विगत कुछ दिनों से संपूर्ण देश में विभिन्न जघन्य अपराधों की घटनाओं से जुड़ी खबरें आ रही हैं और उन्हीं खबरों के साथ मिलजुल कर आ रहे हैं अर्थव्यवस्था की मंद होने का समाचार, देश में ताजे डर के माहौल का समाचार वगैरह। कुल मिलाकर देखें हालात बड़े खराब दिशा में जा रहे हैं। इनमें कहां तक सच्चाई है यह जानने के लिए आंकड़े भी सही उपलब्ध नहीं है। अभी हाल में सरकार पर सीधा आरोप लगाया गया कि लोगों में इतना डर व्याप गया है कि कोई मुंह पर कुछ कहने का साहस नहीं कर रहा है। जिस कार्यक्रम में यह सब बातें हो रही थी उस कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह के अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ,रेल मंत्री पीयूष गोयल भी शामिल थे । इस कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपनी बात कही। उन्होंने स्पष्ट कहा कि देश में डर का व्यापक और प्रत्यक्ष माहौल है। उन्होंने कहा कि उद्योगपति सरकारी प्राधिकरणों के उत्पीड़न के माहौल में जी रहे हैं ।
अभी हाल में जो जीडीपी के आंकड़े आए हैं उसमें माना गया है कि देश की जीडीपी की दर साढे 4% पहुंच गई है। कुछ दिन पहले एक समाचार एजेंसी ने कुछ अर्थशास्त्रियों से बात कर यह दर 5% होने की आशंका व्यक्त की थी। अब यदि आंकड़ा ही गया है तो पिछले आंकड़ों से अलग कुछ नई बात हो। सबसे पहले तो यह साढे चार प्रतिशत की जो दर है वह 2013 के बाद से सबसे कम है। चिंतनीय तथ्य है कि यह लगातार छठी बार है और जीडीपी का पतन जारी है। उद्योग धंधे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। उद्योगों के विकास की दर भी गिर रही है। इसमें भी कारखानों की हालत और खराब है। कृषि क्षेत्र में विकास की दर 4.9 प्रतिशत से गिरकर 2.1 प्रतिशत पहुंच गई है। सर्विसेज की भी हालत खराब है यह अभी 7.3% से गिरकर 6.8% रह गई है।
जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का मतलब है कि देश भर में जहां कहीं भी जो कुछ भी बन रहा है जो भी कमाई हो रही है उस सब का कुल जोड़ है। कमाई का हिसाब आसानी से नहीं लगता है इसलिए यह हिसाब लगाने का आसान तरीका है कि खर्च का हिसाब लगाया जाए। यानी कुछ भी खरीदने पर हुआ खर्च जीडीपी है। अगर खर्च बढ़ रहा है जीडीपी बढ़ रही है अगर गिर रहा है तो जीडीपी घट रही है ।भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी इस साल मार्च में 2041 डालर यानी करीब एक लाख 46 हजार रुपए थी। इसका मतलब है कि इतनी सालाना कमाई पर बहुत से लोग मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों में आज भी परिवार पाल रहे हैं। लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है। मुट्ठी भर लोग इससे हजारों लाखों गुना अधिक कमा रहे हैं। जीडीपी का तिमाही आंकड़ा इसलिए भी चिंता का विषय है कि विगत दिनों में गिरते-गिरते कहां पहुंच गया। लोगों के खर्चे कम होते गए। क्योंकि खर्च कम होने का मतलब है आय के साधनों का सिकुड़ना। सरकार का लक्ष्य है 5 खरब डॉलर व्यवस्था बनाने का । इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है जीडीपी विकास दर 12% के ऊपर होना। पिछले 10 वर्षों से तो भारत 10% का भी सपना नहीं देख पाया है। आमतौर पर 7 से 8% के बीच यह बढ़ता रहा है । लोगों के पास खर्च के लिए पैसे नहीं हैं। लोग बहुत सोच समझकर खर्च कर रहे हैं। उत्पादन बिक नहीं रहा है और व्यापारी तथा उत्पादक कंपनियां मुश्किल में है और उनकी मुश्किल है उस कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों पर भी। उनकी तनख्वाह बढ़ नहीं रही है। छटनी का डर कायम है। लोगों को खुद की तरक्की पर भरोसा नहीं है। 3 दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद माना अर्थव्यवस्था में सुस्ती चल रही है। अभी सुस्ती का क्या उपचार है? उपभोक्ता के मन में विश्वास कैसे जगेगा? क्योंकि यह स्थिति बहुत खराब है। इन आंकड़ों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। अगर निवेश नहीं बढ़ेगा रोजगार नहीं बनेंगे और रोजगार नहीं बनेंगे तो हालत तो ऐसे ही खराब रहेगी। इसलिए अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए ना कोई शॉर्टकट है ना कोई जादू की छड़ी। इसके लिए भारत सरकार को कठिनाई से काम करना होगा। वरना सारे सपने चूर चूर हो जाएंगे। देश विकास के रास्ते पर नहीं चल पाएगा और चारों तरफ अभाव की छाया दिखाई पड़ेगी। अभाव से ग्रस्त भूखा समाज किसी भी अपराध के लिए प्रस्तुत हो सकता है और अगर यह स्थिति आती है तो सरकार के लिए भारी मुश्किल पैदा हो जाएगी।
Monday, December 2, 2019
देशभर में क्या हो रहा है यह कोई नहीं कह रहा
देशभर में क्या हो रहा है यह कोई नहीं कह रहा
Posted by pandeyhariram at 4:55 PM
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