एक नए अध्ययन से पता चला है कि हवा में तैरते पार्टिकुलेट मैटर (बारीक कण) के कारण बढ़ते हुए प्रदूषण से भारत में औसतन 3.2 वर्ष उम्र कम हो गयी है। अध्ययन में बताया गया है की दिल्ली समेत कई शहरों में आम भारतीयों की उम्र घट रही और लगभग 66 करोड़ भारतीय यानी भारत की पूरी आबादी का आधा हिस्सा इससे प्रभावित है। हाल के अखबारों में तो यह भी लिखा गया था कि कोलकाता वासियों की उम्र 3.5 वर्ष तक घट गई है। अगर इनका हिसाब निकाला जाए तो हमारे देश में 2.1 अरब जीवन वर्ष कम हो गए। जिन लोगों की या बड़े शहरों में जिन इलाकों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है वहां प्रदूषण और ज्यादा है। वहां उम्र और ज्यादा घट रही है। शिकागो विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण की समस्या अमीरों द्वारा पैदा की गई है और सरकार इन पर कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती। क्योंकि इससे कारोबार प्रभावित होंगे और मध्यवर्गीय लोगों के लिए दिक्कतें पैदा होने लगेंगी। लेकिन जरा सोचिए अगर प्रदूषण कम होगा तो काम करने वाले लोग कम बीमार पड़ेंगे और इससे उनकी कार्य क्षमता बढ़ेगी। हवा में तैरते 2.5 माइक्रोन के पार्टिकुलेट मैटर फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं और फेफड़े की विभिन्न बीमारियों तथा सांस की दिक्कतें पैदा करते हैं। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक सर्दियों के समय कोलकाता में हर तीन में से एक बच्चा प्रदूषण के कारण बीमार पड़ता है और उसके इलाज पर खर्च होता है। अध्ययन में बताया गया है की 54.5% भारतीय बारीक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) के आगोश में रहते हैं। इस अध्ययन से पता चलता है की प्रदूषण केवल शहरों की समस्या नहीं है ग्रामीण इलाकों में भी इसका प्रकोप है और उसका कारण है गांव में उपयोग की जाने वाली जलावन तथा जैव इंधन। शहरी इलाकों में प्रदूषण का मुख्य कारण है परिवहन तथा उद्योग धंधे।
शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा हाल में जारी किए गए एक अध्ययन "एयर क्वालिटी इंडेक्स" के मुताबिक 1998 से 2016 के बीच भारतीय क्षेत्र में प्रदूषण 72% बढ़ गया है और इससे आगे भारतीयों का जीवन प्रभावित हो रहा है। भारत में गंगा के मैदानी इलाके में सबसे ज्यादा प्रदूषण है। इसमें बिहार ,चंडीगढ़, दिल्ली ,हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल आते हैं। विश्लेषकों का मत है कि 1998 में जो लोग भारत के गंगा के मैदानी इलाके से बाहर रहते थे उनके जीवन में 1.2 साल कम हो गए थे 2016 में यह बढ़कर 2.6 वर्ष हो गए। अगर भारत प्रदूषण को नियंत्रित करने में कामयाब होता है और प्रदूषण कम से कम एक चौथाई कम हो जाता है तो भारतीयों की औसत उम्र 1.3 साल बढ़ जाएगी। जो लोग गंगा के मैदानी इलाके में रहते हैं उनकी उम्र मोटे तौर पर 2 वर्ष बढ़ जाएगी।
अध्ययन में दिखाया गया है कि प्रदूषण मानव समाज के लिए चुनौती बन गया है खास करके हमारे देश भारत में। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक आज मनुष्य ऐसे हालात में ऐसे वायुमंडल में रहने के लिए विवश है, जहां वायु की गुणवत्ता बहुत ही खराब है, कम से कम मानकों के नीचे है। भारत में स्थिति यह है कि 2016 में हमारे देश में लगभग एक लाख 10 हजार बच्चे प्रदूषण के कारण मौत की गोद में सो गए। इससे भी अधिक विचारणीय है कि विषय है कि अब से कुछ साल पहले तक बीजिंग दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था लेकिन अब वह नहीं है। अब भारत के एक नहीं 14 शहरों ने उसकी जगह ले ली है जिसमें सर्दियों में दिल्ली और कोलकाता की हालत सबसे ज्यादा खराब हो जाती है। प्रदूषित शहरों के मामले में सर्दियों में जिस दिल्ली की सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह छठे नंबर पर है ,एक नंबर पर कानपुर और उसके बाद क्रमशः फरीदाबाद वाराणसी गया पटना ,दिल्ली और लखनऊ है। यह सूची हमें चिंतित करती है। वहीं, दूसरी तरफ एक उम्मीद की किरण दिखाई देती है। अगर चीन इस पर नियंत्रण पा सकता था और पा सकता है तो हम क्यों नहीं। हमें देश हित में ठोस कदम उठाने चाहिए और इसके लिए केवल सरकार ही जिम्मेदार नहीं है। कई बार आम आदमी भी इस समस्या को बढ़ाने में योगदान करता है हम केवल समस्या को मानकर और सरकार पर दोष लगा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं। हमने कभी नहीं सोचा कि हमें भी इसका ख्याल रखना चाहिए आखिर वाहन व्यक्तिगत रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं तो क्यों नहीं हम उससे होने वाले प्रदूषण को रोकें। क्यों चौराहे पर खड़ा सिपाही जब आपकी गाड़ी की पॉल्युशन रिपोर्ट मांगता है तो हम उसे मुट्ठी में कुछ पैसे देते हैं? बेशक इससे तात्कालिक लाभ तो होता है । हमें तात्कालिक उपायों के साथ- साथ दीर्घकालिक उपायों पर भी जोर देना होगा। लेकिन गांव में समस्या तो है वहां लोगों को जागरूक बनाना होगा। अगर हम प्रदूषण को नहीं रोक सके तो हमारे देश खासकर हमारे शहर गैस चैंबर में बदल जाएंगे और हम उस गैस चेंबर में रहने के लिए मजबूर हो जाएंगे। पूरा शहर धीरे धीरे गैस चेंबर से भरे यातना गृह में बदलता जा रहा है। हमें उस यातना गृह में रहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
Thursday, January 30, 2020
हम यातना गृह में रहने के लिए बाध्य होने वाले हैं
हम यातना गृह में रहने के लिए बाध्य होने वाले हैं
Posted by pandeyhariram at 8:04 PM
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