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Wednesday, May 3, 2017

शरीफ - जिंदल मुलाकात से बौखलाए पाकिस्तानी आतंकी,  फिर कर सकते हैं हमला 

शरीफ - जिंदल मुलाकात से बौखलाए पाकिस्तानी आतंकी,  फिर कर सकते हैं हमला 
राष्ट्रहित पर भारी पड़ा व्यापारिक हित 

हरिराम पाण्डेय 
कोलकाता: विख्यात स्टील उत्पादक नवीन जिंदल के छोटे भाई सज्जन जिंदल और  बुधवार 26 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ की मुलाकात को लेकर पाकिस्तान में गंभीर सनसनी है और भारत में भी दूर  की कौड़ी लाने वाले कुछ लोग कह रहे हैं कि सज्जन जिंदल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का कोई संदेश लेकर गए थे और यह दोनों देशों में  शांति  वार्ता की " बैकरूम डिप्लोमेसी " है। परंतु " सन्मार्ग " को काबुल से मिली जानकारी के अनुसार इस मुलाकात के पीछे उद्देश्य शुद्ध व्यापार है और यह तीन देशों - अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत- से जुड़ा है। इस मुलाकात को लेकर पाकिस्तानी आतंकी दलों और विपक्षी पार्टियों में भारी रोष है। शरीफ और जिंदल में एक ऐसी ही मुलाकात 24 दिसंबर 2016 को हुई थी और इसके 8 दिन के भीतर आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला कर दिया था। विदेशी  कूटनीतिक हलकों में चर्चा है कि इसबार वहां गुस्सा कुछ ज्यादा ही है। इस बार तो आई एस आई भी गुस्से में लग रही है। क्योंकि पाकिस्तानी जनता में नवाज़ शरीफ के खिलाफ रोष पैदा करने के लिए वहां किसी  अहसानुल्लाह का वीडियो जारी किया है जिसमें उसे यह कहते उसे दिखाया गया है कि " पाकिस्तानी तालिबान को रॉ ने तैयार किया है।" 1 मई को कृष्णा घाटी का हमला इसी गुस्से की अभिव्यक्ति माना जा रहा है।
भारतीय विदेश विभाग से जब " सन्मार्ग" ने जानना चाहा  तो वहां से  इस तरह की किसी भी मुलाकात की जानकारी से ही इनकार कर दिया गया पर तबतक पाकिस्तानी मीडिया में हड़कंप मच गया था। दर असल इसका  कारण था कि नवाज़ शरीफ उसी दिन यानी बुधवार की  सुबह ही  इस्लामाबाद के करीबी हिल स्टेशन  मर्री गए थे और वहीं दोनों की मुलाकात हुई। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मुलाकात कितनी खास थी कि पाकिस्तान के पी एम  खुद वहां गए। इस मुलाकात के तार तीन देशों से जुड़े हैं।साथ ही यह भी बताते हैं कि व्यापारिक हित किस तरह दो देशों के राष्ट्रहित और सामरिक हितों पर भारी पड़ता है।
हालांकि सरकारी तौर पर इस बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है पर " सन्मार्ग" को  प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह सारा मामला अफगानिस्तान के   बामियान प्रान्त  के हाजीगक में "आयरन ओर " के विशाल भंडार के ठेके और ढुलाई से जुड़ा है। सूत्रों के मुताबिक यहां पर एकदम हाई क्वालिटी के  108 अरब टन " आयरन ओर " का भंडार है तथा तथा भारत के बाजार की तुलना में काफी सस्ता है। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने इसे भारतीय सरकारी कंपनी सेल को देना चाहा था पर कांग्रेस शासन काल में नवीन जिंदल मनमोहन सिंह पर दबाव डाल कर सौदा रुकवा दिया था। अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार इसे निजी क्षेत्र को देना चाह रही है।  हाजीगक से सज्जन जिंदल को सीधा भारत आना था और वे वीसा के नियम का उल्लंघन कर एक विशेष विमान से इस्लामाबाद आये । यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि नवाज़ शरीफ खुद लोहे के कारखाने के मालिक हैं और वे " आयरन ओर " का महत्व जानते हैं। सूत्रों के मुताबिक जिंदल चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान में व्यापारिक समझौता हो और इसके तहत चुनिंदा जिंसों और अन्य वस्तुओं का आवागमन हो। सूत्रों के मुताबिक काबुल से " आयरन ओर " भारत लाने के दो रास्ते हैं। पहला है काबुल से कराची और वहां से भारत। दूसरी राह है काबुल से मास्को और मास्को से भारत। दूसरा विकल्प बहुत महंगा होगा। सूत्रों के अनुसार  नवाज़ शरीफ चाहते हैं कि यह समझौता हो किंतु उनकी शर्त है कि पाकिस्तान के विरोध में भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ना बोले और कश्मीर के मसले पर चुप रहे।
कूटनीतिक हलके  में कहा जा रहा है कि सज्जन जिंदल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर भी दबाव बना सकते हैं। यहां यह  जानना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सज्जन जिंदल के ही प्रयास नवाज़ शरीफ भारत आये थे और दोनों नेता दो घंटे तक बातचीत करते रहे थे। इसके बाद शरीफ के जन्म दिन पर मोदी जी के अचानक आने के पीछे भी जिंदल की ही भूमिका थी। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है इसबार भी दोनों की मुलाकात हो सकती है और जल्दी हो सकती है।
भारत पर हमले का भी खतरा:
काबुल में भारतीय कूटनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि इस मुलाकात से पाकिस्तान के विपक्षी दलों और वहां के आतांकी संगठनों में काफी बौखलाहट है ।   पिछली बार जब इस्लामाबाद में मोदी- शरीफ मुलाकात हुई थी तो " आयरन और" की ढुलाई का मार्ग प्रशस्त हो चुका था पर आतंकी संगठनों ने इसके लिए भारी रकम मांगी थी और नहीं दिए जाने पर 8 दिनों के भीतर उन्होंने पठानकोट एयरबेस पर हमला कर दिया और सारी योजना धरी रह गयी थी। इसबार भी कुछ ऐसा ही डर व्यक्त किया जा रहा है। डर तो यह भी जाहिर किया जा रहा है कि इसबार आतंकियों के पास छोटे परमाणु हथियार भी हैं- जो उन्होंने चेचेन विद्रोहियों से खरीदे हैं - और हो सकता है कि वे इसका " उपयोग" कर दें।

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