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Tuesday, May 9, 2017

नक्सलवाद का दैत्य

नक्सलवाद का दैत्य
सोमवार को दिल्ली में गृह मंत्री राजनाथ सिंह नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्य मंत्रियो की बैठक बुलाई थी। सुकमा कांड की पृष्ठ भूमि में बुलाई गई इस बैठक में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नक्सलियों के भीतर शासन का खौफ पैदा करने के लिए कई समर नीतियों को गढ़ा। उन्होंने प्रभावित राज्यों से कहा कि वे नक्सल विरोधी अभियानों का दायित्व संभालें और साथ ही उन वाम पंथी आतंकियों को  मिलने वाले धन के स्रोतों पर भी अंकुश लगाएं। हमें अपनी नीतियों , रणनीतियों , सुरक्षा बलों की तैनाती , नक्सलियों के खिलाफ अभियान , विकास और सड़क निर्माण में आक्रामक होना होगा। हमे सचेत रहना होगा कि अत्यंत आक्रामक तैनाती सही ऑपरेशन की क्षमता को घटा देती है। गृह मंत्री द्वारा पेश आंकड़ों के अनुसार विगत दो दशकों में नक्सलियों के हाथ अर्द्ध सैनिक बालों के 2700 जवान और 9300 निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं। उन्होंने 9/11 के हैमल का हवाला देते हुए कहा कि अमरीका ने इसे चुनौती की तरह स्वीकार कियाऔर तय किया कि इसकी पुनरावृति नही होने देंगे। उन्होंने कहा कि उस घटना की जांच के लिए गठित आयोग ने कहा था कि यह इंटेलिजेंस की असफलता के कारण नहीं अधिकल्पना के अभाव के कारण हुई थी। उन्होंने इसे मिटाने के लिए स्मार्ट नेतृत्व , आक्रामक रणनीति, खुफियागिरी इत्यादि के विकास की ज़रूरत पर बल दिया।  
गृह मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया  या कहें सुझाया गया सारा समाधान सत्ता और शक्ति केंद्रित था।  संयोगवश कल ही कीस विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष अच्युत सामन्त ने एक लंबी बातचीत में कहा कि समय का मूल या तो सरकार समझ नही पारहि है या जानबूझ कर उसे आंख की ओट किये हुए है। नक्सल वाद आनमतरिक या घर में पैदा हुआ आतंकवाद है और यह विचार और जरूरत केंद्रित है। इसे सैन्य बल से नहीं विचार में बदलाव तथा ज़रूरतों को पूरा कर खत्म किया जा सकता है। श्री सामंत का कहना था कि नक्सलपंथ में जो किशोर लाये जाते हैं वे घने जंगलों में बसे आदिम आदिबवासी समुदाय के बच्चे हैं और भोजन, वस्त्र तथा आवास जैसी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो सकतीं। उधर शिक्षा के नाम पर मिडल और उसी स्तर के स्कूल खोलसा जाना वुन्हे और विषाक्त बना देता है। श्री सामंत का मानना है कि अर्ध शिक्षा या कम शिक्षा अशिक्षा से ज्यादा खतरनाक होती है। श्री सामंत का दावा है कि यदि भोजन , वस्त्र और आवास जैसी अत्यंत बुनियादी जरूरतों का समाधान हो जाय और उन्हें ठीक से शिक्षित किया जाय तो यह समस्या खुद बखुद हाल हो जाएगी। 
यह सच है कि नक्सल आतंकवाद इस देश की मिट्टिन से जन्मा आतंकवाद है । यही कारण है कि समस्त नक्सली घटनाओं की अंतरनिहित विचारधारा और  व्यूहकौशल समान है। वही निर्दोष आदिवासियों के छद्म वेश में सुरक्षाबलों पर घात लगा कर हमला।गृह मंत्री ने धन का स्रोत बंद करने की बात की है तो यह विश्लेषण ही अव्यवहारिक है। उन आदिवासी किशोरों को मिलता क्या है?  दो जून कसा भोजन और एक जोड़ी कपड़ा। जबकि आदिवासी इलाकों से देसी उद्योगपतियों , इज़ारेदारों और हुकूमत के भारी स्वार्थ जुड़े हैं। सबसे मुइश्किल है कि इन नक्सलियों को निर्देशित करने वाले कारक तत्व जो चाहते हैं सरकार जाने- अनजाने में वही करती है। विकास के नाम पर जंगल काटते हैं , खदानें खुलतीं हैं और उस क्षेत्र के आदिम बाशिंदों को कहीं और विस्थापित कर दिया जाता है। वे अपनी विरासत, अपने समाज और जमीन से कट जाते हैं। अशिकसित दिमाग, उफनता गुस्सा और भूखा पेट उन्हें मनुष्य से हथियार बना देता और स्वरती तत्व इस हथियार का उपयोग करते हैं। गुस्से से भरे अशिक्षित या अर्द्ध शिक्षित  दिमाग को समझाना कठिन है पर शिक्षित मस्तिष्क को बताया जा सकता है कि देश से उनका युद्ध व्यर्थ है। सरकार वह क्षेत्र सेना या अर्द्ध सैनिक बालों को सौंप देती है नतीजतन गुस्सा और बढ़ता जाता है। इस संदर्भ में अपने देश की सबसे बड़ी समस्या यह नही रही है कि हमारी नीतियां गलत हैं बल्कि यह कि सरकार में बैठे लोग जब देखते हैं कि पुराना तरीका नहीं कारगर हो पा रहा है तो उसे और व्यापक बना दिया जाय। जैसे अर्ध सैनिक बालों के मामले में नीति सुरक्षात्मक है गृहमंत्री महोदय ने सोमवार से आक्रामक बनाने का आह्वान किया। मुट्ठीभर गुमराह और लगभग अपढ़ आदिवासी नौजवानों पसर फोर्स कस कहर , है भगवान। सरकार को समझना चाहिए कि यहां हिंसा से ज्यादा खतरनाक हिंसा का विचार है। अच्युत सामन्त इसी विचार को बदलने की वकालत करते हैं। हिंसा को हिंसा से खत्म करना एक प्रतिगामी उपाय हसीं और इस तरीके  से इसे नहीं मिटाया जा सकता है।

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