केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक पारित कर दिया है। इस विधेयक के अनुसार गैर मुस्लिमों को जो बांग्लादेश पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान से आए हैं भारतीय नागरिकता प्रदान करने का भी प्रावधान है। अब यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। नए विधेयक में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसे घुसपैठिया माना जाएगा। विधेयक में कट ऑफ तारीख 31 दिसंबर 2014 तय की गयी है। यही नहीं, किसी भी भारतीय प्रवासी नागरिक को फरियाद का मौका दिया जाएगा। नए विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि इसकी धाराएं अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड ,मिजोरम और मणिपुर में लागू नहीं होंगी। कैबिनेट द्वारा मंजूरी दिए जाने के पूर्व मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह ने असम के छात्र संगठनों और नागरिक संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ भी नागरिकता संशोधन विधेयक पर बातचीत की। इस वार्ता में असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी शामिल थे। बातचीत के दौरान ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन समेत कई संगठनों ने गृह मंत्री के सामने इस विषय पर अपनी चिंता प्रगट की कि इस विधेयक पर पूर्वोत्तर के लोग काफी नाराज हैं। इसी नाराजगी की छाया में गृहमंत्री ने यह बैठक बुलाई थी । बड़ी संख्या में पूर्वोत्तर के लोगों और कुछ संगठनों ने इस विधेयक का विरोध किया है। उनके मुताबिक सन 1985 की असम संधि के प्रावधानों को इस बिल के बाद निसंदेह निरस्त मान लिया जाएगा ।जबकि उन प्रावधानों में 24 मार्च 1971 के बाद आए सभी लोगों को घुसपैठिया माना गया है। सभी लोग चाहे जिस जाति के हों , जिस धर्म के हों। पिछले हफ्ते पूर्वोत्तर के 12 गैर भाजपा सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इससे होने वाली मुश्किलों पर भी ध्यान रखने की अपील की थी। यहां इस बात को समझना बहुत आवश्यक है कि इसका विरोध क्यों हो रहा है? विरोध का कारण है कि पड़ोस में बांग्लादेशी मुसलमान और हिंदू दोनों बड़ी संख्या में अवैध तरीके से भारत में आकर बस जा रहे हैं और इसके पीछे का राज यह है कि वर्तमान सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में है और इसीलिए प्रवासी हिंदू समुदाय को सुविधाएं मुहैय्या कराने की बात चल रही है और इसी के विरोध में स्थानीय समुदायों ने प्रदर्शन आरंभ कर दिया है। हालांकि अभी तक कोई हिंसक घटना सुनने को नहीं मिली है लेकिन यह तय है कि इस पर अगर सरकार आगे कदम बढ़ाती है तो स्थानीय जनता का गुस्सा फूट पड़ेगा और जब जनता का गुस्सा सरकार के खिलाफ होता है तो उस सरकार का हश्र क्या होता है यह सब जानते हैं। अब सवाल है कि विरोध की आशंका के बावजूद भाजपा क्यों इस पर कदम बढ़ा रही है? भाजपा के भरोसे का मुख्य कारण है उस क्षेत्र में भाजपा को मिला समर्थन। समूचे पूर्वोत्तर की 25 संसदीय सीटों में से भाजपा को और फिर सहयोगी पार्टियों को अट्ठारह पर विजय मिली।असम भा ज पा नेताओं का कहना है कि असम के लोगों ने उनकी पार्टी को नागरिकता के मुद्दे पर समर्थन दिया है इस विधेयक के पारित हो जाने से भाजपा को बहुसंख्यको की पार्टी होने की छवि और सुधरेगी।
अब ऐसा दिख रहा है कि भाजपा इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पारित करवाने की योजना बना रही है। लेकिन इस विधेयक की व्यवहारिकता पर बहुत कम चर्चा हुई है। अमेरिका मैक्सिको सीमा पर दीवार बनाने की ट्रंप की योजना की तरह भी व्यावहारिक नहीं है। लेकिन इससे जो आर्थिक बोझ पड़ेगा उससे इनकार नहीं किया जा सकता। लड़खड़ाते जीडीपी के इस माहौल में यह बहुत बड़ा बोझ होगा असम में एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में 4 साल से ज्यादा समय लगा था और खबरों की मानें तो 55 हजार लोगों को इस पर काम में लगाया गया था। जिसमें सरकार का सोलह सौ करोड़ रुपया खर्च हुआ था। याद होगा कि शुरुआत में इससे 40 लाख लोगों को बाहर रखा गया था और कारण सत्यापन की प्रक्रिया के दौरान धन और उपयोगिता का काफी नुकसान हुआ। डर है कि एनआरसी की यह पूरी कवायद लगभग नोटबंदी की तरह व्यर्थ ना हो जाए। क्योंकि इस पर अंतिम सूची के प्रकाशन भर से ही पूर्णविराम नहीं लग रहा है। दरअसल यह संपूर्ण प्रक्रिया का पहला भाग है। सबसे बड़ी समस्या तो तब उत्पन्न होगी जब एनआरसी से बाहर लोगों के बारे में सोचा जाएगा । उनका क्या होगा? वह कहां रखे जाएंगे ? एनआरसी समर्थक आनन-फानन में कहते हैं कि उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। लेकिन बांग्लादेश अवैध प्रवासियों को क्यों लेगा? मोदी सरकार को इस समस्या का अंदाजा है। इसीलिए वह हिरासत केंद्रों पर काम कर रही है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। असम का पहला हिरासत केंद्र बन रहा है। इस पर 46 करोड रुपए की लागत आ रही है। करीब ढाई एकड़ में फैले इस केंद्र में तीन हजार लोगों को रखा जाएगा। लेकिन एनआरसी की जो अंतिम सूची है उसमें 19 लाख लोग बाहर है अगर इनका हिसाब लगाया जाए तो इन लोगों के लिए जो हिरासत केंद्र बनाया जाएगा उस पर 27000 करोड रुपए लगेंगे और यह तो सिर्फ असम की बात हुई है । अगर पूरे देश में ऐसा करना पड़ा अनुमान लगाना मुश्किल है। यह तो सिर्फ निर्माण की बात है। उसके बाद उनका रखरखाव ,भोजन - पानी ,देखरेख का भी खर्च शामिल है । इन मुद्दों पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च हो सकते हैं और यह सारा का सारा खर्च नकारात्मक होगा ,अनुत्पादक होगा।
Thursday, December 5, 2019
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