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Tuesday, January 14, 2020

महंगाई के बेहद बुरे दिन

महंगाई के बेहद बुरे दिन 

सी ए ए और एनआरसी की सुलगती आंच के बीच सहसा खबर आई कि महंगाई की दर 7. 35% बढ़ गई। यह विगत 5 वर्षों में सबसे ज्यादा थी। हालांकि रिजर्व बैंक का अनुमान था कि महंगाई की दर 4% बढ़ेगी पर प्याज की आसमान छूती कीमतों से दिसंबर 2019 में खुदरा महंगाई की दर साढे 5 साल के उच्चतम  पर पहुंची। जबकि खाद्य पदार्थों की खुदरा महंगाई की दर 6 साल में सबसे ज्यादा उच्चतम स्तर पर 14.12% रही। कुल महंगाई की दर लगभग पांचवे महीने बढ़ी है। खाद्य खुदरा महंगाई की दर लगातार दसवें महीने बढ़ी। जबकि फरवरी 2019 में यह ऋणात्मक  थी। रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को 4% के दायरे में रखने का लक्ष्य किया था। अब बैंक के लक्ष्य से कहीं अधिक बढ़ गई महंगाई। मोदी सरकार के कार्यकाल में पहली बार खाने पीने की चीजों के दाम इतनी ज्यादा बढ़े हैं। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2019 में सब्जियों की महंगाई की दर 60.50% पर रही। इसका मतलब है कि दिसंबर 2018 की तुलना में पहले महीने सब्जियों के दाम  60.50% बढ़े। दालों एवं उससे बने उत्पादों की महंगाई दर 15. 44% रही। यह लगातार दूसरा महीना है जब खाद्य पदार्थों की महंगाई दर दहाई अंक में रही। नवंबर 2019 में खाद्य खुदरा महंगाई दर 10.01 प्रतिशत थी 1 साल पहले दिसंबर 2018 में 2. 65% ऋणात्मक रही।
           कई साल पहले एक फिल्मी गीत बड़ा मशहूर हुआ था। "महंगाई डायन खाए जात है" यानी घर की जरूरी चीजों को महंगाई के कारण खरीदा जाना बंद हो गया है। डायन हमारे धर्म में एक मुहावरा है जिसका सीधा अर्थ होता है शांतिप्रिय लोगों के घर की सुख शांति छीनने वाली। यह डायन खुद कुछ नहीं करती जो कुछ भी करती है अपने मालिक के आदेश से करती है। इसलिए केवल महंगाई को कोसने से काम नहीं चलेगा। महंगाई के माध्यम से जनता का शोषण होता है और जब तक उस शोषण करने वाले तंत्र पर वार नहीं किया जाता तब तक यह कम नहीं  होगी। महंगाई का प्रभाव पूरे समाज पर समान रूप से पड़ता है ,यह सत्य नहीं है। समाज में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जिनकी  आय का स्रोत मजदूरी है। चाहे वह मजदूरी शारीरिक हो या मानसिक। दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनकी आय का स्रोत संपत्ति होती है। यानी ये लोग अपनी दौलत से दौलत कमाते हैं। समाज में भी जो पहले तरह के लोग हैं उनकी भी दो किस्में होती हैं।  एक असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले लोग और दूसरी सरकारी कर्मचारी जैसे लोग , जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। पहले किस्म के लोगों की आय पूरी तरह जड़ता से जुड़ी होती है और जो सरकारी कर्मचारी है उनकी थोड़ी बहुत आय बढ़ जाती है। महंगाई सदा संपत्ति धारी वर्ग के पक्ष में होती है। क्योंकि ,महंगाई के दौर में संपत्ति की कीमतें बढ़ती जाती हैं फलस्वरूप उनका लाभ बढ़ता जाता है। अगर महंगाई थोड़ी कम हुई तो सबसे ज्यादा हाय तौबा मचाने वाले यही लोग होते हैं।
        अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार महंगाई बढ़ने से आर्थिक विकास  रुकेगा और आर्थिक मंदी आएगी। इसका सबसे ज्यादा असर रोजगार पर पड़ेगा। अर्थव्यवस्था में सुस्ती से चालू वित्त वर्ष में नौकरियों के अवसर पिछले वर्ष के मुकाबले कम हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्त वर्ष में 16 लाख से कम नौकरियों के सृजन का अनुमान है। पिछले वित्त वर्ष में यानी 2018 -19 में 89.7 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए थे।  रिपोर्ट के अनुसार असम ,बिहार ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में मजदूरी के लिए बाहर गए व्यक्तियों की ओर से घर भेजे जाने वाले धन में कमी हुई है यानी एक तरफ महंगाई बढ़ी है और दूसरी तरफ छटनी के कारण ठेका श्रमिकों की संख्या कम हुई है। बंगाल ,पंजाब ,गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रोजगार के लिए आए मजदूरों द्वारा अपने घर पैसा भेजा जाता है । जो वहां की अर्थव्यवस्था को संभाले रखता है। खासकर कृषि अर्थव्यवस्था को।  ईपीएफओ के आंकड़ों के अनुसार 2018 -19 में 89.7 लाख नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए थे। चालू वित्त वर्ष में यह घटकर उसके 15.8% हो जाने का अनुमान है। अब हमारे अर्थशास्त्री कहते हैं इस मंदी का कारण लोगों की क्रय शक्ति का बढ़ना  है । लेकिन हैरत होती है कि  यह क्रय शक्ति बढ़ती कैसे है? रोजगार है नहीं ,महंगाई के कारण खरीदने की ताकत कम हो गई और लोग खरीद नहीं पाते हैं । इसलिए महंगाई बढ़ने के पीछे आम लोगों की क्रय शक्ति का बढ़ना एक तरह से दूर की कौड़ी खोज कर लाना है। आम आदमी के खाने की थाली में पोषक तत्व धीरे-धीरे गायब हो गए। फलतः बीमारियां बढ़ी और इलाज में पैसा जाने लगा। आहिस्ता आहिस्ता लोगों की खरीदने की ताकत कम  हो जाती है और आर्थिक मंदी बढ़ने लग जाती है।
      दूसरी तरफ हमारे देशी खाद्यान्न धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं और उसकी जगह ज्यादा उत्पादन वाले चुनिंदा खाद्यान्न की उपज बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसका नतीजा यह होता है कि कृषि महंगी पड़ने लगती है और इसके कारण किसान धीरे-धीरे मजदूर बन् जाता  है । खेती छूट जाती है और अनाज घट जाता है । लिहाजा खाने की थाली में अन्न नहीं होता। जिनके पास आय हैं वह तो गुजर कर लेते हैं लेकिन जिनके पास कुछ नहीं है सिवा कहने को थोड़े से खेत या फिर बिल्कुल कुछ नहीं वह लोग महंगाई का शिकार बन जाते हैं। महंगाई धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और इससे बढ़ने लगती है समाज में अव्यवस्था। अगर समाज को व्यवस्थित ढंग से चलाना है तो सबसे पहली चीज है के लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हों वरना सारी योजनाएं केवल कागजों पर ही रह जाएंगी।
       


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