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Thursday, January 23, 2020

हम क्या थे क्या हो गए क्या होंगे अभी

हम क्या थे क्या हो गए क्या होंगे अभी 

भारत एक वर्ष में लोकतांत्रिक सीढ़ियों पर 10 सीढ़ियां नीचे खिसक आया। विखयात पत्रिका "द इकोनॉमिस्ट" के सर्वे के मुताबिक 2019 में भारत 41वें स्थान पर था आज  वह 51वें स्थान पर पहुंच गया है। "द इकोनॉमिस्ट" हर वर्ष अपने रिसर्च विभाग की मदद से "डेमोक्रेसी इंडेक्स" जारी करता है। बुधवार को इस यूनिट ने 165 देशों के बारे में अपनी ताजा रिपोर्ट जारी की। जिसमें हमारा देश भारत 10 सीढ़ी नीचे खिसक आया है। 2019 में भारत 41 वें पायदान पर था आज वह 51 वें पायदान पर खड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के समग्र स्कोर में बड़ी गिरावट आई है। 0 से 10 के पैमाने पर भारत के स्कोर 2018 में 7.3 से गिरकर 2019 में 6.90 हो गया और इसकी प्राथमिक वजह देश में नागरिक स्वतंत्रता में कटौती करना है। इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग के गिरने और स्कोर के घटने का कारण भी बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत प्रशासित कश्मीर से 370 हटाए जाने, असम में एनआरसी का काम शुरू होने और फिर  नागरिकता कानून सीएए की वजह से नागरिकों में बड़े असंतोष के कारण भारत का स्कोर गिर गया है । लेकिन ऐसी बात नहीं है कि भारत राजनीतिक सहभागिता के मामले में पीछे है। भारत को अच्छे अंक प्राप्त हुए हैं जबकि राजनीतिक संस्कृति की वजह से उसके कई नंबर कट गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों के स्कोर का आकलन उन देशों की चुनाव प्रक्रिया ,नागरिक स्वतंत्रता और सरकार के कामकाज के आधार पर किया जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 लोकतंत्र के लिए सबसे खराब  रहा। वैश्विक गिरावट खासतौर से लैटिन अमेरिका, सब सहारा अफ्रीका और पश्चिम एशिया में देखी गई है। अधिकांश एशियाई देशों की रैंकिंग 2019 में गिरी है। इस रिपोर्ट में नार्वे सबसे ऊपर है । अमेरिका 25 वें ,जापान 24 वें, इसराइल 28 वें और ब्रिटेन 14वें पायदान पर है। भारत के पड़ोसी देशों में हालात और भी खराब हैं। चीन 153 वें पाकिस्तान 108वें, बांग्लादेश 80 , श्रीलंका 69 और नेपाल 92वें  स्थान पर है।
     क्या विडंबना है की एक तरफ जहां हम लोकतांत्रिक पायदान पर पिछड़ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे परंपराओं और वर्षों से चले आ रहे हैं रिवाज में बदलाव की कोशिशें भी शुरू हो गई  हैं। हर वर्ष 29 जनवरी को हमारे देश में बीटिंग रिट्रीट का आयोजन होता है। इस पर जो संगीत बजता है उसकी रचना हेनरी फ्रांसिस नाईट ने की थी और उसकी धुन बनाई थी विलियम हेनरी मोंक ने। टेनिसन के मुताबिक यह एक बेहतरीन कविता है। यह भयानक क्षणों में मानव संघर्ष को प्रतिबिंबित करती है। दिलचस्प बात यह है जिन भयानक क्षणों  का मुकाबला एक फौजी करता है उतना आम आदमी नहीं कर पाता। इसीलिए इस धुन को फौज के बीटिंग रिट्रीट में बजाया जाता है। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि औपनिवेशिक है।  अतः यह हमारे नवीन भारत को एक तरह से अपमानित करता है। इस धुन को या गीत को हटाया जाना एक मसला तो जरूर है लेकिन यह ईसाई मसला नहीं है। अगर किसी कारणवश ईसाई समुदाय इस क्रिया का विरोध करता है तो यह उसका पाखंड है। बेशक अभी तक उसे गाया जाता है लेकिन कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता की धुनों का कैसा मखौल  उड़ाया जाता है या फिर उस गीत की पंक्तियों से क्या सलूक किया जाता है। कोई इस पर नहीं ध्यान देता उस गीत का अर्थ क्या है ? कोई इसके संगीत आध्यात्मिक और भावनात्मक मूल्यों का अर्थ नहीं समझता सो यह ईसाइयत की समस्या नहीं है। लेकिन यह समस्या है जो हमारे सपनों के भारत से जुड़ा है। सपनों का भारत अभी निर्मित हो रहा है और इसकी प्रमुख पहचान है सार्वभौमिक मित्रता। यह निर्मित फूल है ,भारत का बुनियादी धर्म है। यह एक धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण नहीं यह एक बहुधर्मी समाज का निर्माण करता है। जिसमें वैमनस्यता द्वेष और घृणा का स्थान नहीं है। इसमें भयानक स्थितियों से संघर्ष का अनुमान है भारतीय संविधान की दृष्टि  द्वैत के प्रति स्वागत का भाव है। हेनरी एमरसन फासडिक ने कहा है  लोकतंत्र साधारण लोगों में असाधारण संभावनाओं का प्रतीक है।
       आज हमारी सरकार अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव का यदि कोई कदम उठाती है तो उस पर  राजनीति करने वाले लोग नई नई बातें उठाते हैं और उन कदमों को निरस्त करने की कोशिश में रहते हैं। विरोध का ही मतलब यह नहीं  है कि सकारात्मक परिवर्तनों का विरोध किया जाए। बिना सोचे समझे परिवर्तन करने वाले कारकों को दोषी बताया जाए।
     आज लोकतांत्रिक पायदान पर हमारी गिरावट कुछ इन्हीं कोशिशों की देन है। इस में सरकार की भूमिका कहीं नहीं है। सरकार का काम सुव्यवस्थित शासन चलाना है कानून और व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है ना कि कानून और व्यवस्था को बिगड़ते देख कर मौन खड़ा रहना है। भारत की इस गिरावट के लिए अगर कोई सरकार को जिम्मेदार ठहराते है तो यह सही नहीं है । हम किसी तरफ हों कोई भी कदम उठाएं तो यह जान लें कि हमारा  इशारा घातक भी हो सकता है। बीटिंग रिट्रीट के साथ भी यही बात होगी, लेकिन "जन गण मन अधिनायक जय हे" गाने वाले स्वतंत्रत चेता देश   अगर औपनिवेशिक धुन पर लेफ्ट राइट करती है तो यकीनन इसमें कुछ बुरा नहीं है। लेकिन हमारा इतिहास हमेशा हमें कोसता रहेगा कि हमने औपनिवेशिक शासन के निशानों को अपनी फौज में जीवित रखा है।


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