विज्ञान और गोबर
माफ करें यह व्यंग्य या हास्य नहीं है यह सच है कि देश की सर्वोच्च विज्ञानी संस्थाएं गोबर की महिमा का अध्ययन करेंगी।हमारे देश में न जाने कब से गोबर धार्मिक महत्व रहा है और साथ ही साथ वह साहित्य में व्यंग्य का पैराडाइम भी रहा है। दिमाग में गोबर से लेकर बायो गैस प्लांट में गोबर के बीच इसके कई उपयोग देखे गए हैं। विज्ञानियों के समूह का मानना है कि यह एक छद्म वैज्ञानिक पहल जो भारतीय वैज्ञानिक समुदाय की अयोग्यता से रिक्त हुए स्थान को भरने का प्रयास है। इन दिनों हिंदुत्व आदर्शवादियों ने एक नया नाम गढ़ा है"गौ विज्ञान" यानी काऊपैथी। यह एक नया राष्ट्र स्तरीय नाम उभर कर आया है। पिछले दिनों यह छद्म विज्ञान या यों कहें हाशिये का विज्ञान केन्द्र में स्थापित हो गया और अब कई विज्ञान विभागव और राष्ट्रीय प्रयोग शालाओं के अनुसंधान का विषय बन गया है। पिछले दिनों विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक डिवीजन एस ई ई डी ( समानता सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान) ने एक मेमोरेंडम जारी कर कहा कि " पंचगव्य पर शोध करें और उसका वैज्ञानिक मूल्यांकन करें।" इसके लिए 19 वैज्ञानिकों की एक समिति गठित की गई है जो तीन महीने तक शोध कर अपनी रपट देगी।गोबर से बनाने वाली जितनी कथित औषधियां हैं उनमें पंचगव्य सबसे महत्वपूर्ण है। पंचगव्य गाय से निकलने वाले पांच पदार्थों - गोबर, गोमूत्र, गौदुग्ध, गौ घी और गौ दही -से बनता है। इसमें चार वस्तुएं और मिलाई जाती हैं वे हैं गन्ने का रस,गुड़, केला और नारियल पानी या सादा पानी। पंचगव्य पर शोध में डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद और आई आई टी दिल्ली शामिल है।इस समिति के अध्यक्ष बनाये गए हैं विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन और और उन्हें सहयोग देंगे नालंदा विश्व विद्यालय के कुलपति विजय पी भटकर।इसमें विज्ञान भर्ती और आर एस एस भी शामिल है।
यह कितनी बड़ी विडंबना है कि अभी हाल ही में कई वैज्ञानिक संस्थाओं ने देश में विज्ञान की दुर्दशा पर पेपर सौंपा था और प्रधान मंत्री ने लंबा भाषण देकर कहा था कि यह पूर्व की सरकारों की लापरवाही तथा उपेक्षा का नतीजा है। काउपैथी को आगे बढ़ाने में आई आई टी दिल्ली की सबसे बड़ी भूमिका रही है। इस संस्थान में विगत कई वर्षों से हिंदुत्व का विकास देखा जा रहा है। जब अयोध्या में विवादास्पद ढांचा गिराया गया था तो यहां लड्डू बांटे गए थे।अभी इस संस्थान के चार सदस्य राष्ट्रीय विज्ञान परिषद में हैं। यही परिषद पंचगव्य पर शोध को संयोजित कर रहा है। कहा जा रहा है कि ग्रामीण विकास और तकनीकी केंद्र के प्रमुख वी के विजय ने पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्र स्मृति ईरानी से काफी सिफारिश की थी । इसी के विरोध में आई आई टी दिल्ली के निदेशक ने इस्तीफा दे दिया था। गोमूत्र और गोबर के औषधीय गुणों पर शोध तो 2000 से चल रहा है। लेकिन पहले इसे सेंट्रल इंस्टीटूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ चलाता था। कुछ के पेटेंट्स भी लिए गए थे पर इसका कभी उपयोग नही हुआ। यू पी ए के काल में यह बैंड कर दिया गया था। विज्ञान के क्षेत्र नें देश के पिछड़ने के मसले से लोगों का ध्यान हटाने की गरज से यह किया गया है।
Thursday, May 18, 2017
विज्ञान और गोबर
Posted by pandeyhariram at 8:01 PM
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