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Thursday, January 2, 2020

मौलिक नागरिकता! काश ऐसा होता!!!

मौलिक नागरिकता! काश ऐसा होता!!! 

2014 में जब नरेंद्र मोदी ने एक नारा दिया था "मैक्सिमम गवर्नेंस मिनिमम गवर्नमेंट" तो मतदाता मुग्ध हो गए थे । क्योंकि सारे मतदाता याकहें कि मतदाताओं का भी बहुत बड़ा भाग यह सोचता है कि सरकार हमारी जिंदगी में बहुत ज्यादा दखलंदाजी करती है और हमें प्राप्त बहुत कम होता है।  कम सरकार और अधिकाधिक शासन के बीच एक अंतर्विरोध है। अंतर्विरोध को कौन कम कर सकता है लोग उस तरफ देखते हैं, जिसे सरकार प्रभावशाली ढंग से सुलझा सकती है। यह सोचने योग्य तथ्य है कि फिलहाल नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता रजिस्टर को इस विचार के चश्मे से देखें। जो लोग आंकड़ों को जमा करते और उनका विश्लेषण करते हुए जवान से बूढ़े हो गए वे जानते हैं की यह कितना कठिन काम है कि कोई आदमी पूरी तरह सही बात कह दे जो उसके मन में है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने हाल में अपने एक लेख में लिखा कि "उन्होंने पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना 20 महिलाओं से यह पूछा कि उनका जन्म कहां हुआ किसी ने नहीं बताया कि उसी गांव में हुआ है। किसी ने कहा कि फलां जगह हुआ है तो उस जगह हुआ है ,वह यहां से घंटा -2 घंटे की दूरी पर है और  अनिश्चित दिशा में हाथ उठाकर उन्होंने उस जगह की ओर इशारा किया। आखिर मिला क्या कुछ भी सही नहीं।" उसी तरह इस शहर कोलकाता में या अन्य बड़े शहरों में बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्हें इतना तो मालूम है कि उनका जन्म इसी शहर में हुआ है लेकिन उनके माता पिता या दादा का जन्म कहां हुआ है और अगर मालूम भी है तो कोई  निश्चित नहीं है कि वह जगह कहां है। अगर वे अपनी नागरिकता नहीं बता सकते हैं तो दोषी हैं और विदेशी हैं।  उन्हें किसी भी राज्य का नागरिक होने का अधिकार नहीं है, या फिर कुछ अफसरों की दया पर उनका पूरा का पूरा भविष्य निर्भर करता है। वह अफसर यह तय करेंगे की उन्हें किस दर्जे में रखा जाए । यह बड़ा जोखिम भरा काम है। यह "कम से कम सरकार और ज्यादा से ज्यादा शासन का उदाहरण नहीं है। यह अफसरशाही को बढ़ावा देता है और जिंदगी के बुनियादी हक में अफसरशाही को दखल देने का मौका देता है।" अगर आप उस देश के नहीं हैं जहां आप पैदा हुए हैं और अपनी जिंदगी गुजारी है कुछ लोग यह नहीं जानना चाहेंगे कि आप कहां के हैं और किस देश के वासी हैं। आज बहुत से नौजवानों के साथ ऐसा ही हो रहा है। एक अजीब किस्म की अपमानित और एक बेगान ए पन के बीच वे जी रहे हैं।
              लेकिन तभी कुछ ऐसा है जिस पर सरकार को सोचना चाहिए। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है कि पूरी प्रक्रिया यह इशारा करती है की प्रवासी एक समस्या हैं। । यहां तक कहा जा रहा है कि सभी प्रवासी चाहे वह जिस धर्म के भी क्यों ना हो एक समस्या हैं। यही कारण है की सी ए ए वहां एक अभिशाप है और एनआरसी इसीलिए  अलोकप्रिय है। इससे पर्याप्त विदेशियों की पड़ताल नहीं हो सकती।  अभिजीत बनर्जी ने अपनी हाल की पुस्तक गुड इकोनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम्स में लिखा है कि " किसी भी कुशन या न्यूनतम कुशल व्यक्ति केअर्ध कुशल के लिए कोई अर्थव्यवस्था नहीं है। सभी सबूत यह बताते हैं की न्यूनतम कुशल व्यक्ति की बड़ी संख्या किसी भी अर्थव्यवस्था पर प्रभावशाली नहीं है। यही कारण है कि रोजगार की तलाश में आए लोग अवसर की ताक में रहते हैं और छोटी-छोटी नौकरियों में छोटे-छोटे रोजगार में लग जाते हैं।
        मध्यवर्गीय समाज के लिए वास्तविक समस्या यही है। चिंता का कारण यह है कि बाहर से आए लोग इन छोटी-छोटी नौकरियों को हासिल कर लेते हैं या कहें आय के इन   छोटे-छोटे साधनों खासकर  सरकारी नौकरियों को हथिया लेते हैं जिस पर आज तक उनका अधिकार था। लेकिन यह हमारे अच्छे शासन की पहचान नहीं है। छोटी-छोटी नौकरियों के लिए घमासान होता रहता है। 2019 के आंकड़े बताते हैं इस वर्ष रेलवे के 63,000 छोटे पदों  के लिए 19 लाख लोगों ने आवेदन किया था। यह स्थिति बताती है कहीं ना कहीं बहुत बड़ी गलती या बहुत बड़ा धोखा हमारे साथ हो रहा है। इसके साथ ही जो बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न  है कि स्थानीय आबादी के लिए आर्थिक न्याय क्या है? अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। तो निकट भविष्य में यह प्रश्न उठने वाला है। सवाल होगा की बंगाली हिंदू परिवार के तमिल भाषी लोगों को वहां राज्य सरकार में नौकरी मिलेगी  या फिर बिहार के  मराठी भाषी युवकों को महाराष्ट्र में सरकारी नौकरी दी जाएगी? इस बात की क्या चिंता करते हैं कि निजी क्षेत्र में अच्छी नौकरी क्या है? सबसे महत्वपूर्ण है इस बात का उत्तर मिलना कि  ऐसी सूरत में सरकार की भूमिका क्या होगी? क्या मुंबई शहर केवल मुंबईकरों के लिए है? अगर अनेकता का यह जिन्न जितनी जल्दी बोतल में बंद कर दिया जाए उतना ही अच्छा है।  ऐसी स्थिति में सबसे अच्छा तरीका है कि हम भारत माता के संतान -वफादार संतान बने रहें और वसुधैव कुटुंबकम के अपने वैदिक नारे का अनुपालन करते रहें। हम भारत के मौलिक नागरिक बने। हमारे देश की आबादी 1.3 अरब है और अभी जो कुछ हो रहा है उसमें कुछ लाख अचानक गायब हो जाएंगे जाएंगे और वस्तुतः हम दुनिया के ध्रुव तारा बन जाएंगे क्योंकि इसी मार्ग का हो सकता है अन्य देश भी अनुसरण करें।
        


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