देश में तमाम तरह के आंदोलन चल रहे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक शाहीन बाग से कैसरबाग किसी न किसी कारण आंदोलित है। लेकिन जो सबसे मूल मुद्दा है वह है आम आदमी की जेब में थोड़े से पैसे और पेट में थोड़े से अनाज का a से होता अभाव। जो लोग आंदोलन कर रहे हैं शायद उनके पास खाने के लिए कुछ है लेकिन जो गुस्सा एक बड़ी आबादी के मन में सुलग रहा है वह गुस्सा धारा 370 ,सी ए ए ,एनआरसी, एनपीआर, टुकड़े टुकड़े गैंग और शाहीन बाग के नारों से अलग है। यह गुस्सा कब फटेगा यह तो मालूम नहीं लेकिन इसका असर पड़ना शुरू हो गया है। रोजगार खत्म हो रहे हैं बच्चों की पढ़ाई बंद होती जा रही है:
भूख चेहरे पर लिए चांद से प्यारे बच्चे
बेचते फिरते हैं गलियों में गुब्बारे बच्चे
एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारी भविष्य निधि आंकड़े बताते हैं की कम वेतन वाली नौकरियों में भी छटनी शुरू हो गई है। 2019-20 के ट्रेंड को देखते हुए कहा जा सकता है कि नौकरियों में भारी कमी आएगी। देश में आर्थिक विकास को लेकर लंबे समय से चिंता प्रगट की जा रही थी। सरकार ने इससे निकलने के लिए बीच-बीच में कई आर्थिक सुधार किए, कई घोषणाएं की ताकि लोगों की उम्मीद बनी रहे। फिर भी, हालात में कोई खास बदलाव नहीं है। ऐसे में नौकरियों में कटौती ,बढ़ती महंगाई और देश की आर्थिक वृद्धि दर में कमी इन तीनों मोर्चों पर निराशा मिलने का लोगों की आर्थिक स्थिति पर क्या असर होगा और आने वाले वक्त में इसके मायने क्या होंगे:
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल फरेब है गम रोजगार के
कुछ विशेषज्ञों का कहना है, फिलहाल लोगों के लिए मुश्किलें हैं लेकिन आने वाले दिनों में राहत होगी। सब्जियों की कीमतें गिरेगी क्योंकि बाज़ार में नई फसल आ जाएगी। लोगों पर बढ़ती सब्जियों की कीमतों का बोझ कम होगा। इससे थोड़ी राहत मिलेगी महंगाई की मार से। लेकिन जहां तक नौकरियों का सवाल है अगर नौकरियां कम हो जाएंगी तो अनुमान लगाया जा सकता है जिनके पास नौकरियां हैं उनकी वेतन वृद्धि भी घटेगी या वेतन में कटौती होगी और जो नौजवान नौकरी ढूंढ रहे हैं उनके लिए यह बड़ा दर्दनाक होगा:
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं कागज की नाव लिए
चारों तरफ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
आर्थिक वृद्धि को देखें तो उससे साफ जाहिर है मंदी चल रही है। बाजार में नकदी की कमी है जिसका असर लोगों के खर्च करने की क्षमता पर पड़ रहा है। आरबीआई हर दो महीने में होने वाली बैठक में ब्याज दर में कटौती करता है और फरवरी की बैठक हो सकता है ब्याज दर बढ़ा दे। लेकिन अगर ब्याज दर बढ़ाई जाती है तो उसका असर बड़ा खराब होगा। जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया हुआ है वह परेशानी में पड़ जाएंगे । इसलिए संभावना है ब्याज दर ना बढ़ाई है। लेकिन, सरकार के अपने खर्चे हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले 2 वर्षों से तीन बार आर्थिक सुधारों की घोषणा की लेकिन उससे कुछ नहीं हुआ। इसके पीछे कई कारण हैं। जैसे जीएसटी लागू हुआ उसका असर कई क्षेत्रों पर हुआ। लोगों को इसे समझने में समय लगा। तब तक इसकी भयंकर आलोचना होती रही और लोग उसे मंदी के लिए दोषी बताते रहे लेकिन जब बात समझ में आई तो लगा यह एक अच्छा कदम है। इससे आगे चलकर फायदा होगा। वैसे विपक्षी दलों को अपने फायदे के लिए या कहें राजनीतिक फायदे के लिए लोगों को गुमराह करना जरूरी है। लोग उनकी बातों में आ जाते हैं और फिर चाहे 370 विरोधी आंदोलन हो या आर्थिक मंदी के सब कुछ सरकार विरोधी नजर आने लगता है। सरकार का रुख देखकर यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में सुधार की कोशिशें शुरू होंगी। वैसे निजी क्षेत्र निवेश से कतरा रहा है सरकार को बुनियादी ढांचे जैसे कोयला स्टील बिजली में निवेश करना होगा ताकि नौकरियां पैदा की जाए । अगर सरकार दो से ढाई लाख करोड़ सड़क ,रेलवे या शहरी विकास में खर्च करती है इससे जुड़े उद्योग से सीमेंट, स्टील ,मशीनरी में लाभ होगा और उससे विकास होगा नौकरियां बढ़ेंगी
अर्थव्यवस्था में समय-समय पर ऐसा होता है। हां ,भारत में 1991- 92 के बाद ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली है। लेकिन इससे एक खास किस्म का भय तो जरूर व्याप गया है । परंतु यह तय है कि सरकार जिस तरह से काम कर रही है उसमें साल दो साल में सकारात्मक नतीजे जरूर आएंगे। 2019 में बनी सरकार का पहला बजट पेश होने में एक पखवाड़े से भी कम समय रह गया है। इस बजट में भी आर्थिक मोर्चे पर लड़ाई दिखेगी। सरकार की कोशिश होगी कि आम आदमी को थोड़ी राहत मिले उसके पास पैसे आ सकें। मंदी की वजह से लोग पैसा खर्च नहीं कर पा रहे हैं:
अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूं
जब भी आवाज लगाता है खिलौने वाला
सरकार की कोशिश होगी कि ग्रामीण रोजगार का सृजन हो ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश हो सके और वहां से पैसा आए। अर्थव्यवस्था में जितनी मांग होनी चाहिए वह भी कम है। निर्यात घटा है और निजी क्षेत्र से निवेश कम हुआ है । जिसकी वजह से आर्थिक वृद्धि दर घट रही है । रोजगार सीधे आर्थिक विकास पर निर्भर है । अगर हमारी जीडीपी 6 से 7% हो जाएगी तो रोजगार अपने आप बढ़ जाएगा। पिछले 3 साल में यही हुआ कि नोटबंदी और जीएसटी से छोटे उद्योगों को दिक्कत आई और रोजगार में कमी हो गई । लेकिन सरकार की मंशा रोजगार बढ़ाने की है । यह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है वरना इतने आंदोलनों को दबाकर बहुत कुछ किया जा सकता था। आपात स्थिति का उदहारण हमारे सामने है। इन आंदोलनों से सरकार का सख्ती से पेश नहीं आना इस बात का सबूत है कि सरकार आर्थिक स्थिति के विकास की कुछ न कुछ विचार कर रही है:
आने वाले जाने वाले हर जमाने के लिए
आदमी मजबूर है राहें बनाने के लिए
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