प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सी ए ए पर आश्वासन
हफ्ते भर से चल रहे आंदोलनों के बरअक्स पहली बार रविवार को रामलीला मैदान में जनता के सामने आए और उन्होंने एनआरसी के बारे में सफाई दी। उन्होंने स्पष्ट रूप से देशभर में एनआरसी लागू करने से अपनी सरकार का बचाव किया और कहा कि मुसलमान जो हमारे धरती पुत्र हैं उन्हें सी ए ए अथवा एनआरसी से डरने की कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार ने देशभर में एनआरसी लागू करने की बात ही अभी तक नहीं की है। उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि देश में कोई यातना केंद्र या कह सकते हैं डिटेंशन सेंटर है और उन्होंने कहा कि कांग्रेस और उसके साथी, कुछ पढ़े-लिखे नक्सल और शहरी नक्सल इस किस्म की अफवाह फैला रहे हैं। बड़ी अजीब बात है। कुछ ही दिन पहले झारखंड चुनाव में एक सभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि जो तोड़फोड़ और आगजनी कर रहे हैं उन्हें उनके कपड़ों से ही पहचाना जा सकता है। रविवार को रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री ने कहा यह बड़ा सुकून देता है कि लोग तिरंगा थामे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि "नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों के हाथ में जब ईट पत्थर देखता हूं तो मुझे बहुत तकलीफ होती है। लेकिन जब उन्हीं में से कुछ के हाथ में तिरंगा देखता हूं तो सुकून भी मिलता है कि चलो तिरंगे को तो थाम लिया। मुझे उम्मीद है अब जब तिरंगा थाम ही लिया है तो लोग हथियार उठाने वालों, पाकिस्तान से प्रायोजित आतंकवादी हमले करने वालों के खिलाफ भी आवाज उठाएंगे। मैं टुकड़े-टुकड़े गैंग से तो विशेषकर कहना चाहता हूं कि जब तिरंगा थाम लिया है तो मुझे उम्मीद है कि आप नक्सली हमलों के खिलाफ भी बोलेंगे। शहरी नक्सलियों के बारे में भी बोलेंगे।"
प्रधानमंत्री के इस भाषण को चाहे जो अर्थ हैं वह अलग है। पक्ष और विपक्ष के लोग इसकी समीक्षा में लगे हैं। कुछ लोगों का जो कहना है वह सरकार ने जो कहा उससे वह अलग हो रही है। क्योंकि वह डर गई है। जबकि सत्ता पक्ष ने इसके समर्थन में हाथ ऊंचे किए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि दोनों पक्षों से देश की जनता जुड़ी हुई है और चाहे आप इसे सरकार के खिलाफ उकसाने वाली कार्रवाई कहें या कांग्रेस तथा उसके सहयोगियों की करतूत या शहरी नक्सलियों की कारस्तानी लेकिन इसमें शक नहीं है प्रधानमंत्री का यह भाषण देश की जनता के बीच एक बहुत बड़ी आश्वस्ति के रूप में सामने आया है। लोगों में जो व्यापक भय था उसमें थोड़ी कमी हुई है। लेकिन यहां एक प्रश्न उठता है कि यह जो विरोध हो रहा है उस विरोध में कौन लोग शामिल हैं। क्या भारतीय मध्यवर्ग फिर सामने आ गया और आंदोलन का झंडा उठा लिया है। मध्यवर्ग हमारे देश का वह समुदाय है जो इनकम टैक्स चुकाता है, जो पढ़ लिखकर बेरोजगारी को झेलता है। मध्यवर्ग की खूबी यह है कि जहां भी सत्ता पर बहस होती है वहां इसकी मौजूदगी होती है। जहां भी भ्रष्टाचार पर बात होती है वहां भी इसकी उपस्थिति होती है। लेकिन बमुश्किल यह समुदाय हमारे राजनीतिक नेताओं के मन में कोई ऊंची जगह पाता है। यह गौर करने वाली स्थिति है कि आखिर वह कौन से हालात हैं जिसे महसूस कर मध्यवर्ग सक्रिय होता है । यह सक्रियता तब होती है जब मिडिल क्लास का गुस्सा उबलता है और यह गुस्सा तब उबलता है जब राजनीतिज्ञ या हमारे नेता इन्हें नजरअंदाज करते हैं। इनकी कोई फिक्र नहीं करते हैं। 1970 का जयप्रकाश आंदोलन या कह सकते हैं जेपी आंदोलन ने पूरे देश को झकझोर दिया और ऐसी स्थिति पैदा कर दी की आपात स्थिति लागू करनी पड़ी। उसके एक दशक के बाद बोफोर्स दलाली का मामला आया और विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो बन गए।
मोदी जी के जनता के बीच में आने का मुख्य कारण भी यही है। वह इस स्थिति को समझते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ जो आंदोलन चल रहा है यह कांग्रेस का मामला नहीं है। यह धीरे-धीरे जन आंदोलन का रूप अपना रहा है। प्रधानमंत्री के आश्वासन ने लोगों के गुस्से पर एक खास किस्म का ठंडा लेप लगाया है और यह बेशक देश हित में है और सार्वजनिक हित में है।
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