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Friday, May 12, 2017

नोटबंदी के 6 महीने

नोटबंदी के 6 महीने
अबसे लगभग 6 महीने पहले 8 नवम्बर 20178 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े नपे तुले अंदाज़ में टी वी पर अपने लगभग घंटे भर के भाषण में। देश में व्याप्त आर्थिक भ्रष्टाचार मिटाने का अभियान आरम्भ किया। उन्होंने 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट रातोंरात बंद कर दिए। इसके साथ ही देश की मौद्रिक प्रणाली में शामिल 84 प्रतिशत नोट चलन से बाहर हो गए। इसासे लगभग 80 प्रतिशत  व्यापार प्रभावित हुए। साथ ही प्रभावित हुई अनौपचारिक अर्थव्यस्था जो इस देश के जी डी  पी में 45 प्रतिशत योगदान करती है। इससे निम्न मध्यवर्ग के दिहाड़ी पाने वाले मज़दूर भी प्रभावित हुए। यद्यपि प्रधानमंत्री जी के  नोट बंदी के फतवे में कहा गया था कि इसासे देश की काली या कहें  अघोषित आय से उत्पन्न अर्थब्यवस्था पर तीन तरफा प्रहार  कर उसे मिटा देगी । इसासे गरीबों को राहत मिलेगी। नोटबंदी के दो महीनों में नगदी के अभाव , हताशा और बदनामी के कारण कथित रूप से 120 लोग मारे गए। हालांकि भारत ने कई बार तीन मोर्चों पर संघर्ष किया है पर कभी भी ऐसा नही हुआ। जो वादे किए गए थे वे पूरे नहीं किये जा सके। कहा गया बड़ी उपलब्धि के लिए थोड़ी पीड़ा तो सहनी पड़ती है। अब तो 6 महीने गुजर गए और जनता के सामने कुछ सवाल अब सामने  खड़े हैं और देश इनका उत्तर चाहता है। पहला सवाल है कि बंद  किये गए नोटों में से सही सही कितने नोट वापस आये? गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 15.44 लाख करोड़ रुपये  वापस  आये। जो रुपये बरामद हुए उनमें काले धन और नकली नोटों का अनुपात कितना था?  जो नोट बंद हुए उनमें कितने पुनः चलन में आये?  नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर सही सही क्या प्रभाव पड़ा? प्रधान मंत्री की कैशलेस व्यवस्था को संभालने में रिजर्व बैंक कितना सक्षम है? रिजर्व बैंक तो यह कह कर पर्दे की ओट चला गया कि इस तरह के ससवालों के उत्तर देने से देश मौद्रिक व्यवस्था पर आघात लगेगा। लेकिन उसके इस चुप्पी पर 130  करोड़ भारतीयअशांत हैं। पूर्व प्रधान मंत्री और विख्यात अर्थ शास्त्री मनमोहन सिंह ने इसे " संगठित लूट और कानूनी डाका " कहा था। कई और अर्थ शास्त्रियों ने भी विपरीत टिप्पणी की थी। फोर्ब्स पत्रिका ने इसे व" अनैतिक" कहा था। सच तो यह है कि नोटबंदी के दो महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की गति धीनी पड़ गयी थी। नोटबंदी से कोई लाभ नहीं हुआ। अब हालात सुधार की ओर हैं पर काला धन, जाली नोट और आतंकवाद को धन हासिल होने के मामलों का क्या हुआ? हज़ार रुपये की जगह 2000 रुपयों के नोट आये लेकिन कालाधन का कारोबार बदस्तूर जारी है।लोग विभिन्न खातों में धन जमा कर उसे सफेद बनाने के चक्कर में लगे ही हैं। जहां तक जाली नोटों का सवाल ही तो वह बदस्तूर जारी है। भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अनुसार अभी भी 400 करोड़ के जाली नोट बाजार में चल रहे हैं। कुछ भगत प्रकार के लोगों का कहना है कि यह संख्या 4-5 लाकह नोट चल रहे हैं। किसी भी तरह कश्मीर में 2000 रुपयों के जाली नोट पकड़े जा चुके हैं। आतंकियों को धन हासिल किए जाने के वाकये भी चल ही रहे हैं। कश्मीर घाटी और सुकमा के जंगल इस बात के गवाह हैं। 
कैशलेस भारत का जुमला तो मजाक बन कर राह गया है। अलबत्ता इससे राजनीतिक लाभ ज़रूर हुआ। मोदी जी की लहर जो धीमी पड़ रही थी वह नोटबंदी की फर्जी कथाओं से फिर तेज हो गई। इससे भी चुनावी लाभ मिला।  आर्थिक रूप से नोटबंदी के प्रभाव से आम आदमी को बहुत लाभ नहीं मिला। इससे मोदी जी और उनके कारपोरेट बंधुओं को ज़रूर फायदा मिला।

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