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Wednesday, December 4, 2019

आने वाले दिनों में पाक की हालत बिगड़ेगी

आने वाले दिनों में पाक की हालत बिगड़ेगी 

पाकिस्तान एक अजीब देश है उसे सब कुछ यूं ही मिल गया है या कहें सहज ही मिल गया है इसलिए उसे शासन का दर्द  नहीं है । उसने स्वतंत्र होने के लिए किसी देश से संघर्ष नहीं किया। बस, भारत से   फकत अलग होने के लिए खून खराबा किया। जिस मुल्क की शुरुआत ही अलगाव से है उसके संस्कार क्या होंगे? इसलिए वहां कई दिलचस्प हकीकतें   देखने को मिलती हैं। अब जैसे वहां अफवाहें उड़ती हैं लेकिन दरअसल वह अफवाह नहीं होती वह अपूर्ण सत्य होता है। एक ऐसा सच जो समय से पहले ही लोगों के बीच घूमने लगा और साथ ही उसे पूर्ण होने की प्रक्रिया भी चलती रहती है। अगर वह पूर्ण हो गया यानी उसकी प्रक्रिया पूर्णता को प्राप्त कर ली तो सबके सामने जाहिर हो जाता है और अगर अपूर्ण रहा तो दबा दिया जाता है।  अब तक इस प्रक्रिया के दौरान कहीं न कहीं बातें तैरती रहती हैं लोग इसे सरगोशियां मान लेते हैं। कहते कुछ भी नहीं हैं। अब जैसे पिछले हफ्ते हुआ। अचानक बात उड़ी कि  इस सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। कुछ टेलीविजन चैनलों ने अति उत्साह में इसे पाकिस्तान में तख्तापलट की पहली पहली सीढ़ी बता दिया। बातें हवा में तैरती रहीं और तरह-तरह के इम्कान लगते रहे। आखिर में बाजवा को 6 महीने का एक्सटेंशन मिल ही गया। विगत कई महीनों से पाकिस्तान की सत्ता के गलियारों में यह चर्चा थी कि कुछ होने वाला है। यह चर्चा प्रधानमंत्री इमरान खान की बात कि उन्हें( जनरल बाजवा)  तीन वर्ष का एक्सटेंशन मिलेगा से शुरू हुई । आनन-फानन में कई बातें हो गयी और सिफारिश की गई कि मुल्क की ताजा हालात को देखते हैं उनके कार्यकाल में विस्तार दिया जाना जरूरी है। लेकिन चर्चा तो चल पड़ी थी। आखिर में  फौज के दबाव के कारण सरकार को झुकना पड़ा और जनरल बाजवा को एक्सटेंशन देना पड़ा। इस एक्सटेंशन का भी एक कूटनीतिक कारण है । इमरान के साथ चलते हुए  सबसे ज्यादा शोर मचाने वाले संगठन तहरीक ए इंसाफ  को जनरल बाजवा ने ही सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया था। इसलिए ,जरूरी था उसे रखा जाए और इसके लिए इमरान खान को रखा जाना मजबूरी है। यही कारण है की इमरान की कुर्सी बच गई।
        अब इमरान सरकार के फैसले की वजह चाहे जो भी हो लेकिन इसे अच्छी निगाह से नहीं देखा गया। सीधे तौर पर बेशक कोई आवाज नहीं उठाई लेकिन भीतर ही भीतर फौज में खिचड़ी जरूर पकने लगी। इसी बीच मौलाना फजलुर रहमान की हुकूमत के खिलाफ आजादी मार्च की मुहिम शुरू हुई।मार्च सेना प्रमुख की आपत्ति के बाद भी निकाला गया। जाहिर है कि किसी की मदद और इशारे के बगैर मौलाना इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकते थे। हवा फिर बहने लगी कि कुछ होने वाला है और इसे बल और मिल गया जब मौलाना ने आजादी मांग किए जाने के ऐलान के बीच यह भी ऐलान किया कि दिसंबर और जनवरी में हुकूमत बदल जाएगी। इस ऐलान के बाद मौलाना का मार्च खत्म हो गया। उस समय  यह माना गया  कि इमरान खान  बहाना हैं, निशाना तो बाजवा पर है। कुछ फौजी अफसरों ने  पूरा षड्यंत्र रचा है ताकि बाजवा को उनके पद से हटाया जा सके। दिसंबर शुरू हो चुका है और इस दौरान  पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने बाजवा को लेकर जो कुछ टिप्पणियां की। उसके मूल में भी यही सब चालबाजियां हैं। बाजवा के खिलाफ जिस शख्स ने याचिका दायर की थी उसका यह शगल है। वह आदतन ऐसा करता रहता है। इसके पहले भी बाजवा के अहमदी होने और उन्हें पद से बर्खास्त किए जाने दायर की गई थी। लेकिन जो ही दिनों में उसने वापस ले लिया  और यही कारण है की नई याचिका को भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। लेकिन इस बार नई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया और सुनवाई भी शुरू कर दी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बुनियादी सवाल उठाया। "आजादी के बाद से मुल्क के हालात कमोबेश ऐसे ही रहे हैं तो क्या ऐसी स्थिति में सेनाध्यक्ष का सेवा विस्तार उचित है? हालात इतने खराब हैं इसकी क्या गारंटी है कि अगले कुछ सालों में ठीक हो जाएंगे और अगर पहले ठीक हो गए तो क्या जनरल बाजवा  पद छोड़ेंगे और यदि 3 वर्ष बाद भी बिगड़े रहे तो क्या बाजवा को पद पर ही रखा  जाएगा?" इसमें सबसे अहम बात यह है कि कोर्ट ने पूछा कि "क्या फौज नाम की  संस्था इतनी लचर है कि एक आदमी की हटने से टूट जाएगी।" लेकिन तब भी उनकी दुबारा नियुक्ति हुई या  सेवा विस्तार हुआ
       यहां यह साफ लग रहा है कि अदालत के कंधे पर बंदूक रखकर जनरल बाजवा का शिकार किया गया। सामने तो यह बताया जा रहा था कि वहां फौजी विद्रोह की आहट सुनाई पड़ रही है। वैसे पाकिस्तान में अदालत का उपयोग करने का तरीका बड़ा पुराना है। नवाज शरीफ और यूसुफ रजा गिलानी जैसे प्रधानमंत्रियों को भी इसी तरीके से सत्ता से बाहर किया गया, और कहा गया  किस्तानी फौज का डीप स्टेट इशारे पर यह सब हुआ। कहा तो यही जाता है कि पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट स्वायत्तशासी है लेकिन सच तो य होगा हूं कुछ पूछना पड़ेगा जो जो कुछ जनरल बाजवा के साथ हुआ वाह इमरान खान के साथ भी हो सकता है । लेकिन सबसे प्रबल आशंका है इस बार दो काम  हो सकता है। यानी बाजवा की स्थिति डांवाडोल होगी इमरान सरकार की हालत भी खराब होगी।


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