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Sunday, December 29, 2019

आज भारत बदल चुका है

आज भारत बदल चुका है

अब से कोई आधी सदी पहले 1971 में बांग्लादेश युद्ध में भारत की विजय के उल्लास से भारत का हर नागरिक भरा हुआ था। आखिर हो भी क्यों नहीं ,यह स्पष्ट रूप  से पाकिस्तान की पराजय थी। पाकिस्तान का बड़बोलापन खत्म हो चुका था। लेकिन, इसकी पृष्ठभूमि में भारत के कई सूचकांक निराशाजनक थे। 2 वर्षों में उसमें घोर निराशा पैदा हो गई थी। आज हमारे देश की लगभग वही स्थिति है। लेकिन आज का भारत बिल्कुल बदल चुका है और मोदी जी को वैसा कुछ नहीं करना पड़ेगा जो इंदिरा जी ने किया था। आज का भारत भयानक बेरोजगारी से जूझ रहा है पिछले 45 वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ था और ऐसा लग रहा है कि हम 1974 का आईना देख रहे हैं । लेकिन तब भी इंदिरा जी की लोकप्रियता घटी नहीं थी। क्योंकि लोगों के सामने विकल्प नहीं था। आर्थिक संकेतकों में गिरावट बेकाबू थी लेकिन राष्ट्रवाद चरम पर था। मुद्रास्फीति को छोड़ दें तो सब कुछ 1974 की तरह नजर आ रहा है और महसूस हो रहा है।। तब एक बहुत ही लोकप्रिय नेता शासनारूढ़ थीं, जिसकी पार्टी में और आम जनता में जिसके अंधभक्त समर्थक भी थे। विपक्ष बिखरा हुआ था। भारत  विरोधाभास का देश बन गया था। एक ही पीढ़ी में दो विभिन्न विचारधाराएं  चल रही थीं। 1971 के आरंभ में गरीबी हटाओ का लोकलुभावन नारा उभरा। साल खत्म होते-होते इंदिरा जी मां दुर्गा बन गयीं। लेकिन उन्होंने चंद कड़वी सच्चाईयों को आंखों से ओझल कर दिया। देश की अर्थव्यवस्था उनके उन्मादी राष्ट्रीयता के बोझ से चरमरा रही थी कोटा परमिट राज की ज्यादतियों  के कारण निवेशक मैदान छोड़कर भाग रहे थे। इस स्थिति ने   काली अर्थव्यवस्था को जन्म दिया था जो आज तक हमारे लिए एक अभिशाप बनी हुई है। उसके ऊपर से बांग्लादेश युद्ध का खर्च सिर पर आ पड़ा था।
      2014 में यही हालात हुए। दुनिया मुट्ठी में करने के जोश में हम यहां गिरे। 1971 में तमाम विपक्ष को धूल चटा कर हासिल हुई इंदिरा जी की शानदार जीत के नशीले जोश में सब कुछ डूबता गया। खाने की चीज लगातार महंगी होती गयीं और हार कर इंदिरा जी ने राष्ट्रवाद का नारा चलाया। 1974 में परमाणु परीक्षण किया लेकिन इसका जोश बहुत दिनों तक नहीं रहा। 1975 के आखिर में देश पर इमरजेंसी ठोक दी गई ।
      आज भी हालात लगभग कुछ वैसे ही है यह समाजशास्त्र का सिद्धांत है कि जब बेरोजगारी बढ़ जाती है और अर्थव्यवस्था में लंबे समय तक गतिरोध बना रहता है तो लोगों में आक्रोश बढ़ता है और उस बढ़े हुए आक्रोश को राष्ट्रवाद के जोश से खत्म नहीं किया जा सकता। इतिहास ने बड़ी सफाई से खुद को दोहराना शुरू कर दिया है। आज भी देश को यह यकीन करा दिया गया है कि भारत के वजूद को पाकिस्तान से खतरा है। कहा जा रहा कि  जब से पाकिस्तान बना तब से कोई इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। आखिर में नरेंद्र मोदी निर्णायक  फौजी कार्रवाई से इस समस्या को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही दुनियाभर में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ा रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर नागरिक एक बार यकीन करने लगते हैं तो वह दूसरी पारंपरिक राजनीतिक वफादारियों और समीकरणों को भूल जाते हैं। बाकी का काम अपने आप होने लगता है। जैसे फैल रहा कि  पाकिस्तान मुस्लिम मुल्क है, जिहाद के नाम पर आतंकवाद फैला रहा है। पाकिस्तानी जिहादी दुनिया के लिए महामारी हैं। यानी इसमें कटाक्ष यह है की भारत को इस्लाम से खतरा है और इससे मुसलमान अछूते नहीं है। इसलिए हिंदुओं को एकजुट होना होगा। चुनावी गतिविधियों में भारत के आचरण का अगर विश्लेषण करें तो पाएंगे की राष्ट्रवाद ,धर्म और जन कल्याण क्या यह मिक्सचर बेहद नशीला होता है और आर्थिक सुस्ती ,बेरोजगारी इत्यादि जैसी समस्याएं इस नशे में डूबी जाती हैं। भारत में राजनीति चूंकि संस्कृति उन्मुख है इसलिए इसे  बदलने में वर्षों लग जाते हैं। लेकिन राजनीति के मौसम बदलते रहते हैं। हालांकि अगर बारीकी से देखें तो 2019 में जो चुनाव हुए थे वहीं से मोदी जी की स्थिति बिगड़ने लगी और जिन लोगों ने वोट दिया था उनमें निराशा भरने के लिए राष्ट्रवादी जोश का इंजेक्शन कारगर नहीं हो पा रहा है। अर्थव्यवस्था को थामने की बजाए धारा 370, राम मंदिर, नागरिकता कानून इत्यादि सामने लाए जा रहे हैं ताकि असल मुद्दा ओट में रहे। एनसीआर, एनपीआर ,सीएए  का जो घालमेल है वह आम आदमी की समझ में नहीं आ रहा है और देश के एक वर्ग में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लेकिन आज का भारत वह नहीं है जो 1974 में था। आज का भारत वैश्विक दुनिया में जी रहा है।  आज के भारत की संघीय शासन व्यवस्था इंदिरा गांधी के जमाने से ज्यादा मजबूत है। मुख्यमंत्रियों पर हुकुम नहीं चलाया जा सकता। बेशक आज नरेंद्र मोदी तत्कालीन इंदिरा गांधी से ज्यादा ताकतवर हैं लेकिन भारत की बहुत बदल चुका है। अब आगे क्या होगा इसकी भविष्यवाणी करना बेहद जटिल ही नहीं पूरी तरह असंभव भी है।


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