CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, January 8, 2020

कहां गए वह गुमशुदा बच्चे

कहां गए वह गुमशुदा बच्चे 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी ने 2016 में जब पहली बार गुमशुदा बच्चों के आंकड़े जारी किए थे। उन आंकड़ों के अनुसार 1,11,559 बच्चे हमारे देश में गायब थे जिनमें सबसे ज्यादा संख्या पश्चिम बंगाल की थी। पश्चिम बंगाल से 16,881 बच्चे गुम  हुए थे। कुल गुम हुए बच्चों में से केवल 55,944 बच्चे ही तलाश किये जा सके। 2019 में प्रकाशित 2017 के आंकड़े बताते हैं की आलोच्य वर्ष में 65,349 बच्चे गायब हुए और इनमें से 59.2% को खोजा जा सका, बाकी कहां गए? यह एक अजीब गड़बड़ी है और इसकी जांच आवश्यक है। इसमें स्पष्टता जरूरी है। अभी जो तलाश का तरीका है वह बहुत पुराना है और इसके लिए की जाने वाली पहल बहुत मामूली है। सपनों का शहर मुंबई भी बच्चों के गायब होने का मुख्य कारण है। यहां शहर के चारों तरफ जो आश्रय गृह हैं वहां बच्चे शरण प्राप्त करते हैं। इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने  एक वाकया था कि कश्मीर में माताएं पूछ रही हैं कि क्या चुनाव के बाद हमारे बच्चे जो गायब हो चुके हैं मिल जाएंगे?
       गुमशुदा बच्चों की तलाश के जो तरीके हैं वह पर्याप्त नहीं है और उसकी तकनीक बहुत ही लचर है । इन बच्चों की तलाश और फिर उन्हें पुनर्वासित करने का काम बुनियादी तौर पर उन लोगों का है जो इसके लिए प्रशिक्षित और नियुक्त किए गए हैं। यह बुनियादी स्तर पर परिवार का काम नहीं है। यह बच्चे अगर खोज भी लिए जाते हैं तो आश्रय गृहों में पड़े रहते हैं। बीमार पड़ जाते हैं। धीरे धीरे उनका घर और उनका परिवार उनके दिमाग से निकल जाता है।  इसके बाद  ख़ुद परिवार भी उन्हें तलाश नहीं पाता क्योंकि उनकी पहचान धूमिल पड़ चुकी होती है।
अब सवाल उठता है कि  गुम हो गए इन बच्चों का क्या होता है? जब कोई बच्चा कहीं फंस जाता है यL गया है की गुम होने के बाद जिन बच्चों को खोज लिया गया उन्हें खोजे जाने के 24 घंटे के भीतर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाए। यद्यपि ऐसा अक्सर होता है लेकिन बच्चे को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किए जाएं। संस्था यह तय करती है कि बच्चों को कैसे और कहां रखा जाए।
       यह बच्चे देश के अलग-अलग भागों के होते हैं और अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं। लेकिन उन्हें उनकी भाषा के राज्यों में बने आश्रय गृहों में रखने का कोई प्रयास नहीं किया जाता । जब  समझदार होते हैं तब तक अपनी भाषा भूल जाते हैं और यह भी भूल जाते हैं कि कहां के रहने वाले हैं । अगर कोई इन बच्चों को ही पता भी है तो उन्हें मालूम नहीं  कहां के रहने वाले हैं, उनके मां बाप कौन हैं या उनका पता क्या है?   फिर उन्हें बाल कल्याण समिति के पास भेज दिया जाता है और फिर वही चक्र शुरू हो जाता है। बाल कल्याण समिति के प्रोबेशन ऑफिसर इन बच्चों से बातचीत करते हैं। बातचीत बिल्कुल औपचारिक होती है । बस उनका राशन तय हो जाता है और उनकी मामूली जरूरतों के लिए इंतजाम हो जाता है और बच्चे उसी आश्रय गृह में पड़े पड़े बड़े होते हैं। उनके विकास के साथ ही उनके मां-बाप की तलाश की पूरी कोशिश ताक पर रख दी जाती है। ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं तो उन्हें अपने खेलकूद की धुंधली सी याद तो होती है पर स्कूल भूल जाते हैं, अपने मां-बाप या पड़ोसी का नाम भूल जाते हैं।
           यह एक ऐसा वक्त है जब इन बच्चों को सही जगह पहुंचाने का तंत्र विकसित किया जाना जरूरी है। क्योंकि सोशल मीडिया से तरह-तरह के समाचार जिसमें कई अत्यंत भ्रामक भी होते हैं इन बच्चों को बुरी तरह बरगला देते हैं। बच्चे आगे चलकर विभिन्न तरह के अपराधों में लिप्त हो जाते हैं। बचपन से प्रेम नहीं देखा, दोस्ती नहीं देखी ना उसकी तड़प जो भीतर में होती है। इसलिए यह बर्बर अपराधी बन जाते हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है जिस देश में लगभग 30000 बच्चे हर वर्ष लापता हो जाते हैं और वह कहां गए इस बात की कोई जानकारी किसी के पास नहीं है तो इन बच्चों की जवान होने तक कितनी बड़ी संख्या में ऐसे बर्बर अपराधियों की जमात खड़ी हो जाएगी जिसे नियंत्रित करना  मुश्किल होगा । आज के गुमशुदा बच्चे कल कुछ भी हो सकते हैं । इन बच्चों को खोजने और खोज की व्यवस्था को अपडेट करने के लिए उनके बारे में जानकारियां दर्ज करने के कई साधन हैं हमें देखना होगा कि उन जानकारियों में कहां चूक हो रही है। हमें अगर अपने देश को बचाना है और एक सभ्य समाज की रचना करनी है तो इन बच्चों की तलाश कर इन्हें पुनर्वासित करना होगा वरना एक बहुत ही अनिश्चित भविष्य हमारे सामने खड़ा होगा।


0 comments: