CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, January 27, 2020

शांति हर सवाल का जवाब .

शांति हर सवाल का जवाब 

अभी दो दिन पहले गणतंत्र दिवस का समारोह पार हुआ है और इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने " मन की बात" कार्यक्रम में कहा कि हम 21वीं सदी में हैं। यह सभी ज्ञान विज्ञान और लोकतंत्र का युग है। क्या आपने किसी ऐसे स्थान के बारे में सुना है जहां हिंसा से जीवन बेहतर हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। शांति हर सवाल के जवाब का आधार होना चाहिए। उन्होंने लोगों से अपील की कि एकजुटता से हर समस्या का समाधान का प्रयास होना चाहिए। भाईचारे के जरिए विभाजन और बंटवारे की कोशिश को नाकाम करें।
       प्रधानमंत्री का इशारा यकीनन देश में चल रहे अलगाववाद और उपद्रव की ओर था उन्होंने शांति की अपील की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में लगभग सभी मंचों पर प्रशंसा है । "मूड ऑफ द नेशन" के एक सर्वे में मोदी जी देश के सर्वश्रेष्ठ शासनाध्यक्ष हैं। इनके बाद इंदिरा जी का नंबर है। मोदी जी को सर्वे में 34% भारतीयों का समर्थन मिला है जबकि इंदिरा जी को 16 प्रतिशत और अटल बिहारी वाजपेई को 13% भारतीयों ने बेहतरीन प्रधानमंत्री बताया है। यद्यपि मोदी जी के बारे में जो भारतीय जनता का समर्थन मिला है वह अगस्त में कहीं ज्यादा था अब 3% कम हो गया है। जबकि इंदिरा जी रेटिंग 2% बढ़ी है। इसका मुख्य कारण है अभी हाल में हुए सीए ए के आंदोलनों का सामाजिक प्रभाव। इस प्रभाव से मोदी जी के शांति दूत की छवि घटी है और इंदिरा जी की इसलिए बढ़ी है कि उन्होंने समान स्थितियों में बल प्रयोग करके आंदोलनों को दबा दिया। यानी हमारा देश स्पष्ट रूप से यह चाहता है यह जो आंदोलन चल रहे हैं इन को किसी भी तरह दबाया जाए। यही नहीं मोदी जी के बारे में जो नई राय बनी है उसके लिए आर्थिक विकास ,बेरोजगारी, किसानों की पीड़ा इत्यादि भी कारण है।
      मोदी के विरोध में बोलने वालों के पास एक मजबूत पॉइंट है कि इकोनॉमिस्ट  पत्रिका ने ताजा अंक  में लोकतंत्र सूचकांक में भारत का स्थान 10 सीढ़ियों नीचे गिरा दिया। लेकिन यह सूचकांक विशुद्ध नहीं है। इसमें कई त्रुटियां हैं। हालांकि यह समाचार कोई बहुत बड़ा नहीं है। इंटेलिजेंस यूनिट की का अध्ययन पांच बातों पर आधारित बताया जाता है पहला चुनावी प्रक्रिया और बहुलतावाद, सरकार का कामकाज ,राजनीतिक भागीदारी , राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता। विख्यात पत्रिका  द कन्वर्सेशन  के ताजा अंक में इस बात का जिक्र करते हुए  रेखांकित किया गया है कि "आधुनिक अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय रणनीति में    आजकल विभिन्न देशों की राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया के विश्लेषण को बहुत महत्व दिया जाता है। क्योंकि, इसमें निवेश से जुड़े जोखिम के आकलन में मदद मिलती है।" दरअसल निवेश की वास्तविक दुनिया में लगाए गए धन पर मुनाफे को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना महत्व निवेश से जुड़े जोखिम की चिंता को दी जाती है। यही कारण है दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भारत जैसी लोकतांत्रिक परंपरा और सामूहिक निर्णय संस्कृति वाले देश के बजाय उन देशों में भारी निवेश कर रही है जो कहीं ही कम लोकतांत्रिक हैं। पश्चिमी देशों के अमीरों को अविकसित देशों के तानाशाहों और स्वेच्छाचारी शासकों के साथ सौदा करने में आसानी होती है। विकसित देशों और उनकी सरपरस्ती में काम करने वाले संस्थानों में चीन को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाती है लेकिन क्या कोई चीन को लोकतांत्रिक परंपराओं वाला श्रेष्ठ देश कह सकता है? शायद नहीं। अधिनायक वादी देशों को तरजीह दिए जाने के पीछे संभवत ये तर्क है कि उनकी व्यवस्थाएं ज्यादा जटिल नहीं होती या वहां निर्णय प्रक्रिया भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के मुकाबले बहुस्तरीय नहीं होती। इसलिए निवेशकों का शीर्ष नेतृत्व से तत्काल संपर्क हो जाता है। ऐसी पृष्ठभूमि व्यवसाय और निवेश के बड़े अवसरों के लिए लोकतंत्र के महत्व पर उपदेश दिया जाना बड़ा अजीब लगता है। भारत की अपनी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है और वह उसका पालन करता है साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यवसायों के लिए उसके अपने मजबूत संस्थागत ढांचे हैं इसका उल्लेख राष्ट्र संघ तक ने किया है।
        इनदिनों एक फैशन हो गया है यह कहना कि  बहुधर्मीय भारत को उग्र राष्ट्रवादी हिंदू राष्ट्र में बदलने के लिए  प्रयास चल रहा है। लेकिन अगर हकीकत देखें तो यह बात सही नहीं प्रमाणित होती है। भारत में ऐसा कोई प्रयास नहीं चल रहा है जो उसे राष्ट्रवादी हिंदू राष्ट्र में बदल दे। अगर इसका इशारा सीए ए और एनआरसी की तरफ है तो यह निहायत ना जानकारी है। सबसे पहली बात कि यह किसी की नागरिकता लेने के लिए नहीं कुछ लोगों को नागरिकता देने के उद्देश्य से बनाया गया है। दूसरी बात है कि, सी ए ए के  पर्दे में जो उपद्रव हो रहे हैं उसका उद्देश्य कुछ दूसरा है। उसका स्वरूप राजनीतिक है। ऐसे में सरकार को दोष दिया जाना  ना केवल बरगलाना  है बल्कि सच से अलग है।


0 comments: