CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Tuesday, December 17, 2019

ये क्या हो रहा है इस देश में

ये क्या हो रहा है इस देश में 

मैथिलि शरण गुप्त कि एक कविता है कि ,
हम क्या थे क्या हो गए और क्या होंगे कल
आओ विचारें हम सब बैठ कर
आज हमारे देश की हालत कुछ ऐसी ही विचारणीय हो गयी है. बड़ी – बड़ी और जरूरी बातें आंदोलनों और बलवों के शोर में गुम हो जाती हैं. मिसाल के तौर पर देखें कि पिछले हफ्ते भर से बलात्कार , पीड़िता  को जलाए जाने, सी ए ए का व्यापक विरोध और समर्थन वैगेरह के शोर में दब गया कि देश कि असली हालत क्या है? प्याज की कीमतें आकाश छू रहीं हैं, दूध की  कीमत बढ़ गयी. यह सारी  बातें बता रहीं  हैं कि जल्दी ही खाने पीने चीजें महंगी  होंगीं. इस ओर किसी का ध्यान नहीं  जा रहा है. यह सब देख कर लगता है कि कहीं यह सारे काम पूर्व नियोजित या सोच समझ  कर तो नहीं किये जा रहे हैं. कुछ दिन पहले इकोनामिस्ट पत्रिका ने लिखा था कि भारत कि विकास दर गिर कर 5 प्रतिशत पर पहुंच गयी है और स्टैण्डर्ड एंड पूअर ने भारत की साख को भी कम कर दिया है. तत्काल सरकार ने इसका खंडन किया और विकास दर को 6 प्रतिशत बताया. हाल में इसमें संशोधन हुआ और इसे 4.5 प्रतिशत बताया गया.उसी तरह राष्ट्र संघ के आंकड़े में बताया गया कि भारत में कुपोषण कि शिकार लोग सबसे ज्यादा हैं. लगभग उसी समय यह भी खबर आई कि देश के अधिकांश शहरों में पीने के लिए साफ़ पानी नहीं है. इसके थोड़े ही दिनों के बाद बलवे आरम्भ हो गए. प्रशासन मौन है. वैसे भी हमारे देश में प्रशासन कि कोई प्रभावशाली भूमिका नहीं है और इसके साथ ही उसे एक सुविधा मिल जाती है कि वह अपनी जिम्मेदारियों से हाथ झाड़ ले या खुद ब खुद उसकी  जिम्मेदारिओं  का दायरा सिकुड़ जाय. सकल उत्पाद कि दर 4 प्रतिशत हो 3.5 प्रतिशत उससे उन्हें कोई पार्क नहीं पड़ता और ना ही इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि कुपोषण से 300 बच्चे मरते हैं  या 3 लाख. जब कहीं कुछ होता है तो आकड़े का खेल शुरू हो जाता है.सत्तर वर्षों से यही चला आ रहा है और अब इसकी अति हो गयी है. मानव कल्याण पर ध्यान किसी का नहीं है और इसलिए सबका ध्यान स्वनिर्मित स्थितियों पर चला  जाता है. हकीकत कि ओर से सबका ध्यान हट रहा है. अब जैसे ताजा उदाहरण नए संशोधित नागरिकता कानून का ही लें. चारों  तरफ फसाद हो रहे हैं. यक़ीनन कुछ दिन में सब शांत हो जाएगा और लोग अपने कम में जुट जायेंगे, लेकिन इसे सामान्य हालात समझना सही नहीं होगा. साधारणतया सरकार ऐसा  ही समझती है. सी ए ए के सन्दर्भ में भारत का समाज कई हिस्सों में बता हुआ है. जैसे,देश का पूर्वोत्तर भाग कई देशों कि सीमाओं से जुड़ता है और यहाँ कई तरह की  संस्कृतियां  एक साथ बसती हैं. इसमें सभी में अपनी सांस्कृतिक पहचान  की  अलग-अलग जिजीविषा है और सब उसे कायम रखना चाहते हैं.अब अगर इसमें धार्मिकता या धर्म को मिला दें हालत और कठिन हो जाती है.  इसका नतीजा यह होता है कि ये बाहर  से आकर बसने वालों का विरोध करते हैं. अब सी ए ए के परिणाम का ये जो आकलन करते हैं वह बेहद खतरनाक है. यही कारन है कि वहाँ विरोध की लपटें उठने लगीं. अब मोदी जी ने उनकी ने उनकी भाषा और संस्कृति को अक्षुण्ण रखने का आश्वासन दिया लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी और बात बिगड़ चुकी थी. असम में इस डर  की  जड़ें  अतीत से जुडी हुई हैं.जब 1874 में असम बंगाल से अलग हुआ तब से असम कि बाशिंदों के भीतर यह डर कायम है.
     समय समय पर यह डर सिर उठा लेता है. यही नहीं बंगाल कि हालत कुछ दूसरी है. भारत के विभाजन के समय का खून खराबा अभी भी इतिहास के पन्नों से निकल कर लोगों को डराता है. अब नागरिकता संशोधन क़ानून में जब यह कहा गया कि बहार से आये लोगों कि शिनाख्त होगी तो राजनीति  के निहित स्वार्थी तत्वों ने इसका दूसरा अर्थ लगाया और उस अर्थ ने सबको डरा दिया. सबके मन में यह बात आई कि जितने अल्पसंख्यक बाशिंदे हैं सब मुस्लिम हैं और सब उसपार से आये हैं.  उन्हें निकाला जाएगा. उधर बांग्लादेश में भी इसकी तीखी प्रतिक्रिया है. बंगलादेश की सरकार का कहना है कि अगर वहाँ कोई बंगलादेशी है तो उसे वापस ले लिया जाएगा, लेकिन हमारे नागरिक के अलावा अगर कोई प्रवेश करता है तो उसे वापस भेज दिया जाएगा.
     बंगलादेश सरकार के इस रुख से साफ़ पता चलता है कि कानून का कूटनीतिक असर भी पडेगा. जब यह विधेयक  पारित हुआ तो और उसके बाद वहाँ हिंसा आरम्भ हो गयी तो बँगला के वदेश मंत्री और जापान के प्रधान मंत्री ने अपनी भारत यात्रा रद्द कर दी. यह भारत पर तीखा प्रहार था.यही नहीं राष्ट्र संघ के मानवाधिकार परिषद् ने इसके विरोध में बयान जारी किया. यदि विदेशी सरकारें और विदेशी निवेशक अब भारत में कुछ करने के पहले सोचती हैं तो यह भारत के लिए हानिकर होगा. मोदी सरकार एक थ्कत्वर भारत का निर्माण करना चाहती है लेकिन यह इस रह का रोड़ा साबित होगा.                             
 

0 comments: