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Wednesday, January 1, 2020

चुभने लगेगा आंख में

चुभने लगेगा आंख में 

बालाकोट हवाई हमले से लेकर सीडीएस की ताजपोशी तक देश में इतनी तेजी से इतनी ज्यादा घटनाएं घटी कि हम और चीजों पर ध्यान देना भूल गए। हमने इन घटनाओं के बीच से कोई खिड़की  खोलकर सामने मौजूद मंजर को देखा नहीं। हमने यह नहीं सोचा की "छी छी काका" जैसे फूहड़ नारों से उभरते सियासी उथल पुथल तथा छात्र अतिवादी संगठन पर पाबंदी जैसी कई घटनाएं हुईं जिन्होंने हमें उलझाये रखा। उससे जो वक्त बचा वह अर्थव्यवस्था के आंकड़ों में डूब गया। हमने यह नहीं सोचा कि हमारे देश का बचपन कैसा है, हमारे समाज के बच्चे कैसे हैं? अर्थव्यवस्था  के विकास की राह में रुकावट क्या है? सीडीएस की नियुक्ति से हम सुपर पॉवर नहीं बन सकते हैं। दुनिया में   नौजवानों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है लेकिन यह सुनकर हैरत होती है कि भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों में 68.2% मौतें केवल कुपोषण से होती हैं । पिछले कुछ वर्षों में हमारा देश बहुत विकसित हुआ। लेकिन, 1992 से 2016 तक 5 साल तक के बच्चों में फैले कुपोषण में एक तिहाई की कमी आई। आज भी 38.4 प्रतिशत बच्चे अपने कद के हिसाब से कम वजन या ज्यादा वजन के हैं। कुपोषण का सबसे बड़ा पैमाना है हमारे देश में  बच्चों के गलत खानपान की आदत। जिसका कारण गरीबी या फिर माता-पिता की ना जानकारी है। कुपोषण के मुख्य मानक स्टंटिंग यानी  उम्र के अनुपात में कम लंबाई , अंडर वेट मतलब लंबाई  के अनुपात में कम वजन और ओवरवेट यानी लंबाई के अनुपात में ज्यादा वजन या मोटापा। अक्सर लोग मोटापे को कुपोषण का हिस्सा नहीं मानते , लेकिन यह भी कुपोषण का एक हिस्सा है। हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी सर्वे के मुताबिक 2016 से 18 के बीच 4 साल से 9 महीने  के छोटे बच्चों में 35% स्टंटेड 17% वेस्टेड 39% अंडर वेट और 2% ओवरवेट हैं 6 से 59 महीने के 16% बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं।
5 से 9 साल उम्र तक के बच्चों में, 22% स्टंटेड, 10% अंडरवेट, 23% पतले और 4% ओवरवेट हैं। 10 से 19 साल की उम्र तक के बच्चों और किशोरों में 26.4% स्टंटेड, 24% उम्र के अनुसार पतले हैं और 5% ओवरवेट हैं।
सीएनएनएस सर्वे, दुनिया का पहला ऐसा सर्वे है जिसमें देश के बच्चों की पोषण स्थिति और उनमें माइक्रोन्यूटरीएंट्स यानी   सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी यह आंकड़े सामने आए हैं। इस सर्वे में भारत के 30 राज्यों के 19 साल तक के उम्र के बच्चों और किशोरों को शामिल किया गया है। यहां सीडीएस के पद के सृजन के बरस बच्चों में कुपोषण की बात कह दें का मुख्य कारण यह है कि हम जिस फौज को देख कर गौरवान्वित हो रहे हैं या आप भविष्य में होंगे उस फौज का एक बड़ा हिस्सा हमारे समाज से आता है और हमारे समाज का दो तिहाई भाग कुपोषण का शिकार है। क्या हम इसी के आधार पर महाशक्ति बन सकते हैं? कुपोषण सीधे हमारे स्वास्थ्य पर ही नहीं हमारी आर्थिक शक्ति पर भी आघात पहुंचाता है। उसका सीधा असर होता है उम्र के शुरुआती दिनों में कुपोषण का असर प्रत्यक्ष रूप से  बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर पड़ता है। यूथ ग्लोबल रिसर्च की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सामान्य लंबाई से 1 सेंटीमीटर ज्यादा लंबे पुरुषों की आमदनी 4% और महिलाओं की आमदनी 6% ज्यादा पाई गई है जो बच्चे बचपन से कुपोषित होते हैं उनकी लंबाई सामान्य बच्चों के मुकाबले 20% कम होती है। यही नहीं ,बच्चों के कुपोषण का देश की आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ता है। दुनिया भर में कुपोषण की वजह से सालाना 2.1 खराब डॉलर का नुकसान होता है । मोटापे के इलाज का खर्च  देशों की जीडीपी के 4 से 9 प्रतिशत होता है। मोटापे से होने वाली बीमारियां की वजह से 2010 में 1.4 ट्रिलियन डॉलर खर्च होने का अनुमान लगाया जाता है। जो हर साल बढ़ता जा रहा है कुपोषण स्थिति देखें। हमारे देश में सबसे खराब हालत बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और मेघालय के हैं । जम्मू कश्मीर और गोवा की स्थिति थोड़ी ठीक है।
         लैंसेट पत्रिका के पिछले अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था भारत अगर इसी रफ्तार से काम करता रहा तो भारत के लक्ष्य 2022 तक पूरे नहीं होंगे। भारत सरकार ने कुपोषण से लड़ने के लिए कई तरह की योजनाएं लागू की हैं। सरकार ने 2022 तक कुपोषण कम करने का लक्ष्य तय किया है। लेकिन अगर रास्ता  रहे तो शायद यह लक्ष्य पूरा नहीं होगा। सचमुच अगर तेजी से बदलती घटनाओं के घटाटोप से बाहर देखें तो एक ही बात मुंह से निकलेगी :
चुभने लगेगा आंख में ये मंजर ना देखिए
इन खिड़कियों से झांक के बाहर ना देखिए


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