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Wednesday, December 18, 2019

हिंसा के रूप में सुनाई पड़ने लगी है मंदी की दस्तक

हिंसा के रूप में सुनाई पड़ने लगी है मंदी की दस्तक 

क्रिसमस नजदीक है ऐसे में बड़े शहरों में दुकानें सामानों से पट जाती हैं और देर रात तक उनमें खरीदारों का हुजूम दिखाई पड़ता है। दुकानदारों को वक्त नहीं होता कि वह सामान दिखाएं। लेकिन इस वर्ष लोगों के पास इतनी आय या बिक्री शक्ति नहीं है कि विभिन्न उत्पाद खरीदें। ऐसी स्थिति में एकमात्र रास्ता बचता है  लोगों के पास पैसा पहुंचाया जाए। लेकिन, सरकार अभी भी ब्याज दर में कटौती कर रही है। वह चाहती है कि रिजर्व बैंक भी ऐसा ही करे। लेकिन चूंकि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर ध्यान रखता है इसलिए वह ऐसा नहीं कर पा रहा है।
     उपभोक्ता मूल्य सूचकांक देखते हुए यह कहा जा सकता है केंद्रीय बैंक अपनी जगह सही है और सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने 29 नवंबर 2019 को 2019 20 वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए जो आंकड़े जारी किए हैं वह भी सही है। उसने दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी 35.9 9 लाख करोड़ रुपए की है जोकि  2018 19 की इसी अवधि में 34.43 लाख करोड़  रुपए थी यह 4.5 वृद्धि दर है जो बीते 6 वर्षों में सबसे नीची है इस आंकड़े के बाद चर्चा है क्या देश में जल्दी ही मंदी का संकट आने वाला है इस वर्ष की दूसरी तिमाही में निवेश की  दर पिछले वर्ष की इसी अवधि से 1.0% कम रही।
इस आर्थिक सुस्ती के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि देश में आर्थिक नरमी के लिए केवल वैश्विक कारण पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक नरमी ,मुद्रास्फीति में वृद्धि, बैंक और एनबीएससी की वित्तीय हालात को दुरुस्त करने के लिए जरूरी कदम उठाएगा उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था को देखकर सूचनाओं और आंकड़ों पर के आधार पर चर्चा की जरूरत है शक्ति कांत दास के मुताबिक रिजर्व बैंक ने समझ लिया था कि  वृद्धि की रफ्तार कम होने वाली है इसलिए उसने सुस्ती होने के पहले ही फरवरी में रेपो दर में कटौती शुरू कर दी । उन्होंने कहा कि सरकार को भी विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिये। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से बुनियादी ढांचे पर खर्च पर ध्यान देना चाहिए । केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च जरुरी है ।
   इसका स्पष्ट अर्थ है की आर्थिक मंदी कायम रहेगी मध्यमवर्ग की आय कम होने से कर्ज बढ़ता जाएगा और सामाजिक तनाव में काफी वृद्धि होगी। अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने अपनी पुस्तक पुअर इकोनॉमिक्स में लिखा है कि समाज में खुशहाली के लिए और सामाजिक सौहार्द के लिए आर्थिक गुणक बहुत आवश्यक हैं। अगर अर्थव्यवस्था या कहें आमदनी कम रहेगी तो तनाव बढ़ेगा और तनाव बढ़ेगा उसके  अभिव्यक्ति हिंसा के रूप में दिखाई पड़ेगी अभी जो आर्थिक मंदी दिखाई पड़ रही है इस संकट की जड़े काफी पहले से मौजूद हैं। खराब मानसून के अलावा नौकरियों के गंभीर संकट और नोटबंदी जैसे मोदी सरकार के कुछ गलत कदम ने पूरी अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया। इसलिए पिछले कुछ वर्षों से बचत कम और घरेलू देनदारियां बढ़ती गईं। व्यक्तिगत बकाया ऋण 2014 से बढ़ रहे हैं जो उस समय जीडीपी का 9% थे और अब मार्च 2019 में बढ़कर जीडीपी का 11. 7% हो गए। यह कर्जे कैसे हैं इनमें लगभग आधे होम लोन हैं शिक्षा और क्रेडिट कार्ड बकाया ऋण भी हैं। दुनिया में जितनी आर्थिक और संसाधनों की असमानता बढ़ी है, उसमें सबसे ऊंचा स्थान भारत का है। विश्व असमानता रिपोर्ट (वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2018) के अनुसार, चीन में 1 प्रतिशत संपन्न लोगों के नियंत्रण में 13.19 प्रतिशत संपदा, जर्मनी में 13 प्रतिशत, फ्रांस में 10.8 प्रतिशत और अमेरिका में 15.7 प्रतिशत संपदा थी; जबकि भारत में 1 प्रतिशत लोगों के नियंत्रण में 22 प्रतिशत संपदा जा चुकी है। यह महज आंकड़ों या अर्थशास्त्र का तकनीकी विषय नहीं है; यह आर्थिक असमानता सामाजिक जीवन पर बहुत गहरा असर डालती है।
यह असर जहां उनके जीवन को ख़त्म भी कर रहा है और जीवन भर के लिए उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमताएं भी छीन ले रहा है। जब क्षमताएं छीन ली जाती हैं, तब लोग हिंसा के दुश्चक्र में फंस जाते हैं।भारत के विकास के लिए जिस चरित्र और स्वभाव की आर्थिक नीतियों को अपनाया गया था, वास्तव में उनकी मंशा संपदा को कुछ हाथों में ले जाकर केंद्रित कर देने की थी। उन आर्थिक नीतियों की मंशा संसाधनों और अवसरों के समान वितरण की व्यवस्था बनाने की नहीं थी। हमने विकास की जिस तरह की परिभाषा को अपनाया है, उसका स्वाभाविक परिणाम है बेरोजगारी, खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य का संकट, शिक्षा में गुणवत्ता का ह्रास और बाज़ारीकरण और चरम आर्थिक गरीबी।
जो तबके सबसे पहले इनकी चपेट में आए, वे चुनौतियों का सामना सबसे पहले करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इससे कुल मिलाकर जो तस्वीर बनती है बहुत डरावनी है।


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