरिकता के व्यापक पहलुओं को देखें ताकि बंटवारे का घाव भर सके। समाज में नया विद्वेष पैदा होने से बचें। आइडिया ऑफ इंडिया का सबसे पहला सिद्धांत है इंडिया को कायम रखना ना कि इंडिया छिन्न-भिन्न कर देना। इसके लिए सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है राजनीतिक स्वार्थ की नहीं।
Wednesday, December 11, 2019
सीएबी पर सकारात्मक नजरिए की जरूरत
सीएबी पर सकारात्मक नजरिए की जरूरत
Posted by pandeyhariram at 4:48 PM
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