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Friday, December 13, 2019

सीएबी को लेकर पूर्वोत्तर में डर

सीएबी को लेकर पूर्वोत्तर में डर 

दिसंबर से पहले पखवाड़े का यह वक्त शुरू से भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण रहा है। अब से कोई 72 वर्ष पूर्व जब भारत आजादी के पायदान पर धीरे-धीरे ऊपर की ओर पढ़ रहा था और आजादी की उम्मीद है बहुत तेजी से बढ़ रही थी उसी वक्त हिंदू और मुसलमान के दंगे हुए। विख्यात साहित्यकार मंटो ने भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को खून की लकीर से बांटी गई जमीन की संज्ञा दी थी। लगभग 48 बरस पहले इसी महीने में बांग्लादेश युद्ध के कारण लाखों लोग  अपना घर बार छोड़कर भारत आ रहे थे। उस दौरान पाकिस्तानी फौज के जुल्म और बर्बरता की कहानी इतनी भयानक है कि इसे बयान करने में  इतिहास को भी शर्म आ जाए। ऐसे बैकड्राप में लगभग इन्हीं महीनों में भारत में इस साल नागरिकता संशोधन विधेयक ने एक बार फिर समाज की सहिष्णुता को उबलने के लिए मजबूर कर दिया है। पिछले कई दिनों से पूर्वोत्तर भारत उबल रहा है । यह उबाल अपने वजूद , अपनी जमीन की अनिश्चयता से जन्मी पीड़ा  की अभिव्यक्ति है। इसमें ऐसे लोग शामिल हैं जो हर 40- 50 वर्षों के बाद अपना घर बार बदलते रहे हैं। एक मुल्क से दूसरे मुल्क जाते रहे हैं और इसी तरह की बेचारगी का शिकार होते रहे हैं। चाहे वह पाकिस्तान हो या बांग्लादेश। हालांकि प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक से पूर्वोत्तर को कोई नुकसान नहीं होगा और उनकी संस्कृति ,विरासत, भाषा तथा परंपरा की रक्षा की जाएगी । यहां एक बड़ा अजीब मुहावरा है और वहीं से डर पैदा हो रहा है। वह मुहावरा है "रक्षा की जाएगी" यानी फिलहाल उसको खतरा है। चाहे वह बड़ा हो या छोटा प्रधानमंत्री ने उसी खतरे की ओर इशारा करते हुए यह आश्वासन दिया है और यह भी  बताने की कोशिश की है कि विरोधी दल खासकर कांग्रेस उस क्षेत्र में अफवाहें फैला रही है। लेकिन  सरकार ने क्या पूर्वोत्तर के लोगों के मानस का अध्ययन किया है? इस विधेयक से वहां के लोगों के मन की यह अभिव्यक्ति है। उन्हें लग रहा है कि  उनकी भाषा और संस्कृति धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। सरकार को इस डर का ध्यान रखना चाहिए था और उसके अनुरूप कदम उठाने चाहिए थे। लेकिन, उसने ऐसा नहीं किया और लोगों के मन में यह बात बैठ गई यह सरकार मनमाने ढंग से सब कुछ कर रही है। यही वजह है कि लोग सड़कों पर उतर गए। यहां के लोगों का यह कदम स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया है । 14 अगस्त 1947 की रात जब भारत आजाद हो रहा था तो जवाहरलाल नेहरू का एक मशहूर भाषण "ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी " हमारे इतिहास का एक अंग बन गया। आज नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में हम कह सकते हैं यह एक नई तरह की डेस्टिनी से हमारा मुकाबला है। शुरुआत में भारत ने लोकतांत्रिक संवैधानिकता  के पथ का अनुसरण करने का निश्चय किया था। इससे सबसे पहला अर्थ जो प्राप्त होता था वह था नागरिकता एक अधिकार है और यह अधिकार समानता के सिद्धांतों पर निर्भर है। भारत की राष्ट्रीयता दुनिया के लिए मिसाल बन गई। नागरिकता संशोधन विधेयक जिसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में बड़े गर्व के साथ शामिल किया था आज उसी नागरिकता संशोधन विधेयक में पाकिस्तान , बांग्लादेश  और अफगानिस्तान  से आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों , जैन, पारसियों एवं ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का आश्वासन यह साफ स्पष्ट करता है की अन्य किसी समुदाय के लिए इसमें जगह नहीं है। हमारे गृह मंत्री इसे लेकर अत्यंत उत्साहित हैं और वह इससे उत्पन्न होने वाले अलगाववाद के भाव को मानवतावाद चोले से ढकना चाहते हैं। नतीजा यह हुआ समस्त पूर्वोत्तर भारत उबल उठा । इसका कारण है कि भारत का यह क्षेत्र घुसपैठ का सबसे बड़ा शिकार हुआ है। यह जहर केवल भाजपा नहीं फैला रही है बल्कि कई अन्य राजनीतिक दल भी इसमें शामिल हैं। जिन्होंने इसके पक्ष में मतदान किया है। आज  नहीं कल यह ताजा हालात भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा जरूर बनेंगे।


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