नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर देशभर में आंदोलन चल रहा है। हर छोटे-बड़े शहर में इसके खिलाफ झंडे उठे हुए हैं। लेकिन आंदोलन करने वालों से यह पूछें कि नागरिकता संशोधन कानून है क्या तो उसमें से बहुत बड़ी संख्या में लोग इसके बारे में कुछ नहीं बता सकेंगे। वह सिर्फ आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन क्यों कर रहे हैं इसकी हकीकत उन्हें मालूम नहीं है। बात यहीं तक हो तब भी गनीमत थी। इस आंदोलन में कई बड़े बुद्धिजीवी भी कूद पड़े हैं और उसमें शामिल लोगों को बरगला रहे हैं। कम से कम बुद्धिजीवियों और छात्रों से यह उम्मीद नहीं थी। इसे देखकर ऐसा लगता है कहीं ना कहीं कोई ऐसी शक्ति है जो उन्हें ऐसा करने के लिए उकसा रही है। जब तक उस छुपी हुई ताकत को गिरेबान से नहीं पकड़ लें तब तक कुछ भी कहना मुश्किल है। लेकिन चरित्र से साफ पता चलता है लोगों के भीतर व्याप्त गलतफहमियों को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी या कहें देश के हर आदमी तक स्पष्ट करने की कोशिश में जुट गई है। इतना ही नहीं लगभग 1100 शिक्षाविद ,बुद्धिजीवी और शोधकर्ताओं ने इस अधिनियम के पक्ष में हस्ताक्षरित बयान जारी किया है, ताकि लोगों में गलतफहमी ना हो और सरकारी संपत्ति का नुकसान ना हो। आंदोलन करने वालों को यह कैसे बताया जाए कि जिस सरकारी संपत्ति का नुकसान वे कर रहे हैं और जिसे करने के लिए उत्तेजित भीड़ में शामिल हैं वह संपत्ति उन्हीं के पैसों से बनी है। इस तरह का अंधानुकरण बड़ा अजीब लगता है। हमारे बुद्धिजीवियों ने इसे लोगों को बताने के लिए जो कदम उठाया है वह सचमुच सराहनीय है। दरअसल यह कानून 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत आए अफगानिस्तान ,पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ित और सताए हुए अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए एक फास्ट ट्रैक व्यवस्था है। इसमें भारतीय अल्पसंख्यकों को कहीं भी परेशान करने की कोई बात नहीं है। शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और शोधार्थियों द्वारा जारी बयान में साफ कहा गया है कि यह कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए है। नेहरू लियाकत समझौते के बाद से कई राजनीतिक नेता और राजनीतिक दलों ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों, खासकर जो दलित हैं उन्हें, को नागरिकता प्रदान किए जाने की मांग की है। लगभग 1100 बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने इसके लिए सरकार को बधाई दी है कि इसने बहुत दिनों से विस्मृत अल्पसंख्यकों के लिए कुछ किया। यही नहीं पूर्वोत्तर के राज्यों की भी पीड़ा सुनी गई और उनका निदान किया गया। उनका कहना है कि हमें यह विश्वास है कि यह अधिनियम भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुरूप है इससे ना देश की नागरिकता की शर्तें बाधित होती है और ना ही उनका उल्लंघन होता है। उल्टे विशेष स्थिति में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भाग कर आए लोगों की पीड़ा पर मरहम लगाता है। समर्थन में उतरे बुद्धिजीवियों का कहना है कि वे इस बात से दुखी हैं कि "घबराहट और डर का अफवाह फैला कर देश में जानबूझकर डर और उन्माद का माहौल बनाया जा रहा है। जिसके कारण हिंसा हो रही है।" इन लोगों ने समाज के हर वर्ग से अपील की है कि "वह संयम बरतें और दुष्प्रचार, सांप्रदायिकता और अराजकता को बढ़ावा देने वाले प्रोपेगेंडा में ना फंसे।"
इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी इस कानून के बारे में लोगों के मन में पैदा हुए भ्रम को दूर करने के लिए अगले 10 दिनों में 1000 छोटी बड़ी रैलियां करेगी। भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव के अनुसार नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष और प्रमुख रूप से कांग्रेस के माध्यम से भ्रम फैलाया है जा रहा है । उन्होंने कहा है कि विपक्ष द्वारा भ्रम और झूठ की राजनीति की जा रही है और यह रैली इसी का जवाब देने के लिए आयोजित की जा रही है। इसके माध्यम से एक विशेष अभियान चलाया जाएगा और तीन करोड़ से ज्यादा परिवारों से संपर्क किया जाएगा भाजपा का एक कदम निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम लाएगा क्योंकि जो लोग भ्रमित हैं जिन्हें मालूम नहीं है के यह कानून क्या है उनके दिमाग में इसकी स्थिति साफ होगी। वैसे आम जनता में खास करके भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय में इसे लेकर भारी चिंता व्याप्त है और उसे दूर करना समाज तथा सियासत का प्रमुख कर्तव्य है।
Sunday, December 22, 2019
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