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Friday, December 6, 2019

जरूरत है स्थाई व्यवस्था की


जरूरत है स्थाई व्यवस्था की 
हैदराबाद बलात्कार कांड के आरोपियों को पुलिस ने मार डाला। यह अपराधियों के भीतर डर पैदा करने का एक आदर्श तरीका है। न कानून ,न सुनवाई सीधा फैसला। बेशक इससे अपराधी खास करके बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में शामिल लोग डरेंगे। लेकिन इससे अपराध बंद नहीं होगा। क्योंकि, अपराध एक मानसिक प्रक्रिया है या कहें मानसिक विकृति है और यह विकृति किसी न किसी रूप में कायम रहेगी। अब से कोई 7 साल पहले दिल्ली में इसी तरह की एक और घटना हुई थी। निर्भया कांड नाम से मशहूर इस घटना के बाद कानून में थोड़े से बदलाव आए। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस घटना के अपराधी के लिए मौत की सजा मुकर्रर कर दी है। उसके बाद अपील की प्रक्रिया शुरू हुई और अभी तक कुछ नहीं हो सका। इस बीच महिलाएं आतंक में जी रही हैं और नारी द्वेष का शिकार हो रही हैं। इसमें जो सबसे ज्यादा अपमानजनक है वह है थोथा आदर्शवाद और मूर्खतापूर्ण दलीलें, जो हमेशा कुछ लोग इस तरह के अपराध के बाद पेश करते रहते हैं। हैदराबाद की घटना में पुलिस ने मुठभेड़ में चारों को मार गिराया। इसके बाद अब आने वाले दिनों में इसे लेकर नई जुमलेबाजी शुरू होगी और जांच की मांग होगी। तरह-तरह की दलीलें पेश की जाएंगी। यहां सतरंगे सियासी वर्ण पट के एक छोर पर नारी द्वेष और लैंगिक भेदभाव है जो हमारे मिथ्या सामाजिक आचार संहिता  से जुड़ा है। इस तरह की बर्बर तथा क्रूर घटनाओं के समय उस का हवाला दिया जाता है। लेकिन इससे क्या होता है कुछ भी तो नहीं । कोई समाधान नहीं निकल पाता ना ही किसी लक्ष्य की प्राप्ति होती है। यह सोचना कि इस किस्म के बर्बर कांड खत्म हो जाएंगे अगर सभी लोग महिलाओं को सम्मान से देखने लगें। यह एक लुभावना आदर्श है। हमें उस संभावना के लिए तैयार रहना पड़ेगा कि अत्यंत प्रगतिशील सामाजिक नियमों और आस्थाओं के बावजूद कुछ लोग वहशियों की तरह आचरण जरूर करेंगे और आदर्श सामाजिक मूल्य उनसे निपटने में सक्षम नहीं हो सकेंगे।इस के लिए एक प्रभावशाली आपराधिक न्याय प्रणाली आवश्यक है। वर्णपट के दूसरे छोर पर हमारे समाज में कुछ ऐसे लोगों का एक जत्था है जो महिलाओं के रहन-सहन  उनके पहनावे और उनके कामकाज को लेकर ऐसे अपराधों का औचित्य प्रमाणित करता है। कुछ लोग पुरुषों के खानपान, टेलीविजन, फिल्म ,मोबाइल फोन इत्यादि को भी इसके लिए जिम्मेदार बताते हैं। यह हमारे झूठे  गुस्से को प्रतिबिंबित करता है । एक क्लीव प्रक्रिया की तरह है। हमें इस पर कठिन प्रश्न उठाने होंगे। अगर कानून बन भी जाता है तो वह पहला कदम है या कहें कि इस दिशा में पहला सोपान है। हमें एक ऐसे आदर्श और जिम्मेदार प्रणाली को विकसित करना होगा जो कानून को लागू करे। सजा की कठोरता केवल एक चरण है ,बेशक वह अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन कानून को लागू करने वाली एजेंसी को भी जिम्मेदारी पूर्वक इसमें काम करना पड़ेगा।  गुस्से से कुछ नहीं होता। आज जो हैदराबाद में हुआ उससे कुछ समय के लिए बेशक हमारा असंतोष या कहें हमारा क्रोध शांत हो जाएगा ,लेकिन उपलब्धि क्या होगी? हर बार क्या बलात्कारियों को इसी तरह गोली मार दी जाएगी। उनकी सुनवाई जरूर होनी चाहिए, लेकिन जल्दी हो और कठोर से कठोर सजा मिले। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।          महिलाओं के प्रति अपराध से मुकाबले के लिए हमारा जो तंत्र है उसकी क्षमता भी पर्याप्त नहीं है । इसके लिए सबसे पहले हमें पुलिस के सभी स्तरों पर महिलाओं की भर्ती करनी होगी साथ ही जजों और अन्य संबंधित अधिकारियों की भी भर्ती करनी होगी। महिलाओं के प्रति अपराध में दो चरण होते हैं। पहला तो संसाधन का और दूसरा हमारी संस्कृति का। जब तक संसाधन नहीं पूरे होंगे तब तक कुछ नहीं किया जा सकता । आज पुलिस कांस्टेबल में भर्ती के लिए भी कम से कम दसवीं पास का होना जरूरी है। पुलिस व्यवस्था में लगभग 95% लोग कॉन्स्टेबल हैं। अब ऐसे लोगों को जब तक कठोर ट्रेनिंग नहीं दी जाएगी और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं किया जाएगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। हमें कांस्टेबल की भर्ती और ट्रेनिंग दोनों में आमूलचूल सुधार लाना होगा। अपराध शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार सबसे आवश्यक होता है केस हिस्ट्री में मॉडस  ऑपरेंडी का अध्ययन। इससे अपराधी के मनोविज्ञान पर प्रकाश पड़ता है। इन दिनों जो बलात्कार की घटनाएं घट रही हैं उसमें बलात्कार की शिकार युवती को जला देने की शुरुआत हुई है। इसके कारणों का जब तक पता नहीं लगाया जा सकेगा तब तक ऐसे अपराधों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। हैदराबाद में जो कुछ हुआ वह एक तात्कालिक गुस्से का इजहार था।  इसकी स्थाई व्यवस्था जब तक नहीं होगी तब तक कुछ नहीं हो सकेगा।

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