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Tuesday, January 21, 2020

भारत की माली हालत को और खराब

भारत की माली हालत को और खराब 

  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)  ने वर्ष 2019 के लिए भारत के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 4.8% कर दिया है । यह अनुमान गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में दबाव के साथ ग्राम भारत में आमदनी के घटने का हवाला देते हुए कम किया है । आईएमएफ ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सदस्यों के सम्मेलन शुरू होने के पहले  आर्थिक व्यवस्था में क्या हालात चल रहे हैं उसकी जानकारी दी

आईएमएफ की शुरुआत 1971 में हुई थी इसका उद्देश्य दुनिया की स्थिति में सुधार करना है। इसका आयोजन हर वर्ष दावोस में होता  है । इस साल दुनिया भर के शीर्ष उद्योगपति, राजनेता और नामी-गिरामी लोग इस फोरम की सालाना बैठक में शामिल होने के लिए दावोस में  भारत की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं।
आईएमएफ का मानना है कि गत वर्ष भारत की आर्थिक वृद्धि की दर 4.8%, 2020 में 5.8% और 2021 में 6.5% रहने का अनुमान है। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ के मुताबिक भारत में मोटे तौर पर गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में कमी और ग्रामीण क्षेत्रों की आय में बहुत मामूली वृद्धि के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाया गया है वहीं दूसरी ओर चीन की आर्थिक वृद्धि दर साल 2020 में 0.2 प्रतिशत बढ़कर 6% होने का अनुमान है । उसने कहा है कि भारत में घरेलू मांग उम्मीद के विपरीत कम हुई है। गीता नाथ  का  मानना है कि 2020 में वैश्विक वृद्धि में तेजी अभी सुनिश्चित नहीं है।
     विश्व आर्थिक मंच डब्ल्यू ई एफ की सलाना शिखर सम्मेलन की उद्घाटन के पूर्व आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना जॉर्जीवा के अनुसार नीति निर्माताओं को बस यही सुझाव है कि वे वह सब करते रहें जो परिणाम दे सकें, जिसे व्यवहार में लाया जा सके । उन्होंने आगाह किया आर्थिक वृद्धि में फिर से नरमी आती है तो हर किसी को समन्वित तरीके से तत्काल कदम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए।  आईएमएफ  के अनुसार हम अभी बदलाव बिंदु पर नहीं पहुंचे हैं। यही वजह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए वृद्धि परिदृश्य को मामूली कम किया जा रहा है। व्यापार प्रणाली में सुधार के बुनियादी मुद्दे अभी भी कायम हैं और पश्चिमी एशिया में कुछ घटनाक्रम ऐसे भी हुए हैं जिनसे यह प्रभावित हों, उदाहरण स्वरूप अमेरिका चीन के आर्थिक संबंधों को लेकर कई तरह के मसले बने हुए हैं और इन मसलों का अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। इसके अलावा घरेलू वित्तीय नियामकीय प्रणाली को भी मजबूत करने आवश्यकता है।
       लेकिन हमारे देश की विडंबना है कि इस पर सरकार की प्रतिक्रिया बहुत गंभीर नहीं है। सरकार इसे बहुत हल्के में ले रही है। हो सकता है यह बहुत गंभीर बात नहीं हो लेकिन तब भी भारत जैसे मंदी से गुजर रहे देश को इसके प्रति सोचना जरूरी है। बेशक इस मंदी से लड़ने के लिए सरकार के पास कोई न कोई उपाय होगा ही लेकिन यह जरूरी नहीं है कि ऐसे उपाय हरदम कामयाब हो। अचानक असफलता बड़ी दुखदायी होती है। नोटबंदी इसका उदाहरण है ।
      1991 के अनुभव ने देश को बताया है कि उदारीकरण से ही व्यापार घाटे को पूरा किया जा सकट चारों तरफ छोलदारियान  खड़ी करके और निर्यात को बढ़ावा देकर हालांकि पिछले साल के आखिर में सरकार ने  में कहा था की भले ही भारत की अर्थव्यवस्था थोड़ी धीमी है लेकिन मंदी का खतरा नहीं है। साल गुजर गया और नया साल आ गया। ऐसे में यह देखना उचित होगा कि भारत के सामने जोल्प हमसे आर्थिक समस्याएं हैं शास्त्रों के अनुसार भारत का जैसा हाल है उससे सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ेगी भारत के लिए फिलहाल धीमी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती बेरोजगारी और बड़ा वित्तीय घाटा चिंता का विषय है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए यह वर्ष काफी चुनौती भरा है और इस का गहरा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है । अगर आईएमएफ के आंकड़ों को छोड़ भी दें तो भी भारत की अर्थव्यवस्था में चालू तिमाही में विकास दर साढे 4% तक गिर गई यह गिरावट बाजार की उम्मीदों के उलट है । भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 6 मार्च में सबसे निचले स्तर पर। यह  चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 दिसंबर को एसोचैम कॉन्फ्रेंस में कहा था इस सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने का काम किया है और 2025 तक देश को 5 खरब की मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने का टारगेट पूरा करने की स्थिति में है।  लेकिन सवाल है कि भारत यह टारगेट पूरा कर सकेगा। हफ्ते भर के बाद बजट आने वाला है और सबसे ज्यादा इस बजट पर निर्भर होगा इस व्यवस्था का स्वरूप कैसा होगा ।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)  ने वर्ष 2019 के लिए भारत के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 4.8% कर दिया है । यह अनुमान गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में दबाव के साथ ग्राम भारत में आमदनी के घटने का हवाला देते हुए कम किया है । आईएमएफ ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सदस्यों के सम्मेलन शुरू होने के पहले  आर्थिक व्यवस्था में क्या हालात चल रहे हैं उसकी जानकारी दी
आईएमएफ की शुरुआत 1971 में हुई थी इसका उद्देश्य दुनिया की स्थिति में सुधार करना है। इसका आयोजन हर वर्ष दावोस में होता  है । इस साल दुनिया भर के शीर्ष उद्योगपति, राजनेता और नामी-गिरामी लोग इस फोरम की सालाना बैठक में शामिल होने के लिए दावोस में  भारत की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं।
आईएमएफ का मानना है कि गत वर्ष भारत की आर्थिक वृद्धि की दर 4.8%, 2020 में 5.8% और 2021 में 6.5% रहने का अनुमान है। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ के मुताबिक भारत में मोटे तौर पर गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में कमी और ग्रामीण क्षेत्रों की आय में बहुत मामूली वृद्धि के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाया गया है वहीं दूसरी ओर चीन की आर्थिक वृद्धि दर साल 2020 में 0.2 प्रतिशत बढ़कर 6% होने का अनुमान है । उसने कहा है कि भारत में घरेलू मांग उम्मीद के विपरीत कम हुई है। गीता नाथ  का  मानना है कि 2020 में वैश्विक वृद्धि में तेजी अभी सुनिश्चित नहीं है।
     विश्व आर्थिक मंच डब्ल्यू ई एफ की सलाना शिखर सम्मेलन की उद्घाटन के पूर्व आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना जॉर्जीवा के अनुसार नीति निर्माताओं को बस यही सुझाव है कि वे वह सब करते रहें जो परिणाम दे सकें, जिसे व्यवहार में लाया जा सके । उन्होंने आगाह किया आर्थिक वृद्धि में फिर से नरमी आती है तो हर किसी को समन्वित तरीके से तत्काल कदम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए।  आईएमएफ  के अनुसार हम अभी बदलाव बिंदु पर नहीं पहुंचे हैं। यही वजह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए वृद्धि परिदृश्य को मामूली कम किया जा रहा है। व्यापार प्रणाली में सुधार के बुनियादी मुद्दे अभी भी कायम हैं और पश्चिमी एशिया में कुछ घटनाक्रम ऐसे भी हुए हैं जिनसे यह प्रभावित हों, उदाहरण स्वरूप अमेरिका चीन के आर्थिक संबंधों को लेकर कई तरह के मसले बने हुए हैं और इन मसलों का अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। इसके अलावा घरेलू वित्तीय नियामकीय प्रणाली को भी मजबूत करने आवश्यकता है।
       लेकिन हमारे देश की विडंबना है कि इस पर सरकार की प्रतिक्रिया बहुत गंभीर नहीं है। सरकार इसे बहुत हल्के में ले रही है। हो सकता है यह बहुत गंभीर बात नहीं हो लेकिन तब भी भारत जैसे मंदी से गुजर रहे देश को इसके प्रति सोचना जरूरी है। बेशक इस मंदी से लड़ने के लिए सरकार के पास कोई न कोई उपाय होगा ही लेकिन यह जरूरी नहीं है कि ऐसे उपाय हरदम कामयाब हो। अचानक असफलता बड़ी दुखदायी होती है। नोटबंदी इसका उदाहरण है ।
      1991 के अनुभव ने देश को बताया है कि उदारीकरण से ही व्यापार घाटे को पूरा किया जा सकट चारों तरफ छोलदारियान  खड़ी करके और निर्यात को बढ़ावा देकर हालांकि पिछले साल के आखिर में सरकार ने  में कहा था की भले ही भारत की अर्थव्यवस्था थोड़ी धीमी है लेकिन मंदी का खतरा नहीं है। साल गुजर गया और नया साल आ गया। ऐसे में यह देखना उचित होगा कि भारत के सामने जोल्प हमसे आर्थिक समस्याएं हैं शास्त्रों के अनुसार भारत का जैसा हाल है उससे सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ेगी भारत के लिए फिलहाल धीमी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती बेरोजगारी और बड़ा वित्तीय घाटा चिंता का विषय है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए यह वर्ष काफी चुनौती भरा है और इस का गहरा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है । अगर आईएमएफ के आंकड़ों को छोड़ भी दें तो भी भारत की अर्थव्यवस्था में चालू तिमाही में विकास दर साढे 4% तक गिर गई यह गिरावट बाजार की उम्मीदों के उलट है । भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 6 मार्च में सबसे निचले स्तर पर। यह  चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 दिसंबर को एसोचैम कॉन्फ्रेंस में कहा था इस सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने का काम किया है और 2025 तक देश को 5 खरब की मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने का टारगेट पूरा करने की स्थिति में है।  लेकिन सवाल है कि भारत यह टारगेट पूरा कर सकेगा। हफ्ते भर के बाद बजट आने वाला है और सबसे ज्यादा इस बजट पर निर्भर होगा इस व्यवस्था का स्वरूप कैसा होगा ।


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