नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशभर में तरह-तरह के मत विमत फैले हुए हैं। भारी बवाल मचा हुआ है। हजारों लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। लेकिन दुखद यह है कि हमारे देश में जो लोग भी इस तरह के प्रदर्शन या बवाल करते हैं उनमें से अधिकांश को मालूम नहीं कि यह है क्या? इसका असर देश की जनता पर कैसा पड़ेगा और क्यों पड़ेगा? लोग बस एकजुट होकर इसका विरोध कर रहे हैं। पहली बात कि सी ए ए को हमारे देश में जनता की डेमोग्राफिक स्थिति तैयार करने के लिए बनाया गया एक कानून है। छोटी सी बात है कि ,हमारा देश संविधान के अनुसार एक कल्याणकारी राज्य है, वेलफेयर स्टेट है। ऐसे में देश की जनता के कल्याण का जिम्मा हर वक्त सरकार पर होता है। लेकिन हमारी सरकार चाहे वर्तमान हो चाहे इसके पहले वाली हो उसे यह नहीं मालूम कि हमारे देश की जनता क्या स्टेटस है ? कैसे लोग हैं? शिक्षा की क्या स्थिति है ?रोजगार कितना है और कितने लोगों को चाहिए ? जिन को रोजगार नहीं मिला है उन्हें जीविका का साधन क्या मुहैया कराया जाए वगैरह। इस कानून के खिलाफ अचानक कुछ निहित स्वार्थी राजनीतिक दल सड़क पर आ गए। उन्हें अपनी राजनीति की रोटी सेकनी है इसलिए वे इसका न केवल विरोध करने लगे बल्कि लोगों में यह भावना भर दी कि इस से उनको भारी हानि होगी। देश में जो संप्रदाय सदियों से रहते आ रहे थे और जिनमें काफी मिल्लत थी उन्हें भी आपस में बांट दिया। जरा सोचिए कि किसी परिवार के मुखिया को यह नहीं मालूम है कि हमारे परिवार की जरूरतें क्या हैं तो वह कैसे उन्हें खुश रखेगा। कैसे उनकी जरूरतों को पूरा कर पाएगा ? नतीजतन असंतोष बना रहेगा । भाजपा इसी उद्देश्य के लिए आज से घर-घर जाकर लोगों को बताएगी कि आखिर क्या है सी ए ए इससे क्या लाभ और क्या हानि है? भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने घर-घर जाकर लोगों को यह बताने का जिम्मा उठाया है। उनके साथ पार्टी के और लोग रहेंगे । भारतीय नागरिकता कानून के आने के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा जन जागरण अभियान है। इस अभियान के तहत एक ही दिन में देश के 42 स्थानों में पार्टी के 42 बड़े नेता मौजूद रहेंगे और घर घर जा जाकर लोगों को बताएंगे कि इसका सच क्या है। 10 दिन के इस अभियान में देश के तीन करोड़ लोगों को इसके बारे में जानकारी दे दी जाएगी।
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर मचे बवाल के बीच अमित शाह ने विपक्ष पर जमकर हमला किया। उनका कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा जनता को गुमराह कर रहे हैं। इन लोगों ने दंगे करवाने का काम किया है। गौर करें कि पिछले 70 वर्षों से हम एक सवाल से जूझ रहे हैं वह कि हमारे देश को नियम बनाने वाला बनना होगा या नियम पालन करने वाला। अब तक हमारी स्थिति नियम पालन करने वाले की है। वरना ऐसा क्या था की असम से तीन बार लोकसभा पहुंचे एम के सुब्बा क्या चुनाव लड़ पाते। जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने उनके दस्तावेजों की जांच की तो पता चला सारे दस्तावेज फर्जी हैं। एक देश जो नागरिकता कानून का इतना गंभीर विरोध कर रहा है वह देश शायद यह नहीं समझ पा रहा है कि यह नागरिकता कानून से एमके सुब्बा जैसे लोग नियम बनाने वालों जमात से अलग हो जाएंगे । नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर सबसे बड़ा दुष्प्रचार तो यह किया जा रहा है इससे मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। इसे लेकर हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुस्लिम समुदाय को लगता है ऐसा सचमुच हो जाएगा। यह स्वतःस्फूर्त पनपा हुआ गुस्सा नहीं है। क्यों फिर लोगों को यह नहीं बताया जा रहा है नागरिकता का यह कानून अल्पसंख्यकों को भारत से निकाल दे के बारे में नहीं है सरकार ने संसद में साफ कहा है कि किसी भी मुसलमान को यहां से निकाला नहीं जाएगा। इसके प्रावधानों से नागरिकों को अवगत कराने की जरूरत है और इसके लिए विस्तृत प्रचार प्रसार करना होगा। जैसा कि ऊपर भी कहा जा चुका है कि नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मुद्दों को लेकर राजनीतिक दलों और संगठनों के आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे लोगों में से अधिकांश को उन मुद्दों की जानकारी ही नहीं है। कहीं कुछ लोग कह रहे हैं इस सरकार ने मुसलमानों को वापस भेजने का कानून बनाया है तो कहीं आंदोलनकारी नौजवान यह कहते सुने जा रहे हैं कि लालू यादव को छुड़ाना है तो तानाशाही नहीं चलेगी। यह किस की तानाशाही यह उन्हें मालूम नहीं है। बेशक जो नई पंजी बन रही है जनता के लिए उसमें 2021 में होने वाली जनगणना कार्यक्रम के प्रारूप में कुछ फेरबदल किया जाए और हर नागरिक के लिए अलग से कुछ जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य हो जाए। इस समय यद्यपि 3 देशों से 31 दिसंबर 2014 तक आए हिंदू , सिख , बौद्ध, पारसी, ईसाइयों, जैन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करने संबंधी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जबरदस्त आंदोलन चल रहा है। लेकिन इसमें किसी भी भारतीय को देश से बाहर निकाले जाने की बात तो है ही नहीं। इसमें श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थी या फिर नेपाल से आने वाली हिंदुओं को भी भारत की नागरिकता देने का कोई प्रावधान नहीं है। असम में जो राष्ट्रीय नागरिक पंजी तैयार की गई उसका काम उच्चतम न्यायालय के निर्देश और उसकी ही देखरेख में संपन्न हुआ। लेकिन पंजी के प्रकाशन के साथ ही विवादों का पिटारा खुल गया। अलबत्ता लाखों लोग इस वजह से बाहर हो गए। इसकी वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन पहली नजर में ही लगता है की तैयार करने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी इसमें पारदर्शिता का अभाव था। नागरिकता के मसले की अपनी-अपनी तरह से व्याख्या करके राजनीतिक दल और कुछ संगठन कुछ समय के लिए समाज के एक वर्ग वर्ग या समुदाय को उद्वेलित और आंदोलित करने में सफल हो सकते हैं, लेकिन उन्हें ध्यान रखना होगा इसकी आड़ में हो रही हिंसा से जहां देश की संपत्ति को नुकसान पहुंच रहा है वहीं सरकार की ओर से की जाने वाली कार्रवाई के शिकार कोई नेता नहीं बल्कि आम आदमी हो रहा है। इसलिए जरूरी है इस मामले में संयम बरता जाए। हिंसा ना हो और सरकारी संपत्ति को नुकसान ना पहुंचे इसके लिए ही भारतीय जनता पार्टी ने घर-घर जाकर लोगों को इस कानून की सच्चाई बताने की शुरुआत की है यह एक अच्छी शुरुआत है, बशर्ते इसके बावजूद लोगों को गुमराह कर राजनीतिक की रोटी ना सेकी जाए।
Monday, January 6, 2020
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