आज 2019 खत्म हो गया। चीखते चिल्लाते विरोध करते एक दूसरे के गुण दोष निकालते- निकालते हवा में जहर उगलते- उगलते हमारी उम्र एक साल और कम हो गई। यह वर्ष पूरी दुनिया में विरोध के वर्ष के रूप में दर्ज होगा। चिली से लेकर हांगकांग तक और हांगकांग से भारत तक सब जगह शासन और कथित अन्याय के खिलाफ आंदोलन चलते रहे। भारत में सीए ए और नागरिकता से जुड़े अन्य स्थानीय मुद्दे ज्यादा प्रगल्भ रहे और एक तरह से कहिए सरकार के खिलाफ चलते रहे। यही हाल दुनिया में सभी जगह था। मसायल चाहे दूसरे हों लेकिन हवा में तनी हुई मुट्ठी में गुस्सा और तेवर एक ही था। कह सकते हैं कि यह वर्ष अच्छा नहीं गुजरा। जहां तक भारत का सवाल है उसका यह प्रदर्शन या प्रदर्शनों का यह सिलसिला अत्यंत घरेलू मामला था और इसे दुनिया में भारत की छवि धूमिल करने या वित्तीय वर्ष में हुई उपलब्धियों को गंवाने की वजह नहीं बनने देना चाहिए। अक्सर किसी सरकार की नीतियों के खिलाफ अगर किसी देश में प्रदर्शन होता है तो दूसरे देश उस पर सामान्य से प्रतिक्रिया करते हैं। वह अपने देश के नागरिकों को उस देश में आने जाने से रोक देते हैं, और अगर जाना ही पड़ा तो अतिरिक्त सतर्कता के साथ जाने की सलाह देते हैं। लेकिन भारत में सीएए के विरुद्ध चल रहे व्यापक प्रदर्शनों का उल्लेख करते हुए खुद जापान के प्रधानमंत्री द्वारा गुवाहाटी की यात्रा रद्द करना सामान्य प्रतिक्रिया नहीं है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की वह यात्रा पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक विकास में जापान की भागीदारी को एक संस्थागत रूप देने तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की "लुक ईस्ट" नीति की बहुत खास कड़ी थी और साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के खिलाफ कूटनीतिक प्रयास भी था। हालांकि, भारत और जापान शायद ही इसे स्वीकार करें। यही नहीं ,एक और विदेशी मंत्री ने भी अपनी यात्रा रद्द कर दी। वह विदेशी मंत्री थे बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन। उन्होंने भी इस यात्रा को रद्द करने का कारण सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन ही बताया । यद्यपि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले में भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश को एक ही सूची में डालना पसंद नहीं है। इतना ही नहीं अमेरिकी सरकार ब्रिटेन का राष्ट्र मंडल विभाग और कई अन्य देशों के प्रतिनिधि मंडल ने भी अपनी यात्रा रद्द कर दी। अक्सर देखा गया है कि विदेश नीति के निर्माण पर घरेलू नीतियों का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन बीत रहे वर्ष में मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले किए जिसका असर भारत की विदेश नीति पर भी पड़ा है।
बीत रहे वर्ष के आरंभ में 14 फरवरी को पुलवामा पर आतंकी हमले के जवाब में भारत ने जो सर्जिकल स्ट्राइक किए और पाकिस्तानी ठिकानों को ध्वस्त किया इसके बाद भारत ने कई देशों में अपने राजनयिक भेजे। उन देशों की सरकारों को विश्वास में लिया कि आतंकवाद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हालांकि भारतीय विदेश नीति के व्यापक उद्देश्य और चीन को सामरिक रूप से संदेश देने को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं रही। शायद सोच समझकर ऐसी अस्पष्टता रखी गई। पाकिस्तान तो पहले से ही चीन का पल्लू थामे हुए है और अब अधिकृत कश्मीर में चीन को रास्ता दे कर उसने साल भर हिन्द महासागर तक चीन के आवागमन के लिए रास्ता दे दिया। एक तरह से पाकिस्तान ने चीन के सामरिक एजेंडे के लिए खुद का उपयोग होने दिया। चीन ने पाकिस्तान के दावे के आधार पर ही पीओके को सीमा वार्ताओं से अलग रखने की चाल चली। बालाकोट हमले के जरिए दिए गए संदेश का उचित स्तर पर प्रेषण हो गया। भारत ने यह संदेश दिया कि वह अधिकृत कश्मीर में किसी तरह के सैनिक जमावड़े या ऐसी किसी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगा जो उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है। धारा 370 को प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने कदम उठाए वह भी भारत की विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में बड़ा प्रभावशाली रहा। भारत ने अपने कूटनीतिक कौशल से चीन -पाकिस्तान गठजोड़ के मंसूबों को व्यर्थ कर दिया। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को पाकिस्तान जैसे नाकाम राष्ट्र के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। चीन ने आनन-फानन में भारत के साथ अपना रवैया बदलने की कोशिश शुरू कर दिया।उसने दुनिया को बताया कि दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं और अपनी -अपनी सीमा में रहना चाहते हैं।
यही कारण था कि एक तरफ चीन का अमरीका के साथ व्यापार युद्ध चल रहा था और दूसरी तरफ चीन ने वु हान शिखर सम्मेलन की अगली कड़ी के रूप में चेन्नई में आयोजित शिखर सम्मेलन में भाग लिया। चीन के विदेश मंत्री वांग ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक रूपरेखा पेश की। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा विदेश नीति के कुशल संचालन मौर्य काल में निर्मित व्यक्तिगत समीकरणों का प्रतिफल है हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय शक्ति समीकरणों में देशों की आर्थिक हैसियत भी महत्वपूर्ण हो गई है। सी ए ए एनआरसी के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उसका हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत खराब प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि यह विदेशी संस्थागत निवेशकों और शेष विश्व से भारत के संबंधों पर असर डालेगा लेकिन सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि यह आंदोलन उसकी उपलब्धियों को गवाने की वजह ना बने। वर्ना,
ये एक रोज़ हमारा वजूद डस लेगा
उगल रहे हैं जो ये ज़हर हम हवाओं में
Monday, December 30, 2019
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