एन पी आर, सीएएए और कई तरह के प्रदर्शनों के बीच यह खबर चौंकाने वाली है कि हमारे देश में कुल 8 करोड़ से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। सरकार एक तरफ जनसंख्या का रिकार्ड बनाना चाहती है तो दूसरी तरफ बिना रिकार्ड और जन्म प्रमाण पत्र के बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है ।
जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून 1969 के तहत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण 21 दिन के भीतर करवाना अनिवार्य है लेकिन हाल में रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया के सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की ओर से दिए गए आंकड़ों से पता चलता है 2017 में जन्म के 84.9% और मृत्यु के 79.6% का ही पंजीकरण हुआ था बाकी ना बच्चे पैदा हुए और ना लोग मरे। कैसी विडंबना है ,एक ऐसे देश में जहां जनसंख्या के आंकड़े तैयार किए जा रहे हैं और उसे लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। जिन बच्चों के जन्म का पंजीकरण नहीं हुआ है, यूनिसेफ के मुताबिक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती यह भारत के लिए ही केवल विचित्र नहीं है बल्कि कई देशों में ऐसा होता है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 16.6 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिनका जन्म पंजीकरण नहीं हुआ है। इन 16.6 करोड़ बच्चों में आधे से ज्यादा यानी फ़र्ज़ करें लगभग 8 करोड़ से अधिक ऐसे बच्चे हैं जो भारत में रहते हैं। यूनिसेफ की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले 5 साल से 5 साल से कम उम्र के लगभग 2.6 करोड़ ऐसे बच्चे हैं जिनके जन्म का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ। जन्म का पंजीकरण एक बच्चे को ऐसी कानूनी मान्यता देता है जो उसकी पहचान बनता है। यही एकमात्र सबूत होता है कि बच्चा किस देश में जन्म लिया है और कब उसका जन्म हुआ है। बच्चे का जब पंजीकरण नहीं होता तो बाद में गणना भी नहीं हो सकती । जनगणना तभी होगी जब बच्चे जीवित बच जाएंगे। आई एस आई के मुताबिक भारत में शिशु मृत्यु दर खासकर 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा है इस कारण बहुत से बच्चों की शायद कभी गिनती नहीं हो पाती। जन्म पंजीकरण में तेजी 2000 के दशक में शुरू हुई जब अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों की जन्म दर बढ़ने लगी। इससे पहले बच्चे घरों में पैदा लेते थे जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं था। 2000 से पहले जन्मे बच्चों में बहुत के पास प्रमाण पत्र या फिर स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट नहीं होंगे या उनके पास एक से अधिक दस्तावेज होंगे। कई दस्तावेज ऐसे हो सकते हैं जिसमें अलग-अलग जन्मतिथि लिखी हुई है । इसमें कोई इरादा गलत नहीं है लेकिन मां-बाप के पास कोई सही तारीख नहीं होने के कारण तारीखें अलग अलग हो जातीं हैं।
सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2017 में पैदा हुए बच्चों में से 84.9% बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र बना। जबकि 2008 में यह अनुपात 76.4 प्रतिशत से अधिक था। सन 2000 में यह अनुपात 56.2% था। इसका अर्थ हुआ इस वर्ष जन्मे बच्चों में से लगभग आधे या उससे कुछ ज्यादा बच्चों का जन्म पंजीकरण नहीं हो सका। ऐसे बच्चे सरकार के रिकॉर्ड में कहीं नहीं हैं और उनके कल्याण के लिए सरकार कुछ नहीं कर सकती है। बात यहीं तक हो तो गनीमत है हमारे देश में 9 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश है ऐसे हैं जिनमें जन्म के पंजीकरण की दर राष्ट्रीय दर से कम है। इनमें से चार बड़े राज्य हैं उत्तर प्रदेश 61.5 % ,बिहार 73.7% ,मध्य प्रदेश 74.6% और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर 78.8 प्रतिशत है । 2017 में सीआर एस की रिपोर्ट में केवल 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्रों के बारे में जानकारी है। जिन राज्यों में इसके बारे में जानकारी नहीं दी उन्होंने इसके पीछे कर्मचारियों की कमी ,सॉफ्टवेयर और नेटवर्क की समस्याएं जैसी बात है बनाई हैं।
किसी भी आंदोलन का सबसे पहला शिकार या सबसे पहला निशाना गरीब और कमजोर तबके के लोग ही होते हैं । क्योंकि उन्हें उनके अस्तित्व के संघर्ष के नाम पर निहित स्वार्थी नेताओं द्वारा आंदोलनों में झोंक दिया जाता है। लेकिन विडंबना है कि भारत में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 5 साल से कम उम्र के सभी बच्चों में से 77% का जन्म पंजीकरण हुआ है बाकी 23% बच्चे अदृश्य हैं। यह अदृश्य बच्चे कहां के हैं, कैसे हैं कहां रहते हैं और उनकी आजीविका क्या है या फिर भविष्य में उनकी आजीविका का कैसे बंदोबस्त हो इस बारे में सरकार को अंधेरे में रखा गया है। यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी हालत अच्छी नहीं है एन एफ एच एस -4 के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में हालत और खराब है। इन क्षेत्रों में 56.4% ही पंजीकरण हुआ है। परिवार की संपत्ति के मुताबिक भी इस आंकड़े में बड़ा अंतर है। यानी सबसे धनी समूह के 5 साल में से कम उम्र के 82.3% बच्चों के जन्म का रजिस्ट्रेशन हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था जबकि सबसे गरीब समूह में यह आंकड़ा केवल 40.7% का था। इसके अलावा सबसे गरीब वर्ग से संबंधित प्रत्येक चौथे बच्चे यानी 23% के जन्म का पंजीकरण होने के बावजूद उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था। अब ऐसे में योजनाओं का क्या स्वरूप होगा और खास करके कल्याणकारी योजनाओं का क्या हाल होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । सरकार अंतिम व्यक्ति तक मदद नहीं पहुंचा पाती या कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं होता तो इसका क्या हश्र होगा आसानी से समझा जा सकता है। सरकार के खिलाफ विपक्ष अगर इसका उपयोग करता है तो बहुत गलत नहीं होगा।
Wednesday, January 15, 2020
8 करोड़ अदृश्य बच्चे! ओ माय गॉड!!
8 करोड़ अदृश्य बच्चे! ओ माय गॉड!!
Posted by pandeyhariram at 6:01 PM
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