CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Friday, January 10, 2020

अभाव के कारण भड़कते दंगे

अभाव के कारण भड़कते दंगे

ईमान फिर किसी का नंगा हुआ
सुना है फिर शहर में दंगा हुआ
हाल में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो  की रिपोर्ट में दंगों के बदलते कारणों के बारे में बताया गया है। कुल मामलों की संख्या घटी है खास करके सांप्रदायिक और राजनीतिक मसलों पर होने वाले दंगों की संख्या में गिरावट आई है दूसरी तरफ औद्योगिक और जल संबंधी कारणों से होने वाले दंगों की संख्या बढ़ी है। देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (सी ए ए) तथा  एनआरसी को लेकर विरोध जारी है। इसी के बीच सरकार द्वारा जारी अपराध के आंकड़ों में बताया गया है कि 2017 के मुकाबले 2018 में जो दंगे हुए हैं उनका मुख्य कारण आर्थिक था राजनीतिक नहीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2017 की तुलना में 2018 में जो दंगे फसाद हुए उनके पीछे औद्योगिक और जल संबंधी कारण थे ना कि 2017 की तरह सांप्रदायिक राजनीतिक, कृषि तथा छात्रों से संबंधित मामले थे। आंकड़े बताते हैं 2018 में इससे पहले वाले साल की तुलना में औद्योगिक विवाद ढाई गुना बढ़ा है लगभग इतना ही जल संबंधी कारणों से हिंसा की संख्या में वृद्धि हुई है । 2018 में सार्वजनिक शांति को भंग करने के  76, 851 मामले हुए जबकि 2017 में 78,051 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 90% मामले दंगे फसाद के थे और बाकी धारा 144 को भंग करने या कह सकते हैं गैर कानूनी ढंग से इकट्ठे होने इत्यादि के थे।
         यह आंकड़े आर्थिक मंदी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार हो रहे जल संकट के बीच आए हैं और इन आंकड़ों का विश्लेषण विभिन्न क्षेत्रों के सामाजिक आर्थिक  आंकड़ों के बरक्स ही किया जा सकता है। इन आंकड़ों को यदि सामाजिक -आर्थिक आंकड़ों के  त्रिपाश्व में देखें तो पता चलेगा जिन क्षेत्रों में ज्यादा आर्थिक तनाव रहे है उन क्षेत्रों में दंगे ज्यादा होते हैं । 2016 में भयंकर किसान आंदोलन हुए थे। उनकी पृष्ठभूमि में कृषि संकट था। एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक 2017 में औद्योगिक फसादों की संख्या 178 थी जबकि 2018 में यह बढ़कर 440 हो गई। जल संबंधी कारणों से होने वाली हिंसक घटनाएं 2017 में 432 जो 2018 में 838 हो गई। यदि इनकी तुलना अन्य कारणों से होने वाले दंगों या हिंसक घटनाओं से की जाए जैसे सांप्रदायिक छात्र आंदोलन राजनीति या किसान संबंधी कारणों से की जाए तो आंकड़े बताते हैं कि 2018 में 2017 के मुकाबले इन घटनाओं में एक चौथाई कमी आई है। सांप्रदायिक दंगे तो लगभग 30% कम हो गए जातीय विवाद लगभग 20% कम हो गए। जबकि किसान आंदोलनों में 35% की गिरावट हुई है यहां तक कि जमीन संबंधी झगड़ों के बाद होने वाली हिंसक घटनाओं में 2017 के मुकाबले 2018 में 4% की कमी हुई है।
        एक तरफ सांप्रदायिक दंगे कम हुए हैं दूसरी तरफ लोगों की भावनाओं को भड़काने तथा घृणा फैलाने के मामले बढ़े हैं। आंकड़े बताते हैं की विद्वेष फैलाने के मामलों में लगातार वृद्धि होती गयी है और 2016 से 2018 के बीच यह दुगनी हो गई। देशभर में पुलिस ने 2016 में ऐसे 478 मामलों को दर्ज किया जबकि 2017 में या बढ़कर 958 हो गया और 2018 में इसकी संख्या 1114 हो गई । उग्र समूहों द्वारा दंगे भड़काने के कई मामले भी इन आंकड़ों में दर्ज हुए हैं । ऐसा पहली बार हुआ है लेकिन आंकड़ों के चरित्र को देखकर लगता है कि इन्हें अनिच्छा से  दर्ज किया गया है या फिर राज्य क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने इनकी कोटि अलग बता दी है। उग्र समूह द्वारा इन दंगों की संख्या आलोच्य अवधि में केवल दो थी जोकि 2018 में बढ़कर 4 हो गई । यहां यह बताना जरूरी है कि एनसीआरबी के आंकड़े पुलिस की एफ आई आर पर आधारिक होते हैं और एफ आईआर अत्यंत घातक अपराधों के फलस्वरूप ही दर्ज की जाती है। मसलन अगर कोई उग्र समूह मारपीट करता है और उसने किसी की मौत हो जाती है तो उस घटना को हत्या की श्रेणी में दर्ज किया जाएगा ना कि दंगा माना जाएगा। दंगे से जुड़ा एक अन्य पहलू भी है वह है सार्वजनिक संपत्ति को बर्बाद करने से रोकथाम करने वाला कानून हाल में सीए ए और एनआरसी पर बहुत बातें हुई खास करके उत्तर प्रदेश में सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों से पैसे वसूलने के लिए नोटिस अभी भेजी है। 2017 में इस कानून के तहत 7910 मामले दर्ज किए जबकि 2018 में मामले में 7127 मामले ही दर्ज की जा सके।
          अगर राज्यवार आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि उत्तर प्रदेश में पहली बार दंगाइयों पर बल का प्रयोग नहीं हुआ है 2018 में उत्तर प्रदेश में दंगाइयों पर बल प्रयोग की 2388 घटनाएं हुई थी जबकि तमिलनाडु में 2230 और हरियाणा में 415 घटनाएं 2017 में भी उत्तर प्रदेश बहुत पीछे नहीं  था। 2017 में इस राज्य में 1933 बल प्रयोग की घटनाएं इस अवधि में हरियाणा में 2562 और तमिलनाडु में 1790 घटनाएं  हुई इन कारणों को देखते हुए यह स्पष्ट होता है की हमारे देश में जब-जब  आर्थिक अभाव बढ़ा है तब तब सरकार के खिलाफ जनता में गुस्सा भड़का है।


0 comments: