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Thursday, January 9, 2020

श्रमिक आंदोलन से उभरती आवाज

श्रमिक आंदोलन से उभरती आवाज 

बुधवार को जो भारत बंद था वह किसी सीएए और एनआरसी वगैरह के खिलाफ नहीं था। यह भारत बंद श्रमिकों के विरुद्ध सरकार की नीतियों के खिलाफ था। इस भारत बंद का आह्वान गत वर्ष सितंबर में ही किया गया था। इस हड़ताल का आह्वान 10 श्रमिक संगठनों ने किया था। देशभर में संगठित और असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों ने इसमें भाग लिया। उनकी मांग थी बेहतर वेतन, सामाजिक सुरक्षा, बेहतर कामकाज के हालात और श्रमिक हित वाले कानून।
      देश के कई भागों में इस हड़ताल से परिवहन सेवाएं बाधित हुईं, दुकानें बंद हुई और कई जगहों पर सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ हुई। बंगाल में कई जगह तोड़फोड़ की गई, बसों में आग लगाई गई। इस सिलसिले में  लगभग 90 लोगों को हिरासत में  लिया गया। प्रदर्शनकारी सड़कों के बीच में मोटर गाड़ियों का टायर जलाकर सड़कें रोक रहे थे। कूचबिहार ,पूर्वी बर्दवान इत्यादि जिलों में कई स्थानों पर तोड़फोड़ हुई। पूर्वी मेदनीपुर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों में भिड़ंत हुई । प्रदर्शन में शामिल लोगों ने सेंट्रल एवेन्यू में अवरोध हटाने की कोशिश की और पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ताकत का प्रयोग किया। लेक टाउन, दम दम क्षेत्र में वामपंथी समर्थकों और तृणमूल कार्यकर्ताओं में भिड़ंत हो गई। जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ के कई छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया। इस हड़ताल से हावड़ा ,सियालदह और खड़गपुर क्षेत्र में ट्रेनें प्रभावित हुईं और लगभग सियालदह और हावड़ा डिविजन की 175 लोकल ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। सूत्रों के अनुसार देशभर में लगभग 30 करोड़ लोगों ने इस हड़ताल में हिस्सा लिया।
      श्रमिक संगठनों की सबसे बड़ी शिकायत प्रस्तावित औद्योगिक संबंध संहिता है। सरकार ने कहा है कि इस संहिता से पुराने और जटिल श्रमिक कानून सरल हो जाएंगे और इससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा तथा रोजगार बनेंगे। लेकिन श्रमिक संगठनों में विधेयक को श्रमिक विरोधी कहा है।  इसमें श्रमिकों को नियोजित करने और उन्हें बर्खास्त करने की सरलता है। श्रमिक संगठनों का कहना है उन्हें सुरक्षा चाहिए। नियोजक से वेतन तथा अन्य बातों पर वार्ता की सुविधा चाहिए। औद्योगिक संबंध विधेयक वेतन से जुड़ा है। सबसे बड़ी बात है कि हमारे देश में श्रमिकों की रोजगार सुरक्षा नहीं है। रोजगार  घटता जा रहा है और इसका मुख्य कारण है कि कौशल विकास की योजना अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकी। इसके साथ ही जो कल्याणकारी कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं वह असंगठित क्षेत्र या गरीब ग्रामीण क्षेत्रों के रोजगार पर बहुत सीमित प्रभाव वाले हैं। सरकार के लिए श्रमिक और रोजगार नीतियां ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं। 7 जनवरी को जारी आंकड़े बताते हैं कि 2019 - 20 में आर्थिक विकास 5% होगा जो 2018 19 से 1.8% कम है। इससे रोजगार घटेंगे।  इससे कामकाजी जनसंख्या में से लगभग 68.20 लोग अलग हो जाएंगे। हड़ताली श्रमिक संगठनों ने ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा कृषि के लिए ज्यादा बजट की मांग की है। रोजगार का सृजन देश के विकास तथा श्रमिकों के कल्याण के लिए आवश्यक है। 2017- 18 से अब तक की अवधि से पूर्व के 7 वर्षों में लगभग 4 करोड़ लोगों को रोजगार मिले यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ। वर्तमान सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का सूत्रपात किया। इसका उद्देश्य था 2020 तक लगभग एक करोड़ नौजवानों को कुशलता प्रदान करना है। लेकिन ,कौशल विकास मंत्रालय केवल इसका आधा ही कर सका।  लोकसभा स्थाई समिति की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक जिन्हें कुशल बनाया गया। उनमें से एक चौथाई ही रोजगार पा सके।
         हमारे देश की दूसरी बड़ी समस्या है स्तरीय शिक्षा। कौशल योजना की नींव में ही दोष है। जिन नौजवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है वह स्कूली शिक्षा में कमजोर होते हैं। दूसरी बात है कि नौजवानों को इस कार्यक्रम के तहत 3 महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है जो कि बहुत अपर्याप्त है और नियोजक इन कथित कुशल नौजवानों के लिए ज्यादा पैसा नहीं दे सकते। सरकार अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रही है। इसके तहत लगभग 31 लाख श्रमिकों की सूची बनाई गई है और इन्हें प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के तहत  ₹15000 तक का पेंशन दिया जाएगा। यह योजना मार्च 2019 में आरंभ की गई। लेकिन इसका बहुत ही सीमित प्रभाव है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को जो कुछ दिया जा रहा है वह कानून के तहत दिया जाए। उसे स्वेच्छा से दिए जाने की व्यवस्था ना हो।
     बेशक बुधवार को जो आंदोलन हुआ उसका कोई रचनात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हां यह हो सकता है कि उसका राजनीतिक दुरुपयोग हो और इससे हालात और बिगड़ेंगे। सरकार के खिलाफ यह एक और हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और इससे कुछ नहीं होने वाला। श्रमिक संगठनों को एक तरह से सरकार के विरुद्ध औजार के रूप में यह राजनीतिक दल उपयोग में ला सकते हैं। श्रमिकों को अपने अभाव को दूर करने के लिए राजनीतिक दलों की हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए और इसकी सुरक्षा के लिए श्रमिक संगठनों को कोई बंदोबस्त करना होगा, वरना एक बड़ी अव्यवस्था का सृजन हो सकता है।
       


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