गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार की रात एक साक्षात्कार में कहा कि देश में एनपीआर या राष्ट्रीय जनसंख्या नियम लागू किए जा रहा है इसे लेकर भी गंभीर कंफ्यूजन है जनसंख्या रजिस्टर को लागू करने में लगभग 39 सौ करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसके माध्यम से जन्म की तारीख और जन्म की जगह का पता लगाया जाएगा साथ ही आवेदक के माता पिता की जन्म की तारीख और जन्म स्थान के बारे में भी जानकारी ली जाएगी ।यही नहीं इसके माध्यम से आवेदक का परिचय भी जैसे आधार कार्ड आधार नंबर ,पासपोर्ट नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस ,वोटर कार्ड इत्यादि भी एकत्र किये जाएंगे। सरकार की नजर में सामान्य नागरिक वह है जो किसी जगह में 6 महीने से रह रहा है और अगले 6 महीने तक रहने की इच्छा रखता है। आधार कार्ड, पासपोर्ट ,ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर कार्ड इत्यादि के विवरण देना स्वैच्छिक है। दोनों जनगणना की रिपोर्ट भी एनपीआर के माध्यम से एकत्र किये जायेगा। इसके लिए ऐप और एक फॉर्म के माध्यम से जानकारी दी जा सकती है।
मंगलवार की रात अमित शाह ने जो कुछ भी बताया उस में जानकारी कम थी और भ्रम ज्यादा फैला है । जैसे उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक यानी सी ए ए को संसद में पास कर दिया है । इसे असंवैधानिक कहना ग़लत है। लेकिन यहां एक प्रश्न है कि ऐसी मिसाल है जब किसी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और उस पर उसने रोक लगा दिया है। उदाहरण के लिए देखें संविधान में 4 और 5 जोड़ा गया है जिसके मुताबिक संविधान में जिसके मुताबिक संविधान में किसी तरह के संशोधन को किसी भी तरह से कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती और संशोधन के लिए संसद की शक्ति असीमित होगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों को असंवैधानिक करार दे दिया। नागरिकता संशोधन कानून को भी कोर्ट में चुनौती दी गई है और 22 जनवरी 2020 को सुनवाई शुरू होगी अब यहां सवाल उठता है कि यह कानून भारतीय नागरिकों के बारे में नहीं है और ना ही भारत के मुसलमानों के बारे में तब इतनी हाय तौबा क्यों? यहां यह साफ कर देना जरूरी है कि यह कानून सिर्फ 3 देशों के 6 धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता दिए जाने के बारे में है। नोटबंदी की आपाधापी और परेशानी से डरे हुए लोग नागरिकता की जांच को लेकर भी डरे हुए हैं। क्योंकि अगर 10% मामलों में भी गड़बड़ी हो गई तो भारत के 13 करोड़ लोगों कि जिंदगी मुसीबत में पड़ जाएगी।
इस डर के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में अमित शाह ने एक नई बात कही। नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर ) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) में कोई रिश्ता नहीं है। शाह ने कहा एनपीआर में आम आदमी जो सूचना देंगे उनके आधार पर जानकारियां एकत्रित की जाएंगी। सूचना के आधार के लिए कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा हालांकि एनपीआर और जनगणना दोनों अलग-अलग व्यवस्था होगी लेकिन यह भी कंफ्यूजन है कि दोनों अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं । शाह ने कहा पूरे भारत में एनआरसी को लागू करने जैसी कोई बात नहीं है। यह बात 2 दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी कही थी। इस पर कैबिनेट और संसद में कोई चर्चा नहीं है। हां अमित शाह ने भी वही बात कही की नागरिकता संशोधन कानून के परिप्रेक्ष्य में एनआरसी को लेकर आम जनता को भड़काया जा रहा है। अमित शाह ने स्पष्ट किया कि नागरिकता संशोधन कानून लोगों की नागरिकता लेने की नहीं देने का कानून है।
लेकिन नागरिकता रजिस्टर भी सुरक्षित नहीं है। क्योंकि यह लोगों के ढेर सारे व्यक्तिगत आंकड़े भी जुटा रहा है जिसमें व्यक्तिगत परिचय का डेटाबेस, वोटर कार्ड, पासपोर्ट और जैसा कि अमित शाह ने कहा सबको एक ही कार्ड में डाल दिया जाएगा। उन्होंने रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया एंड सेंसस के नए कार्यालय के उद्घाटन में साफ कहा था कि यह अलग-अलग व्यवस्था बंद करनी होगी। इस तरह का पहला प्रयास यूपीए के जमाने में हुआ था और इसे गृह मंत्री पी चिदंबरम ने 2009 में आरंभ किया था। उस समय इसमें और आधार में कंफ्यूजन हो गया था। बाद में इसे रोक दिया गया।
भारत जैसे विशाल और विविधता पूर्ण देश में इस तरह के प्रयास अक्सर आतंक पैदा करते हैं और उस आतंक का निहित स्वार्थी तत्व लाभ उठाते हैं। देश में लोगों को बरगला कर हिंसा यह तोड़फोड़ की घटनाओं को अंजाम देते हैं। सरकार को चाहिए कि जल्दी से जल्दी इस तरह के भ्रम और अफवाहों का शमन करने वाली जानकारियां लोगों के बीच पहुंचाएं ताकि ऐसा कुछ ना हो वैसे सरकार का यह कहना अपने आप में आप आश्वस्ति पूर्ण है कि इससे किसी की नागरिकता नहीं जाएगी लेकिन साथ ही उसे ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि लोग इसके बाद भ्रम में ना आएं और हिंसक घटनाओं में लिप्त ना हों।
Wednesday, December 25, 2019
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